




जस्टिस भूषण गवई के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में पहली बार लागू हुआ आरक्षण रोस्टर, 28 साल पुराने सरकारी सर्कुलर को मिली संवैधानिक मान्यता।
सुप्रीम कोर्ट ने खुद के यहां लागू किया आरक्षण रोस्टर सिस्टम
चीफ जस्टिस भूषण गवई: भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए सीधी भर्तियों और पदोन्नति में आरक्षण हेतु रोस्टर प्रणाली को औपचारिक रूप से लागू कर दिया है। यह व्यवस्था 23 जून 2025 से प्रभाव में आ गई है।
अब सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रमोशन में पदों के आधार पर आरक्षण मिलेगा। यह फैसला 28 साल पुराने एक सर्कुलर के आधार पर लिया गया है जिसे केंद्र सरकार ने 2 जुलाई 1997 को जारी किया था।
किसे मिलेगा आरक्षण और कितना?
इस नए आदेश के तहत:
१. अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के लिए 15% आरक्षण
२. अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण
कोर्ट रजिस्ट्रार, कोर्ट असिस्टेंट, कोर्ट अटेंडेंट, लाइब्रेरियन जैसे गैर-न्यायिक पदों पर मिलेगा।
३. यह व्यवस्था न्यायाधीशों (Judges) पर लागू नहीं होगी।
28 साल बाद मिला न्याय, 54 पन्नों की विस्तृत प्रणाली
1997 में केंद्र सरकार ने सभी सरकारी विभागों में रोस्टर के आधार पर आरक्षण लागू करने की अधिसूचना जारी की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अब तक अपने यहां लागू नहीं किया था।
अब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई के नेतृत्व में 54 पन्नों की विस्तृत योजना के तहत यह व्यवस्था लागू की गई है।
जस्टिस गवई स्वयं अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं और उन्होंने अपने जीवन में सामाजिक भेदभाव का अनुभव किया है। उन्होंने यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ी पहल के रूप में उठाया है।
सामाजिक न्याय के इतिहास में मील का पत्थर
कानून विशेषज्ञों और दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत किया है। इसे “न्यायपालिका के भीतर सामाजिक न्याय को मजबूत करने वाला ऐतिहासिक फैसला” बताया गया है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में संवैधानिक कानून के प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन कहते हैं:
“यह निर्णय दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट अब खुद को भी उन मानकों पर लाना चाहता है, जिन पर वह बाकी देश को चलाने की अपेक्षा करता है।”
ऐसी ही देश और दुनिया की बड़ी खबरों के लिए फॉलो करें: www.samacharwani.com