




ब्रॉन्को टेस्ट: भारतीय क्रिकेटरों के लिए फिटनेस का नया पैमाना
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने खिलाड़ियों की फिटनेस को लेकर बड़ा बदलाव किया है। लंबे समय से खिलाड़ियों की सहनशक्ति और फिटनेस जांचने के लिए यो-यो टेस्ट मानक माना जाता रहा है, लेकिन अब उसकी जगह ब्रॉन्को टेस्ट ने ले ली है। यह फैसला खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता को और ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से परखने के लिए लिया गया है।
क्या है ब्रॉन्को टेस्ट?
ब्रॉन्को टेस्ट का इस्तेमाल अब तक मुख्य रूप से रग्बी और फुटबॉल जैसे हाई-इंटेंसिटी खेलों में किया जाता था। इस टेस्ट में खिलाड़ी को बार-बार दौड़कर तय दूरी तय करनी होती है।
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खिलाड़ी को 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर की दूरी बार-बार दौड़नी होती है।
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इस पैटर्न को मिलाकर कुल 400 मीटर की दौड़ पूरी करनी होती है।
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यह टेस्ट खिलाड़ी की एरोबिक क्षमता (ऑक्सीजन उपयोग करने की ताकत) और एंड्योरेंस (लंबे समय तक खेलने की क्षमता) का सटीक आकलन करता है।
क्रिकेट में इसे इसलिए लागू किया गया है क्योंकि आधुनिक क्रिकेट सिर्फ तकनीक का खेल नहीं रह गया है, बल्कि यह फिटनेस, स्पीड और स्टैमिना पर भी बराबर निर्भर करता है।
यो-यो टेस्ट और ब्रॉन्को टेस्ट में अंतर
पहले खिलाड़ियों की फिटनेस जांचने के लिए यो-यो टेस्ट अनिवार्य था। यो-यो टेस्ट में खिलाड़ियों को 20 मीटर की दूरी पर आगे-पीछे दौड़ना होता है, जिसमें समय अंतराल कम होता जाता है।
लेकिन ब्रॉन्को टेस्ट उससे अलग है:
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यो-यो टेस्ट → खिलाड़ी की एनारोबिक क्षमता और रिकवरी स्पीड पर जोर देता है।
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ब्रॉन्को टेस्ट → खिलाड़ी की एरोबिक क्षमता और लंबी अवधि तक लगातार परफॉर्म करने की क्षमता को मापता है।
इसका सीधा मतलब यह है कि जो खिलाड़ी ब्रॉन्को टेस्ट पास करेंगे, वे न सिर्फ तेजी से दौड़ सकेंगे बल्कि लंबे समय तक स्टैमिना बनाए रख पाएंगे।
क्यों ज़रूरी है यह बदलाव?
BCCI का मानना है कि आज के क्रिकेट में फिटनेस ही सबसे बड़ा हथियार है।
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T20 क्रिकेट में तेज़ भागदौड़, रनिंग बिटवीन द विकेट्स और डायरेक्ट हिट्स के लिए स्पीड चाहिए।
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टेस्ट क्रिकेट में घंटों तक फील्डिंग और बैटिंग के लिए स्टैमिना चाहिए।
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ODI क्रिकेट में दोनों का मिश्रण चाहिए।
इन सबको देखते हुए, ब्रॉन्को टेस्ट खिलाड़ियों की कुल शारीरिक क्षमता का सबसे अच्छा पैमाना माना जा रहा है।
खिलाड़ियों पर असर
इस नए नियम ने खिलाड़ियों के बीच हलचल मचा दी है। जो खिलाड़ी फिटनेस पर लगातार ध्यान देते हैं, उनके लिए यह बदलाव सकारात्मक है। वहीं, जिनकी फिटनेस पर सवाल उठते रहे हैं, उनके करियर पर अब खतरा मंडरा सकता है।
टीम इंडिया में कई बार ऐसे उदाहरण देखे गए हैं, जब फिटनेस की वजह से खिलाड़ी बाहर हुए—
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यो-यो टेस्ट में फेल होने के कारण युवराज सिंह और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ी टीम से बाहर हो गए थे।
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अब ब्रॉन्को टेस्ट में भी असफल रहने वाले खिलाड़ियों को टीम इंडिया से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
कोचिंग स्टाफ और फिटनेस ट्रेनर्स की भूमिका
टीम इंडिया का कोचिंग स्टाफ और फिटनेस ट्रेनर्स पहले से ही खिलाड़ियों को इस टेस्ट के लिए तैयार करने में जुट गए हैं। जिम सेशन के साथ अब खिलाड़ियों की दौड़ने की प्रैक्टिस पर जोर दिया जा रहा है। फिजिकल ट्रेनर्स का मानना है कि यह टेस्ट खिलाड़ियों को और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त बनाएगा।
खिलाड़ियों और एक्सपर्ट्स की राय
कुछ पूर्व क्रिकेटरों का कहना है कि यह बदलाव सही है क्योंकि अब क्रिकेट की रफ्तार बढ़ गई है। वहीं, कुछ का मानना है कि हर खिलाड़ी की फिटनेस क्षमता अलग होती है—कुछ बल्लेबाजों से उतनी दौड़ की उम्मीद नहीं की जा सकती जितनी एक ऑलराउंडर या फील्डर से की जाती है।
लेकिन एक बात पर सब सहमत हैं कि जो खिलाड़ी टीम इंडिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, उन्हें अब सिर्फ बैट और बॉल ही नहीं बल्कि फिटनेस टेस्ट में भी 100% तैयार रहना होगा।
आगे का रास्ता
BCCI की इस पहल से भारतीय क्रिकेट का भविष्य और ज्यादा मजबूत होता नजर आ रहा है। यह बदलाव खिलाड़ियों में अनुशासन और फिटनेस को बढ़ावा देगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीम इंडिया को और प्रतिस्पर्धी बनाएगा।