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    विदेश मंत्री जयशंकर का कड़ा पलटवार: “अगर समस्या है तो न खरीदें” — भारत की आत्मनिर्भर नीति पर साफ संदेश

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    भारत की विदेश नीति और रणनीतिक स्वतंत्रता पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक बार फिर अपने स्पष्ट और कड़े रुख से सभी को संदेश दिया है। हाल ही में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संवाद के दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों की आलोचनाओं और दबाव का तीखा जवाब देते हुए कहा —
    “अगर समस्या है तो न खरीदें।”

    यह बयान भारत की आत्मनिर्भरता, स्वदेशी रक्षा सौदों और स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर सरकार की दृढ़ता को दर्शाता है।

    बयान का संदर्भ

    विदेश मंत्री का यह बयान उन देशों की आलोचना के जवाब में आया है जो भारत की ऊर्जा खरीद, रक्षा सौदों और वैश्विक साझेदारियों पर सवाल उठाते रहे हैं।

    • ऊर्जा क्षेत्र: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदना जारी रखा, जिस पर पश्चिमी देशों ने आपत्ति जताई।

    • रक्षा क्षेत्र: भारत ने कई बार पश्चिमी हथियारों और तकनीक पर निर्भर होने के बजाय स्वदेशी रक्षा उत्पादन और रूस जैसे परंपरागत सहयोगियों के साथ सौदे किए।

    • विदेश नीति: भारत हमेशा से अपने राष्ट्रीय हित और रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वोपरि मानता आया है।

    जयशंकर ने स्पष्ट किया कि कोई भी देश भारत को यह नहीं बता सकता कि उसे किससे व्यापार करना है और किससे नहीं।

    आत्मनिर्भर भारत और रक्षा सौदे

    मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रमों के तहत रक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव किए हैं।

    • स्वदेशी फाइटर जेट तेजस,

    • अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें,

    • आर्टिलरी गन ‘धनुष’,

    • और कई डिफेंस प्रोजेक्ट अब भारत में ही विकसित हो रहे हैं।

    जयशंकर का यह बयान इस दिशा में भारत की नीतियों का समर्थन करता है। उनका साफ कहना था कि अगर किसी देश को भारत की नीति से समस्या है तो उसे सौदे करने की जरूरत नहीं है।

    पश्चिमी आलोचना पर भारत का रुख

    कई पश्चिमी देश भारत पर दबाव डालते हैं कि वह रूस से दूरी बनाए और उनके साथ रक्षा सहयोग बढ़ाए। लेकिन भारत ने बार-बार यह दोहराया है कि उसकी प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ भारत का राष्ट्रीय हित है।

    जयशंकर ने कहा,

    • “भारत किसी का मोहरा नहीं बनेगा।”

    • “हमारी विदेश नीति ‘भारत फर्स्ट’ है।”

    • “जो हमारे सहयोगी बनना चाहते हैं उनका स्वागत है, लेकिन हमें कोई आदेश नहीं दे सकता।”

    वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति

    आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई बड़ी शक्ति भी।

    • भारत की आवाज़ वैश्विक मंचों पर और मजबूत हुई है।

    • जी20 की अध्यक्षता ने भी भारत की भूमिका को और बढ़ाया है।

    • ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और व्यापार जैसे मुद्दों पर भारत अब निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

    जयशंकर के बयान से साफ है कि भारत किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं है।

    विशेषज्ञों की राय

    विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि जयशंकर का यह बयान भारत की बढ़ती ताकत और आत्मविश्वास का प्रतीक है।

    • प्रो. हर्ष पंत (विदेश नीति विश्लेषक) का कहना है कि यह संदेश पश्चिम को साफ समझाता है कि भारत अब उनकी शर्तों पर नहीं चलेगा।

    • रक्षा विश्लेषक अजय शुक्ला ने कहा कि भारत का यह रुख लंबे समय तक उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता को मजबूत करेगा।

    • राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि यह बयान 21वीं सदी में भारत की बढ़ती कूटनीतिक शक्ति का प्रमाण है।

    विपक्ष और आलोचना

    हालांकि विपक्ष का कहना है कि सरकार को केवल बयानों से आगे बढ़कर वास्तविक सुधारों पर ध्यान देना चाहिए।

    • कांग्रेस का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान अभी भी केवल घोषणाओं तक सीमित है।

    • कुछ आलोचक यह भी मानते हैं कि भारत को अपने रक्षा उत्पादन में और तेजी लानी चाहिए ताकि आयात पर निर्भरता पूरी तरह खत्म हो सके।

    भारत की रणनीति और भविष्य

    भारत आने वाले वर्षों में कई बड़े कदम उठाने की तैयारी कर रहा है:

    1. रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाना

    2. अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेकिन अपने हितों को प्राथमिकता।

    3. ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण ताकि भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित रहे।

    4. निर्यात बढ़ाना — भारत अब न केवल अपनी जरूरतें पूरी करना चाहता है बल्कि हथियारों और तकनीक का निर्यात भी बढ़ा रहा है।

    विदेश मंत्री जयशंकर का बयान —
    “अगर समस्या है तो न खरीदें”
    — केवल पश्चिमी देशों को जवाब नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए भारत की नई रणनीतिक सोच का संदेश है।

    भारत अब किसी भी दबाव में झुकने को तैयार नहीं है। उसकी विदेश नीति साफ है:
    👉 “भारत फर्स्ट, आत्मनिर्भर भारत।”

    2047 तक जब भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब संभव है कि यह आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भारत वैश्विक राजनीति और रक्षा क्षेत्र में सबसे अग्रणी शक्तियों में से एक होगा।

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