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    ‘भारत कोई धर्मशाला नहीं’: सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई तमिल की शरण याचिका की खारिज, जानें पूरा मामला।

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    सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख: “भारत कोई धर्मशाला नहीं है”.

    सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंका से आए एक पूर्व एलटीटीई सदस्य की भारत में रहने की याचिका को सख्त टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि:“भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां कोई भी आकर बस जाए। पहले ही यहां 140 करोड़ की आबादी है।”

    कौन है याचिकाकर्ता?
    १. याचिकाकर्ता का नाम है सुभास्करण उर्फ जीवन उर्फ प्रभा
    २. 2009 के श्रीलंका गृह युद्ध के दौरान उसने LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के लिए लड़ाई लड़ी थी
    ३. वह 2015 में तमिलनाडु में अवैध रूप से दाखिल होने पर गिरफ्तार हुआ
    ४. यूएपीए (UAPA) के तहत उसे 10 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसे हाई कोर्ट ने 2022 में घटाकर 7 साल कर दिया

    याचिकाकर्ता की दलील
    १. सुभास्करण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा:“श्रीलंका लौटने पर मुझे प्रताड़ित किया जाएगा”
    २. “मेरी पत्नी और बेटा भारत में रहते हैं और दोनों बीमार हैं”
    ३. “मुझे भारत में शरण दी जाए”

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला
    १. जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस के. सुभाष रेड्डी की पीठ ने सुभास्करण की याचिका को खारिज करते हुए कहा: भारत का संविधान केवल भारतीय नागरिकों को बसने का अधिकार देता है
    २. कोई भी विदेशी बिना वैध प्रक्रिया के भारत में बसने का दावा नहीं कर सकता
    ३. सजा पूरी होते ही उसे श्रीलंका भेज दिया जाएगा

    सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:
    १. “भारत पहले ही 140 करोड़ आबादी का भार झेल रहा है”
    २. “कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अवैध प्रवासियों पर सख्त रवैया ज़रूरी”
    ३. “किसी भी विदेशी को भारत में रहने का संवैधानिक अधिकार नहीं”

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