




कर्नाटक सरकार ने 20 अगस्त 2025 को एक बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय लिया। राज्य मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति (SC) के लिए निर्धारित 17% आरक्षण को तीन हिस्सों में बाँटने को मंजूरी दी। यह फैसला लंबे समय से चली आ रही विभिन्न दलित समुदायों की मांगों को देखते हुए लिया गया है। सरकार का मानना है कि यह कदम समाज के भीतर वास्तविक न्याय और समान अवसर सुनिश्चित करेगा।
आरक्षण का नया बंटवारा
कैबिनेट द्वारा स्वीकृत आंतरिक आरक्षण के तहत 17% कोटा को तीन समूहों में विभाजित किया गया है:
-
6% – SC (लेफ्ट) / दलित लेफ्ट → इसमें मुख्य रूप से मादीगा समुदाय और उससे जुड़े अन्य समूह शामिल हैं।
-
6% – SC (राइट) / दलित राइट → इसमें होलेया, अदि द्रविड़, अदि आंध्र, अदि कर्नाटक जैसे समुदाय आते हैं।
-
5% – ‘स्पर्शनीय दलित समुदाय’ (Touchable SCs) → इसमें लंबानी, भोवी, कोरमा, कोर्चा जैसे समुदाय तथा 59 छोटे-छोटे अति पिछड़े एवं घुमंतू जनजाति समूह शामिल हैं।
पहले न्यायमूर्ति नागमोहन दास आयोग ने 17% आरक्षण को पाँच हिस्सों में बाँटने की सिफारिश की थी—6% (SC लेफ्ट), 5% (SC राइट), 4% (स्पर्शनीय दलित), 1% (घुमंतू समुदाय) और 1% (अदि द्रविड़, अदि आंध्र, अदि कर्नाटक)। लेकिन मंत्रिमंडल ने इसे सरल करते हुए तीन श्रेणियों में बाँटने का फैसला किया।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
-
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जाति आरक्षण के भीतर उपवर्गीकरण करने का अधिकार दिया।
-
इसके बाद कर्नाटक सरकार ने नवंबर 2024 में न्यायमूर्ति एच. एन. नागमोहन दास आयोग का गठन किया।
-
आयोग ने लगभग 1,766 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट 4 अगस्त 2025 को सरकार को सौंपी।
-
7 अगस्त को इसे कैबिनेट के सामने रखा गया और विचार-विमर्श के बाद 20 अगस्त को निर्णय लिया गया।
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया, उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार तथा कानून मंत्री एच. के. पाटिल सहित कई मंत्रियों ने इस पर चर्चा की। सरकार ने विधानसभा सत्र में इसे औपचारिक रूप से पेश करने का भी निर्णय लिया है।
समर्थन और सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ
-
राज्य के कई मंत्री और दलित समुदायों के नेता इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए सरकार का आभार व्यक्त कर रहे हैं।
-
उनका कहना है कि इससे अब तक वंचित रहे समुदायों को समान अवसर मिलेगा और उच्च शिक्षा व सरकारी नौकरियों में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा।
-
कांग्रेस सरकार ने इसे “सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम” करार दिया है।
विरोध और असहमति
हालाँकि, सभी समुदाय इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं।
-
कुछ अति पिछड़े और घुमंतू समुदायों ने 5% आरक्षण को अपर्याप्त बताया है। उनका कहना है कि बड़े समूहों के साथ जोड़े जाने से उनका प्रतिनिधित्व और घट सकता है।
-
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र ने सरकार पर ढाई साल तक इस मुद्दे को लटकाने का आरोप लगाया। उन्होंने याद दिलाया कि भाजपा शासनकाल में SC आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17% और ST आरक्षण 3% से बढ़ाकर 7% किया गया था।
-
भाजपा के कुछ नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार को जल्दबाजी में फैसला नहीं करना चाहिए और सभी समुदायों के साथ व्यापक चर्चा करनी चाहिए थी।
-
कुछ विशेषज्ञों ने “डुप्लीकेट क्लेम्स” की आशंका जताई है—यानी कुछ समुदाय एक से अधिक श्रेणियों का लाभ लेने का प्रयास कर सकते हैं।
सामाजिक और कानूनी महत्व
-
इस फैसले के साथ कर्नाटक उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो गया है (तेलंगाना, हरियाणा और आंध्र प्रदेश के बाद) जिसने SC आरक्षण में आंतरिक विभाजन लागू किया है।
-
यह कदम इस धारणा पर आधारित है कि अनुसूचित जाति समुदाय के भीतर भी कुछ बड़े समूह वर्षों से अधिकांश लाभ उठा रहे थे, जबकि छोटे और वंचित समूह पीछे रह गए।
-
नए बंटवारे से अवसरों का न्यायपूर्ण वितरण संभव होगा।
-
आने वाले दिनों में यह नीति सरकारी नौकरियों, उच्च शिक्षा प्रवेश और कल्याणकारी योजनाओं में लागू की जाएगी।
आगे की राह
सरकार को अब इस निर्णय की अधिसूचना जारी करनी होगी। साथ ही भर्ती प्रक्रियाओं और प्रवेश नियमों में नए प्रावधान जोड़ने होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को:
-
शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना होगा।
-
यह देखना होगा कि कोई भी समुदाय लाभ से वंचित न रह जाए।
ऐसी ही देश और दुनिया की बड़ी खबरों के लिए फॉलो करें: www.samacharwani.com