




पाकिस्तान के जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाए जाने के बाद सैन्य तानाशाही की आशंका बढ़ी, अयूब खान की तरह दोहराया जाएगा इतिहास?
पाकिस्तान में एक बार फिर सैन्य शासन की आशंका गहराने लगी है। जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट किए जाने के बाद देश में तख्तापलट की चर्चा जोरों पर है। यह पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी बार है जब किसी आर्मी चीफ को यह सर्वोच्च सैन्य पद मिला है।
आसिम मुनीर का यह प्रमोशन ऐसे समय पर हुआ है जब भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के ज़रिए आतंकवादियों पर बड़ी कार्रवाई की थी। माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने यह कदम भारत के दबदबे की प्रतिक्रिया में उठाया है। लेकिन इतिहास के पन्ने कुछ और ही चेतावनी दे रहे हैं।
क्या फिर दोहराएंगे अयूब खान वाला इतिहास?
साल 1959 में पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल बने थे जनरल अयूब खान। तब राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने उन्हें मार्शल लॉ लागू करने का आदेश दिया था, लेकिन अयूब ने सत्ता हथिया ली और खुद राष्ट्रपति बन बैठे। उसके बाद पाकिस्तान सैन्य तानाशाही की राह पर चल पड़ा।
अब आसिम मुनीर के फील्ड मार्शल बनने से वैसी ही स्थिति बनने की संभावना जताई जा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ एक पदोन्नति नहीं, बल्कि सत्ता के पुनर्गठन का संकेत है।
सरकार पर नियंत्रण का अगला कदम?
पाक पीएम शहबाज शरीफ की कैबिनेट ने 20 मई को मुनीर की फील्ड मार्शल के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहला संकेत है सैन्य वर्चस्व की वापसी का। यदि अब मुनीर राजनीतिक निर्णयों में दखल देना शुरू करते हैं, तो पाकिस्तान में एक और तख्तापलट संभव है।
भारत के खिलाफ आक्रामक रुख
आसिम मुनीर को भारत-विरोधी और आक्रामक नीति के लिए जाना जाता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की सेना को भारत के जवाबी हमले में शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी। उस घटना ने पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को हिला दिया, जिसका असर अब देखने को मिल रहा है।
क्या पाकिस्तान में फिर शुरू होगी तानाशाही?
आसिम मुनीर की सोच, सेना पर पकड़ और अब उच्चतम सैन्य रैंक उन्हें एक शक्ति केंद्र बना रही है। अगर उन्होंने सत्ता की बागडोर भी संभाल ली, तो यह पाकिस्तान को फिर से सैन्य शासन की ओर ले जा सकता है — ठीक वैसे ही जैसे अतीत में हुआ।
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