




यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका रूस के तेल व्यापार पर बड़ा प्रतिबंध लगाने की तैयारी में, भारत की ऊर्जा रणनीति पर पड़ेगा असर।
नई दिल्ली: भारत को सस्ते तेल की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा स्रोत — रूस, अब अमेरिकी प्रतिबंधों की जद में आ सकता है। अमेरिकी सीनेट में एक ऐसा प्रस्ताव रखा गया है जिसमें रूस से कच्चा तेल खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का प्रावधान है। अगर यह कानून बनता है तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर बड़ा संकट आ सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी सांसदों द्वारा पेश किए गए इस बिल का उद्देश्य रूस के तेल निर्यात को रोकना है, ताकि उसे यूक्रेन युद्ध के लिए फंडिंग न मिल सके।
भारत की तेल रणनीति पर असर
भारत रोजाना औसतन 20 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जिसकी कीमत लगभग 15.4 करोड़ डॉलर (फरवरी के आंकड़े) है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रूस से करीब 50 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा, जो कुल आयात का लगभग 35 प्रतिशत है।
मई 2025 में भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 39% रही, जबकि इराक से 22% आयात किया गया। यदि अमेरिका यह प्रस्ताव पारित करता है, तो भारत के लिए रूसी तेल खरीदना आर्थिक रूप से असंभव हो सकता है।
क्या है अमेरिकी प्रस्ताव में?
अमेरिकी सीनेटर रिचर्ड ब्लुमेंथल द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव को अब तक 80 से अधिक सांसदों का समर्थन मिल चुका है। उनका कहना है कि रूस से तेल आयात करने वाले देशों पर द्वितीय विश्व युद्ध जैसे प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है।
इस बिल में अमेरिका की प्रमुख सहयोगी ताकतें — फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन — पहले से ही परामर्श में शामिल हैं, जिन्होंने रूस के तेल जहाजों पर पहले ही कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं।
भारत-रूस ऊर्जा संबंधों पर मंडरा रहा खतरा
रूस लंबे समय से भारत को रियायती दरों पर कच्चा तेल उपलब्ध कराता रहा है। युद्ध के बाद वैश्विक बाजार में तेल महंगा होने के बावजूद रूस से भारत को डिस्काउंट पर तेल मिलता रहा है, जिससे घरेलू महंगाई पर काबू पाया गया।
लेकिन अब यदि अमेरिका का यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो भारत के लिए न सिर्फ तेल महंगा होगा, बल्कि ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की रणनीति पर भी पुनर्विचार करना पड़ेगा।
विशेषज्ञों की राय
ऊर्जा मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत को अभी से वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे सऊदी अरब, UAE और अमेरिका से संबंध मजबूत करने होंगे। साथ ही सरकार को घरेलू उत्पादन और हरित ऊर्जा की दिशा में और तेजी लानी होगी।
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