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    The Vishwa Bully: अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का दबदबा और विवाद

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    भारत को विश्व-गुरु बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाला देश कहा जाता है, लेकिन खेलों की दुनिया में, ख़ासकर क्रिकेट में, भारत पहले ही एक तरह से “विश्व-बुली (Vishwa Bully)” बन चुका है। हाल ही में प्रसिद्ध इतिहासकार और क्रिकेट समीक्षक रामचंद्र गुहा ने  लिखा कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) अब उस स्थिति में पहुंच चुका है जहाँ उसकी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति ने पूरे ICC (International Cricket Council) को अपने नियंत्रण में ले लिया है।

    यह केवल खेल का मामला नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक हित और राजनीति से जुड़ा हुआ विषय भी है।

    BCCI: धन और शक्ति का केंद्र

    BCCI दुनिया का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड है। अकेले भारत से आने वाला राजस्व ICC की कुल आमदनी का लगभग 40% से अधिक है। भारत में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं बल्कि एक धर्म की तरह है।

    • IPL जैसे टूर्नामेंट ने BCCI की आर्थिक ताकत को कई गुना बढ़ा दिया।

    • ICC की मीडिया राइट्स और स्पॉन्सरशिप का बड़ा हिस्सा भारतीय दर्शकों और कंपनियों पर निर्भर करता है।

    • इसीलिए, अन्य क्रिकेट बोर्डों की तुलना में BCCI के पास अधिक वोट और अधिक प्रभाव है।

    रामचंद्र गुहा का कहना है कि जब पैसा ही नियम बनाने लगे, तो खेल का चरित्र धीरे-धीरे बदल जाता है। पहले यह ताकत इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के पास थी, लेकिन आज यह भारत के हाथ में आ गई है।

    अतीत से सबक: इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की हेजेमनी

    क्रिकेट के शुरुआती दौर में अंतर्राष्ट्रीय नियमों और फैसलों पर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का दबदबा था।

    • 1909 में जब ICC (तब का Imperial Cricket Conference) बना, तब केवल इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका इसके सदस्य थे।

    • धीरे-धीरे बाकी देश जुड़े, लेकिन निर्णय लेने की शक्ति इन्हीं दो देशों के पास रही।

    गुहा का तर्क है कि जिस प्रकार पहले “एंग्लो-ऑस्ट्रेलियन हेजेमनी” ने खेल के हितों को नुकसान पहुँचाया, आज वही गलती भारत दोहरा रहा है।

    2012 में टोनी ग्रेग की भविष्यवाणी

    इंग्लैंड के पूर्व कप्तान टोनी ग्रेग ने 2012 में एक भाषण में कहा था कि भारत को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
    उन्होंने चेतावनी दी थी:

    “भारत अगर सच में क्रिकेट का नेतृत्व करना चाहता है, तो उसे पैसे और राजनीति से ऊपर उठकर क्रिकेट की आत्मा की रक्षा करनी होगी।”

    आज यह भविष्यवाणी सही साबित होती दिख रही है।

    Jay Shah और राजनीतिक प्रतीकवाद

    हाल ही में जय शाह (BCCI सचिव और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र) को ICC का चेयरमैन चुना गया। आलोचकों का कहना है कि यह सिर्फ खेल प्रशासन नहीं बल्कि राजनीतिक और कॉर्पोरेट ताकत का प्रदर्शन है।

    रामचंद्र गुहा ने इसे प्रतीकात्मक कहा—“यह चुनाव यह बताता है कि अब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट पर भारत का ही कब्ज़ा है। बाकी देश केवल औपचारिक सदस्य रह गए हैं।”

    छोटे क्रिकेट बोर्डों की चिंता

    बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, वेस्ट इंडीज़ जैसे छोटे बोर्ड BCCI की नीतियों से असंतुष्ट हैं।

    • उनके मुताबिक, टूर्नामेंट के शेड्यूल, प्रसारण अधिकार और मेजबानी सब कुछ भारत की सहमति से तय होता है।

    • आर्थिक मदद के बिना ये बोर्ड चल नहीं सकते, और भारत इस स्थिति का फायदा उठाता है।

    Arab News ने अपनी रिपोर्ट में लिखा:

    “कितने दिन और विश्व क्रिकेट भारत के इस बुलीइंग रवैये को झेलेगा?”

    वित्तीय असमानता और अन्याय

    भारत की टीम जब किसी सीरीज़ में जाती है, तो वहां का बोर्ड मोटा मुनाफा कमाता है। लेकिन इसके उलट, भारत छोटे देशों को खेलने के लिए शायद ही कोई मौका देता है।

    • उदाहरण के लिए, वेस्ट इंडीज़ या ज़िम्बाब्वे के खिलाफ भारत शायद ही फुल टेस्ट सीरीज़ खेलता है।

    • ICC की राजस्व वितरण प्रणाली में भारत को सबसे बड़ा हिस्सा मिलता है, जिससे शेष देशों के पास संसाधन कम बचते हैं।

    “Vishwa Bully” शब्द का मायना

    रामचंद्र गुहा ने अपने लेख में भारत को “Vishwa Bully” कहा। उनका तर्क है कि—

    1. भारत अपने आर्थिक प्रभुत्व का उपयोग दबाव बनाने में करता है।

    2. निष्पक्षता और संतुलन की जगह अब एकतरफा फैसले होते हैं।

    3. ICC अब स्वतंत्र संस्था नहीं, बल्कि BCCI का एक विस्तारित अंग बन चुकी है।

    क्रिकेट की आत्मा पर खतरा

    क्रिकेट सिर्फ बल्ला-गेंद का खेल नहीं है। इसमें स्पोर्ट्समैनशिप, न्याय और प्रतिस्पर्धा का भाव सबसे अहम है।
    लेकिन जब वित्तीय और राजनीतिक दबाव ज़्यादा हावी हो जाते हैं, तो—

    • खेल में असमान अवसर पैदा होते हैं।

    • छोटे देशों की टीमें धीरे-धीरे हाशिए पर चली जाती हैं।

    • टेस्ट क्रिकेट जैसी परंपरागत फॉर्मेट पर खतरा मंडराने लगता है।

    आगे की राह: क्या भारत संतुलन ला पाएगा?

    अब सवाल यह है कि क्या भारत अपने इस “बुली” इमेज को छोड़कर वास्तविक नेतृत्व दिखा पाएगा?

    • भारत चाहे तो अपनी ताकत का इस्तेमाल छोटे बोर्डों की मदद और क्रिकेट के विस्तार में कर सकता है।

    • यदि भारत केवल पैसा और शक्ति के सहारे फैसले करेगा, तो भविष्य में ICC टूट सकता है या असंतोष की लहर और गहरी हो सकती है।

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