




भारत की अर्थव्यवस्था ने अगस्त 2025 में ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसने न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। HSBC द्वारा जारी फ्लैश इंडिया कंपोजिट परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) के अनुसार, अगस्त महीने में भारत का कंपोजिट PMI 61.1 से बढ़कर 65.2 पर पहुंच गया। यह न केवल पिछले दशक का सर्वोच्च स्तर है बल्कि यह भारत की विकास दर को लेकर आशावाद की नई लहर भी लेकर आया है।
सेवाएं सेक्टर का ऐतिहासिक प्रदर्शन
अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी छलांग सेवाएं सेक्टर ने लगाई। अगस्त में इसका PMI 65.6 अंक तक पहुंच गया, जो अब तक का सर्वाधिक है। आईटी सेवाएं, बैंकिंग, टूरिज्म और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में मांग ने न सिर्फ घरेलू बाजार को मजबूत किया बल्कि निर्यात में भी बड़ा इजाफा किया।
विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटलाइजेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल ने सेवाएं सेक्टर को गति दी है। देश के युवा कार्यबल ने भी इस ग्रोथ में अहम योगदान दिया है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी
मैन्युफैक्चरिंग PMI भी 59.8 अंक पर पहुंच गया है, जो 2008 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्सटाइल जैसे उद्योगों में मांग बढ़ने से उत्पादन में तेज़ी आई है। “मेक इन इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” जैसे अभियानों का असर अब जमीनी स्तर पर दिखाई देने लगा है।
रोज़गार के अवसरों में उछाल
नई मांगों और उत्पादन वृद्धि ने रोजगार के अवसर भी बढ़ाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2025 में नौकरियों की रफ्तार पिछले कई वर्षों की तुलना में सबसे तेज़ रही। खासकर शहरी क्षेत्रों में आईटी, ई-कॉमर्स और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भर्तियां की हैं।
ग्रामीण इलाकों में भी छोटे और मध्यम उद्योग (MSME) को सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ मिल रहा है, जिससे वहां भी रोजगार की संभावनाएं बनी हुई हैं।
महंगाई ने बढ़ाई चिंता
हालांकि, इस आर्थिक उछाल के बीच महंगाई ने चिंता भी बढ़ा दी है। रिपोर्ट बताती है कि उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि 2013 के बाद सबसे तेज़ रही है। कच्चे तेल की कीमतों, आयात शुल्क और वैश्विक आपूर्ति संकट ने भारत की कीमतों को प्रभावित किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि महंगाई पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया, तो आम जनता को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।
RBI पर बढ़ा दबाव
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अब मौद्रिक नीति को लेकर कड़े कदम उठा सकता है। बढ़ती महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है। इससे आम आदमी के लोन और ईएमआई महंगे हो सकते हैं, लेकिन यह महंगाई नियंत्रण के लिए ज़रूरी कदम माना जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति मजबूत
HSBC रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत का आर्थिक बूम सिर्फ घरेलू स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असर डाल रहा है।
-
भारत अब एशिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
-
विदेशी निवेशकों का विश्वास और मज़बूत हुआ है।
-
“मेक इन इंडिया” और “वोकल फॉर लोकल” जैसे अभियानों ने निर्यात को भी नई ऊंचाई दी है।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का यह आर्थिक बूम “डेमोग्राफिक डिविडेंड” और सही नीति निर्णयों का परिणाम है।
-
प्रो. अरुण कुमार का कहना है, “भारत अभी जिस तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, अगर यही गति बनी रही तो अगले 5 वर्षों में भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।”
-
वहीं कुछ अर्थशास्त्री चेतावनी देते हैं कि “महंगाई और वैश्विक मंदी का असर भारत पर पड़ सकता है, इसलिए नीति निर्माताओं को सतर्क रहना होगा।”
निष्कर्ष
भारत का यह आर्थिक उछाल निश्चित रूप से गर्व का विषय है। सेवाएं और मैन्युफैक्चरिंग दोनों सेक्टरों में रिकॉर्ड वृद्धि ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक मजबूत खिलाड़ी है। हालांकि, बढ़ती महंगाई और वैश्विक चुनौतियां आने वाले समय में इस ग्रोथ को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए सरकार और RBI को संतुलित नीति अपनानी होगी, ताकि विकास और स्थिरता दोनों बनाए रखी जा सके।