




नासिक रोड और देओलालीगांव के निवासियों ने गुरुवार को एक जोरदार विरोध मार्च निकाला, जिसमें उन्होंने वन विभाग की उस कार्रवाई पर नाराज़गी जताई, जिसने इलाके में घूम रहे तेंदुए को समय पर पकड़ने में स्पष्ट चूक की। यह दहशत तब चरम पर पहुंच गई, जब पिछले सप्ताह वैदणेर डुमाला के आसपास एक तेंदुए ने मात्र तीन साल के बच्चे की जान ले ली। लेकिन उस हादसे को एक सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी तेंदुआ अब तक हिरासत में नहीं आया — इस पर लोगों में भारी असमंजस और नाराज़गी बनी हुई है।
विरोध प्रदर्शन की शुरुआत और संदेश
विरोध मार्च हुतात्मा अनंत कन्हेरे (गोल्फ क्लब) मैदान से शुरू हुआ और वन विभाग के नासिक वेस्ट कार्यालय तक गया। स्थानीय नागरिकों ने एक प्रतिनिधिमंडल भेजा, जिसमें उन्होंने एक ज्ञापन डिप्टी कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (DCF), सिद्धेश सावर्डेकर को सौंपा। प्रदर्शनकारियों ने वन विभाग की निष्क्रियता पर सवाल उठाए और तुरंत कार्रवाई की मांग की।
वन अधिकारी का आश्वासन
डीसीएफ सिद्धेश सावर्डेकर ने स्थानीय जनता को आश्वस्त करते हुए बताया कि उन्हें नागपुर स्थित चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वार्डन से तेंदुए को ट्रांक्विलाइज़ कर पकड़ने की औपचारिक अनुमति मिल चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि वन विभाग ने अब तक लगभग 20 जाल और कई ट्रैप कैमरे इलाके में स्थापित कर दिए हैं। यदि जालों में तेंदुआ फँसता नहीं है, तो अगला कदम ट्रांक्विलाइज़र का उपयोग करके तेंदुए को शांत कर पकड़ना होगा — ताकि किसी और जान को खतरा न हो।
भय और सुरक्षा का टकराव
यह घटना स्थानीय लोगों के लिए सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि दैनिक जीवन में असुरक्षा की चिंताओं का कारण बन गई है। बाज़ार से सब्ज़ियाँ लाना, बच्चे खेलने להע जाना — यह सब अब डर से भर गया है। फैमिली, महिलाएं और बच्चे सार्वजनिक जगहों पर बेहद सजग हो गए हैं।
इस तरह की घटनाओं की शुरुआत नासिक के अन्य इलाकों में भी देखी गई हैं; उदाहरण के तौर पर, प्रधानमंत्री स्तर पर संकट दर्ज हो चुका है जब दो दिनों में दो मौतें हो चुकी हैं — पहले एक तीन वर्षीय बच्चा और बाद में एक वृद्ध महिला [वहीनकी/दिंडोरी क्षेत्र में] तेंदुआ हमले का शिकार बनीं। इन घटनाओं ने पूरे नासिक में वन विभाग के लिए नीतिगत कदमों की मांग को और मजबूती दी।
वन विभाग की तैयारी और चुनौतियाँ
वन विभाग ने तेंदुए की गतिविधियों पर निगरानी तेज़ कर दी है — ट्रैप कैमरों और कैजेस की व्यवस्था, वन्यजीव विशेषज्ञों की टीमों की तैनाती, स्थानीय पुलिस और वन सुरक्षा बलों के साथ समन्वय, सभी प्रयास किए जा रहे हैं।
हालाँकि तेंदुए को पकड़ना आसान नहीं है। यह जानवर बेहद फुर्तीला और घातक है, जो अक्सर गहरी जंगलों में छिपकर चलता है। उसकी आदतों से मेल खाने वाले ज़रिए चिंताजनक तौर पर उन्हें पकड़ना उक्त खास तैयारियों और विशेषज्ञता पर निर्भर करता है। यह रक्षा और बचाव की सुनियोजित बातचीत को दर्शाता है।
क्या हो रहा है भविष्य में?
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संवेदनशील क्षेत्रों में — बच्चे, महिलाएं और काम करने वाले लोग — इनकी सुरक्षा करते हुए, तेंदुए के व्यवहार को मॉनिटर करना एक प्राथमिकता होगी।
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स्थाई समाधान — वन विभाग को जंगल और आबाद क्षेत्रों के बीच एक अच्छा जाल (buffer) स्थापित करना होगा, ताकि जंगली जानवर मानव बसेरों में प्रवेश ना कर सकें।
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सामाजिक जागरूकता — जनजीवन में वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व की भावना बढ़ाने की आवश्यकता है। सावधानी, अलर्टनेस और वन विभाग की भागीदारी को मिला-जुला समाधान ही भविष्य में सुरक्षात्मक राह सुझा सकता है।
निष्कर्ष
नासिक रोड-देओलालीगांव में तेंदुए के हमले के बाद, वन विभाग की धीमी कार्रवाई और जनता की बढ़ती नाराज़गी ने एक ऐसा सामाजिक संकट उजागर किया है, जिसे तुरंत और प्रभावी ढंग से संभाला जाना चाहिए। वन विभाग द्वारा अब फिलहाल शुरू की गई तैयारियाँ जैसे — जाल स्थापित करना, कैमरों की मदद, और ट्रांक्विलाइज़र उपयोग की अनुमति — महत्वपूर्ण कदम हैं।
लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है; तेंदुए को समय रहते पकड़ने और भविष्य के हमलों को रोकने के लिए वन सुरक्षा नीतियों को और मजबूत, स्थानीय भागीदारी को और व्यापक, और देओलालीगांव जैसे इलाकों में वन-मानव सह-अस्तित्व को संतुलित करना अनिवार्य है।
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