




भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने संकेत दिए हैं कि देश के सबसे सक्रिय ट्रेडिंग सेगमेंट, इक्विटी डेरिवेटिव्स (Equity Derivatives) की अवधि बढ़ाई जा सकती है। इस संबंध में बाजार सहभागियों और निवेशकों की राय लेने के लिए सेबी जल्द ही एक कंसल्टेशन पेपर (Consultation Paper) जारी करेगा।
मौजूदा व्यवस्था
फिलहाल भारतीय शेयर बाजार में इक्विटी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स की अवधि अधिकतम तीन महीने होती है। इसमें Near Month, Next Month और Far Month कॉन्ट्रैक्ट्स शामिल हैं। इसका मतलब है कि निवेशक और ट्रेडर्स केवल तीन महीने की सीमा तक ही हेजिंग और ट्रेडिंग रणनीति बना सकते हैं।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजारों जैसे अमेरिका, यूरोप और सिंगापुर में डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स की अवधि छह महीने से लेकर एक साल तक होती है। यही वजह है कि भारतीय निवेशक लंबे समय तक हेजिंग या रणनीतिक पोजिशन बनाने में सीमित महसूस करते हैं।
SEBI चेयरमैन का बयान
SEBI चेयरमैन ने हाल ही में आयोजित एक वित्तीय सम्मेलन में कहा:
“भारतीय डेरिवेटिव्स बाजार काफी परिपक्व हो चुका है। हमें यह देखना होगा कि मौजूदा तीन महीने की अवधि निवेशकों और संस्थागत खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त है या इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। इस दिशा में जल्द ही एक कंसल्टेशन पेपर लाया जाएगा।”
उन्होंने साफ किया कि निवेशकों के हित और बाजार की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।
क्यों जरूरी है डेरिवेटिव्स की अवधि बढ़ाना?
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लंबी अवधि की रणनीति — हेज फंड्स और म्यूचुअल फंड्स जैसी संस्थाओं को अपने निवेश की योजना लंबे समय के लिए बनाने में आसानी होगी।
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बाजार स्थिरता — शॉर्ट-टर्म स्पेकुलेशन कम होगा और दीर्घकालिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
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वैश्विक प्रतिस्पर्धा — भारत पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा डेरिवेटिव बाजार है। टेन्योर बढ़ाने से यह और आकर्षक बनेगा।
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विदेशी निवेशकों की रुचि — लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट्स अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भारतीय बाजार की ओर और खींच सकते हैं।
संभावित चुनौतियाँ
हालांकि, इस कदम के साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं:
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लिक्विडिटी का बंटवारा: लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट्स आने से ट्रेडिंग वॉल्यूम कई कॉन्ट्रैक्ट्स में बंट सकता है।
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जोखिम प्रबंधन: लंबी अवधि तक चलने वाले कॉन्ट्रैक्ट्स का जोखिम अधिक हो सकता है।
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सेटलमेंट प्रक्रिया: लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए एक्सचेंजों को नई सेटलमेंट प्रणाली विकसित करनी होगी।
निवेशकों और विशेषज्ञों की राय
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संस्थागत निवेशकों का कहना है कि यह सही समय पर लिया गया कदम है, जिससे भारतीय बाजार वैश्विक स्तर पर और मजबूत होगा।
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रिटेल निवेशकों का मानना है कि उनकी रणनीतियाँ अधिकतर शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग पर आधारित होती हैं, इसलिए यह कदम सीधे तौर पर उन पर असर नहीं डालेगा।
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ब्रोकरेज हाउसेज़ और विश्लेषकों का मानना है कि इससे बाजार में नई ऊर्जा आएगी और विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी।
कंसल्टेशन पेपर में क्या होगा?
SEBI का आगामी कंसल्टेशन पेपर संभवतः इन मुद्दों पर राय मांगेगा:
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कॉन्ट्रैक्ट्स की अवधि कितनी बढ़ाई जाए? (6 महीने / 12 महीने)
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लिक्विडिटी पर संभावित प्रभाव
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जोखिम प्रबंधन की नई रणनीतियाँ
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क्लियरिंग और सेटलमेंट की प्रणाली
सभी पक्षों से राय लेने के बाद ही अंतिम निर्णय होगा।
निष्कर्ष
SEBI का यह प्रस्ताव भारतीय पूंजी बाजार में एक बड़ा सुधार साबित हो सकता है। यदि इक्विटी डेरिवेटिव्स की अवधि बढ़ती है तो यह न केवल निवेशकों को सुविधा देगा, बल्कि भारतीय शेयर बाजार को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में और आगे ले जाएगा।