




भाषा केवल शब्द नहीं, भावनाओं, संदर्भों और संस्कृति का संगम है—AI के पास नहीं है वो समझ जो इंसान को बनाती है खास।
नई दिल्ली/टोरंटो: आज के दौर में AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) हमारे जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है — बातचीत करने वाले चैटबॉट्स से लेकर मेडिकल रिपोर्ट विश्लेषण और भाषा अनुवाद तक। लेकिन एक बड़ा सवाल आज भी बना हुआ है: क्या AI वाकई इंसानी भाषा और उसके पीछे छिपे गहरे अर्थ को समझ सकता है?
इस सवाल का जवाब हैरान करने वाला है। ब्रॉक यूनिवर्सिटी, कनाडा की न्यूरोसाइंस प्रोफेसर वीना डी. द्विवेदी के अनुसार, चाहे AI कितना भी स्मार्ट हो जाए, वह इंसानी भाषा की सच्ची समझ को कभी हासिल नहीं कर सकता।
क्या सिर्फ जवाब देना “समझना” होता है?
AI विशेषज्ञ और नोबेल पुरस्कार विजेता जेफ्री हिंटन ने कहा था कि आधुनिक न्यूरल नेटवर्क्स शायद “वाकई समझते हैं कि वे क्या कह रहे हैं।” लेकिन वीना द्विवेदी मानती हैं कि सिर्फ सही वाक्य बनाना या जवाब देना समझ नहीं कहलाता।
इंसान संदर्भ, टोन, हावभाव और अनुभवों के माध्यम से बात को समझता है। वहीं AI केवल डेटा पैटर्न पर आधारित गणनाएं करता है — न उसमें भावनाएं होती हैं, न अनुभव, और न ही सांस्कृतिक बोध।
“चलो बात करें” का मतलब कौन समझे?
कल्पना कीजिए कोई कहे — “चलो बात करें।”
बॉस बोले तो डर
दोस्त बोले तो सहारा
पार्टनर बोले तो प्यार या बहस!
एक ही वाक्य, लेकिन हर संदर्भ में अर्थ अलग।
AI इस गहराई को नहीं समझ सकता, क्योंकि उसके पास अनुभव नहीं, भावना नहीं, और स्थिति का बोध नहीं।
लिखी भाषा बनाम बोली भाषा
वीना बताती हैं कि हम अकसर मान लेते हैं कि लिखी भाषा ही असली भाषा है, जबकि ऐसा नहीं है।
उदाहरण:
हिंदी और उर्दू — बोलने में एक जैसी, लिखने में अलग
सर्बियाई और क्रोएशियन — उच्चारण एक, लिपि अलग
AI केवल लिखे टेक्स्ट को प्रोसेस करता है, लेकिन भाषा की जीवंतता से वह दूर ही रहता है।
चॉम्स्की का सिद्धांत और AI की सीमा
महान भाषाविद नोआम चॉम्स्की के अनुसार, इंसान जन्म से किसी भी भाषा को सीखने की प्राकृतिक क्षमता के साथ आता है।
AI मॉडल्स चाहे जितना भी डेटा खा जाएं, वे सोच नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते, सिर्फ गणनाएं कर सकते हैं।
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