




अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में भारत और कई अन्य देशों पर लगाए गए 50% टैरिफ ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया है। इस फैसले को न केवल व्यापारिक जगत में नकारात्मक रूप से देखा जा रहा है बल्कि इसे लेकर शीर्ष अर्थशास्त्रियों की भी कड़ी आलोचना सामने आई है। मशहूर इकोनॉमिस्ट जेफ्री सैक्स ने इसे “अमेरिकी इतिहास का सबसे मूर्खतापूर्ण कदम” करार दिया है।
सैक्स का कहना है कि इस टैरिफ ने अमेरिका की बजाय BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और हालिया नए सदस्य) को अप्रत्याशित मजबूती और वैश्विक मंच पर जीत दिलाई है।
ट्रंप का 50% टैरिफ: पृष्ठभूमि
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत, चीन, ब्राजील और अन्य एशियाई देशों से आयातित वस्तुओं पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की।
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ट्रंप का तर्क है कि यह कदम अमेरिकी निर्माण क्षेत्र और नौकरियों की रक्षा करने के लिए जरूरी है।
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वे मानते हैं कि “भारत और चीन जैसे देश अमेरिकी बाजार का फायदा उठा रहे थे और अब उन्हें कड़ा संदेश देने की जरूरत है।”
हालांकि, आलोचक इसे आर्थिक राष्ट्रवाद और संरक्षणवादी नीति का खतरनाक उदाहरण मान रहे हैं।
जेफ्री सैक्स का बयान
अंतरराष्ट्रीय विकास और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफ्री सैक्स ने कहा:
“यह कदम न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लिए भी विनाशकारी है। ट्रंप ने BRICS देशों को मजबूती दी है। अब ये देश अमेरिकी दबाव के खिलाफ एकजुट होकर नए व्यापारिक समीकरण बना रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि यह कदम वैश्विक स्तर पर “US isolation” (अमेरिका का अलग-थलग पड़ना) तेज करेगा और इससे डॉलर की पकड़ भी कमजोर हो सकती है।
BRICS की अप्रत्याशित मजबूती
सैक्स का तर्क है कि अमेरिका द्वारा अचानक टैरिफ लगाने से कई देश BRICS के साथ आर्थिक एकजुटता दिखाने पर मजबूर होंगे।
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भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों ने पहले ही संकेत दिए हैं कि वे वैकल्पिक व्यापार मार्ग और स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन बढ़ाएंगे।
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रूस और चीन पहले से ही डॉलर पर निर्भरता घटाने की दिशा में सक्रिय हैं।
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दक्षिण अफ्रीका और हाल ही में शामिल मध्य-पूर्वी देश भी इस नीति से “Global South” की एकजुटता को और मजबूत कर रहे हैं।
भारत की स्थिति
भारत, जिस पर सीधे 50% टैरिफ लगाया गया है, सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है।
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भारतीय निर्यातकों ने चिंता जताई है कि अमेरिका में उनकी प्रतिस्पर्धा घटेगी।
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खासतौर पर टेक्सटाइल, स्टील, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटो पार्ट्स सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है।
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हालांकि, भारत सरकार ने अभी आधिकारिक बयान में केवल इतना कहा है कि “यह कदम अनुचित है और WTO के नियमों का उल्लंघन करता है।”
भारतीय उद्योग जगत मानता है कि यह अवसर एशियाई और अफ्रीकी बाज़ारों में पैठ बनाने और BRICS नेटवर्क का फायदा उठाने का हो सकता है।
अमेरिकी उद्योग जगत में हलचल
ट्रंप प्रशासन भले ही इसे “Made in USA” के नारे के लिए सही बता रहा हो, लेकिन अमेरिकी उद्योग जगत के बड़े हिस्से ने इस पर नाराज़गी जताई है।
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कई कंपनियों का कहना है कि इससे कच्चे माल और इंटरमीडिएट प्रोडक्ट्स की लागत बढ़ेगी।
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इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगाई और बेरोजगारी दोनों बढ़ सकती हैं।
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ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और रिटेल सेक्टर को इसका सबसे ज्यादा असर झेलना पड़ेगा।
वैश्विक प्रतिक्रिया
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यूरोपीय यूनियन (EU) – पहले से ही ट्रंप की व्यापार नीति से नाराज़, अब भारत और चीन के साथ मिलकर वैकल्पिक व्यापारिक रास्ते तलाशने में जुट गया है।
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चीन – पहले ही अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में शामिल रहा है, अब उसने BRICS देशों के साथ एकजुटता दिखाने का ऐलान किया है।
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रूस – तेल और गैस के क्षेत्र में नए समझौते कर रहा है और अमेरिकी डॉलर को बायपास करने की कोशिश तेज कर दी है।
BRICS के लिए “गोल्डन मोमेंट”
सैक्स और कई अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह ट्रंप का फैसला BRICS के लिए ऐतिहासिक अवसर लेकर आया है।
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डॉलर की पकड़ कमजोर होने की स्थिति में युआन और भारतीय रुपया वैकल्पिक मुद्रा के रूप में अधिक इस्तेमाल हो सकते हैं।
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BRICS बैंक (NDB) और अन्य संस्थान अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दे सकते हैं।
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भारत जैसे देश जो अमेरिका और चीन दोनों के साथ व्यापारिक संबंध रखते हैं, अब अधिक “Global South Collaboration” की ओर झुक सकते हैं।
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