




भारत और चीन के संबंध पिछले कुछ वर्षों में उतार–चढ़ाव से गुज़रे हैं। 2020 के गलवन संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में ठंडापन आया था। लेकिन अब हालात धीरे-धीरे बदलते नज़र आ रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में 19 अगस्त 2025 को चीन के विदेश मंत्री वांग यी मुंबई पहुँचे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने चीन की ओर से पीएम मोदी को 31 अगस्त–1 सितंबर को तियानजिन (चीन) में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन का औपचारिक निमंत्रण सौंपा।
यह मुलाकात केवल एक औपचारिक निमंत्रण भर नहीं थी, बल्कि इसमें गहरे कूटनीतिक और रणनीतिक संदेश भी छिपे हुए थे। आइए विस्तार से समझते हैं कि इस मुलाकात में क्या हुआ, किन मुद्दों पर चर्चा हुई और इसका भविष्य में क्या प्रभाव पड़ सकता है।
वार्ता का एजेंडा और बातचीत का क्रम
वांग यी की भारत यात्रा तीन प्रमुख हिस्सों में बंटी रही—
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर से वार्ता
वांग यी ने सबसे पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग, वैश्विक भू-राजनीति, और एशिया में स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा की। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत हमेशा आपसी सम्मान और परस्पर हितों पर आधारित संबंध चाहता है। वहीं, वांग यी ने कहा कि भारत–चीन दोनों एशिया के बड़े देश हैं और प्रतिस्पर्धा से ज़्यादा सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। -
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात
इसके बाद वांग यी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल से बातचीत की। यह बैठक विशेष रूप से सीमा विवाद और शांति बनाए रखने के मुद्दे पर केंद्रित रही। दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि 2020 की घटनाएँ दोनों देशों के हित में नहीं थीं और आगे बढ़ने के लिए भरोसेमंद तंत्र विकसित करना ज़रूरी है। डोभाल ने कहा कि “सीमाओं पर शांति ही हमारे द्विपक्षीय रिश्तों की आधारशिला हो सकती है।” -
प्रधानमंत्री मोदी से भेंट
सबसे अहम मुलाकात पीएम मोदी के साथ रही। वांग यी ने शी जिनपिंग का SCO शिखर सम्मेलन का औपचारिक न्योता सौंपा और उम्मीद जताई कि पीएम मोदी की मौजूदगी इस सम्मेलन को विशेष बनाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी रिश्तों में सुधार की दिशा में सकारात्मक संदेश देते हुए कहा कि “भारत शांति और स्थिरता के साथ आगे बढ़ना चाहता है, और किसी भी मुद्दे का समाधान बातचीत से ही निकलेगा।”
मुलाकात से निकले मुख्य बिंदु
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SCO शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की भागीदारी तय
इस मुलाकात के बाद यह साफ हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी सात साल बाद चीन की यात्रा करेंगे। तियानजिन में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के साथ-साथ रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के प्रमुख नेता भी मौजूद रहेंगे। यह भारत–चीन संबंधों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिए अहम अवसर होगा। -
सीमा पर स्थिरता की ओर बढ़ते संकेत
वांग यी और डोभाल की वार्ता से यह संकेत मिला कि अब गलवन जैसी घटनाओं को पीछे छोड़कर दोनों देश व्यावहारिक सहयोग की ओर बढ़ना चाहते हैं। हालाँकि अभी भी कई क्षेत्र विवादित हैं, लेकिन दोनों देशों ने “स्थिति सामान्य करने” की प्रतिबद्धता दिखाई है। -
आर्थिक और व्यापारिक सहयोग पर ज़ोर
चीन ने भारत को आश्वासन दिया कि वह भारत की ज़रूरतों—जैसे rare earth minerals, कृषि-उर्वरक, और इंफ्रास्ट्रक्चर उपकरण—की आपूर्ति में सहयोग करेगा। यह संकेत देता है कि दोनों देश अब व्यापार को राजनीति से अलग कर आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे। -
वैश्विक राजनीति में नई संतुलन की कोशिश
अमेरिका द्वारा हाल में भारत पर लगाए गए टैरिफ और रूस के साथ बढ़ते भारत–चीन–रूस त्रिकोणीय समीकरण ने इस मुलाकात को और अहम बना दिया। विश्लेषक मानते हैं कि भारत अब “रणनीतिक संतुलन” की नीति पर काम कर रहा है—जहाँ वह पश्चिम और पूर्व, दोनों से अपने हित साधना चाहता है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का महत्व
SCO वर्तमान में एशिया का सबसे प्रभावशाली बहुपक्षीय संगठन माना जाता है। इसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और मध्य एशिया के कई देश शामिल हैं। तियानजिन में होने वाला 2025 का शिखर सम्मेलन खासतौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यूक्रेन युद्ध, आतंकवाद, ऊर्जा सुरक्षा और एशियाई व्यापार मार्गों पर चर्चा होने की संभावना है।
भारत इस मंच का इस्तेमाल दो प्रमुख उद्देश्यों के लिए कर सकता है:
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अपने क्षेत्रीय हितों को सुरक्षित करना|
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और पाकिस्तान–चीन के बीच बढ़ते समीकरण को संतुलित करना।