




भारत की वित्तीय और कॉर्पोरेट दुनिया में एक बार फिर बड़ा भूचाल तब आया, जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCOM) और इसके प्रमोटर अनिल अंबानी को आधिकारिक रूप से ‘फ्रॉड’ घोषित कर दिया। यह कदम न केवल बैंकिंग सेक्टर की पारदर्शिता को लेकर एक सख्त संदेश है, बल्कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस की खामियों पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। इसके बाद CBI ने औपचारिक FIR दर्ज कर छापेमारी शुरू कर दी, जिससे मामला और गरम हो गया है।
SBI का बड़ा कदम: RCOM और Anil Ambani पर ‘Fraud’ का ठप्पा
13 जून 2025 को SBI ने RCOM और अनिल अंबानी को ‘फ्रॉड’ श्रेणी में रखा, जो RBI की फ्रॉड-रिस्क मैनेजमेंट गाइडलाइन और बैंक की बोर्ड-स्वीकृत फ्रॉड पॉलिसी के तहत किया गया एक अहम कदम था।
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SBI का कुल एक्सपोज़र:
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₹2,227.64 करोड़ (फंड आधारित)
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₹786.52 करोड़ (बैंक गारंटी)
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इस प्रकार बैंक का कुल जोखिम ₹3,000 करोड़ से अधिक का है। SBI ने यह जानकारी 24 जून को RBI को दी और साथ ही CBI में शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने भी लोकसभा में लिखित उत्तर में इस जानकारी की पुष्टि की।
CBI की कार्रवाई: छापेमारी और FIR दर्ज
SBI की शिकायत पर आगे बढ़ते हुए, CBI ने 23 अगस्त 2025 को मुंबई स्थित RCOM और अनिल अंबानी से जुड़े कई परिसरों पर छापेमारी की।
CBI का फोकस इस बात पर है कि:
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क्या SBI और अन्य बैंकों से लिए गए लोन को वास्तविक बिजनेस उद्देश्यों के बजाय अन्य परियोजनाओं या कंपनियों में ट्रांसफर किया गया?
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क्या पैसों को एक जटिल कॉर्पोरेट नेटवर्क के ज़रिए शेल कंपनियों में घुमाया गया?
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क्या जानबूझकर डिफॉल्ट किया गया जिससे बैंकों को हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ?
CBI अब डिजिटल दस्तावेज़, बैंक ट्रेल और लेन-देन के सबूत इकट्ठा कर रही है ताकि यह साबित किया जा सके कि यह मामला महज़ ‘बिजनेस फेल्योर’ नहीं बल्कि ‘वित्तीय धोखाधड़ी’ है।
RCOM की मौजूदा स्थिति: दिवाला और IBC प्रक्रिया में फंसी कंपनी
RCOM पहले से ही वित्तीय संकट में है और 2016 के Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) के तहत कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) में चल रही है।
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6 मार्च 2020 को क्रेडिटर्स कमिटी ने NCLT, मुंबई में Resolution Plan दाखिल किया था।
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लेकिन अब तक इस पर अंतिम मंज़ूरी नहीं मिल सकी।
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इसी दौरान, SBI ने अनिल अंबानी के खिलाफ व्यक्तिगत दिवाला कार्यवाही भी शुरू कर दी, जो अभी NCLT में लंबित है।
इस वजह से RCOM न केवल एक कॉर्पोरेट बैटल बल्कि एक कानूनी बैटल में भी उलझ चुकी है।
कानूनी उलझनें और पहले का इतिहास
RCOM का ‘फ्रॉड’ टैग पहली बार 2020 में लगाया गया था। लेकिन:
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दिल्ली हाई कोर्ट ने स्टेटस-क़्वो ऑर्डर देकर इस पर रोक लगा दी थी।
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों की समीक्षा होनी चाहिए।
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सितंबर 2023 में RCOM से ‘फ्रॉड टैग’ हटा लिया गया।
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लेकिन जुलाई 2024 में RBI की गाइडलाइन का पालन करते हुए इसे दोबारा Fraud घोषित कर दिया गया।
यानी RCOM का यह मामला पिछले पाँच सालों से कानूनी खींचतान में उलझा रहा है।
ED की जांच और व्यापक वित्तीय विवाद
RCOM और अनिल अंबानी की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। ED (Enforcement Directorate) भी इस पूरे मामले की जांच कर रही है।
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हाल ही में अनिल अंबानी को Yes Bank के ₹17,000 करोड़ लोन घोटाले से जुड़े मामले में 10 घंटे तक पूछताछ झेलनी पड़ी।
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ED ने आरोप लगाया कि ₹3,000 करोड़ के लोन ट्रांजैक्शन अन्य परियोजनाओं और कंपनियों में गलत तरीके से ट्रांसफर किए गए।
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हालांकि, इस बीच Canara Bank ने जुलाई 2025 में अपना Fraud Classification वापस ले लिया, जिससे कानूनी पेचीदगियाँ और बढ़ गईं।
RCOM संकट का व्यापक असर
यह पूरा मामला सिर्फ एक कंपनी या एक प्रमोटर तक सीमित नहीं है। इसका असर भारत के बैंकिंग सेक्टर और कॉर्पोरेट लोन सिस्टम पर भी गंभीर पड़ सकता है।
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