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    उत्तर बंगाल में रेलवे स्टाफ की सतर्कता से बची हाथियों की जान, बड़ा हादसा टला

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    उत्तर बंगाल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां के जंगलों और चाय बागानों के बीच से गुजरने वाली रेल लाइनें कई बार वन्यजीवों, विशेषकर हाथियों के लिए खतरनाक साबित होती हैं। हाथियों के पारंपरिक मार्ग से गुजरती ट्रेनों की वजह से पिछले कुछ वर्षों में कई दुखद हादसे हुए हैं। लेकिन हाल ही में उत्तर बंगाल में रेलवे स्टाफ की त्वरित सतर्कता और जिम्मेदारी ने एक बड़ा हादसा टाल दिया और हाथियों का एक पूरा झुंड सुरक्षित बच गया।

    यह घटना उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी ज़िले के नजदीक घटित हुई, जहां घने जंगल और हाथियों के कॉरिडोर मौजूद हैं। रेलवे स्टाफ ने अचानक देखा कि ट्रैक पर हाथियों का एक झुंड प्रवेश कर गया है। तुरंत ही उन्होंने ड्राइवर को चेतावनी संदेश भेजा और ट्रेन को समय रहते रोक दिया।

    करीब दस से पंद्रह हाथियों का यह समूह धीरे-धीरे ट्रैक पार कर रहा था। अगर ज़रा सी भी देरी होती, तो यह झुंड ट्रेन से टकरा सकता था और न केवल हाथियों की जान जाती बल्कि यात्रियों की सुरक्षा पर भी संकट आ सकता था।

    भारतीय रेलवे ने उत्तर बंगाल और असम जैसे इलाकों में, जहां हाथियों की आवाजाही अधिक है, विशेष सतर्कता उपाय अपनाए हैं।

    • जंगलों से गुजरने वाले रूट पर ड्राइवरों को कम स्पीड में चलने का निर्देश दिया जाता है।

    • रेलवे स्टाफ को ट्रैक पर नजर बनाए रखने और किसी भी असामान्य स्थिति पर तुरंत सूचना देने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

    • कई जगह हाथी अलर्ट सिस्टम और सेंसर आधारित उपकरण लगाने पर भी काम चल रहा है।

    यह घटना दिखाती है कि जब स्टाफ अपनी ड्यूटी को गंभीरता से निभाता है, तो हादसे टाले जा सकते हैं।

    हाथी–रेल टकराव की समस्या

    उत्तर बंगाल और असम में डोमोहनी, अलीपुरद्वार और जलपाईगुड़ी जैसे इलाके हाथियों के कॉरिडोर माने जाते हैं। यहां हाथियों के रेल से टकराने की कई घटनाएं हो चुकी हैं।

    • 2013 में अलीपुरद्वार में 7 हाथियों की मौत ट्रेन से टकराकर हो गई थी।

    • 2019 में जलपाईगुड़ी में भी एक बड़ा हादसा हुआ था।

    • ऐसे हादसे पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय रहे हैं।

    इस बार रेलवे स्टाफ की सतर्कता से हादसा टल गया, जो भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

    विशेषज्ञों की राय

    • वन्यजीव विशेषज्ञ प्रो. अरिंदम घोष का कहना है कि “उत्तर बंगाल के जंगलों में हाथियों के कॉरिडोर को रेलवे नेटवर्क के साथ संतुलित करना चुनौतीपूर्ण है। यह घटना इस बात की मिसाल है कि सही सतर्कता और मानवीय दृष्टिकोण से हादसे रोके जा सकते हैं।”

    • रेलवे अधिकारियों का कहना है कि वे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें जीपीएस और सैटेलाइट आधारित अलर्ट शामिल होंगे।

    • स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता मानते हैं कि सरकार को रेलवे ट्रैकों के आसपास और अधिक अंडरपास और ओवरपास बनाने चाहिए ताकि हाथियों को सुरक्षित रास्ता मिल सके।

    जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया

    जैसे ही यह खबर सामने आई, स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया पर रेलवे स्टाफ की सराहना होने लगी।

    • ट्विटर पर कई यूज़र्स ने लिखा कि “रेलवे ने न केवल इंसानियत बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया है।”

    • फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इस घटना की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो गए।

    • लोगों ने मांग की कि इस सतर्क स्टाफ को सम्मानित किया जाना चाहिए।

    रेलवे और भविष्य की चुनौतियाँ

    हालांकि यह घटना सकारात्मक रही, लेकिन यह स्पष्ट करती है कि रेलवे और वन्यजीव संरक्षण के बीच समन्वय की अभी भी जरूरत है।

    • नए अलर्ट सिस्टम लगाने होंगे।

    • ट्रैक पर स्पीड लिमिट का सख्ती से पालन करना होगा।

    • हाथी कॉरिडोर के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाने की योजना बनानी होगी।

    • स्थानीय वन विभाग और रेलवे का संयुक्त प्रयास ज़रूरी है।

    उत्तर बंगाल की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि जब इंसान सतर्क और संवेदनशील होता है, तो बड़े से बड़ा हादसा टाला जा सकता है। रेलवे स्टाफ की सतर्कता से हाथियों का झुंड सुरक्षित बच गया और यात्रियों की जान भी खतरे से दूर रही।

    यह घटना न केवल रेलवे की जिम्मेदारी का परिचय है, बल्कि यह भी बताती है कि विकास और पर्यावरण को साथ लेकर चलना ही भविष्य की राह है। यदि रेलवे और वन्यजीव विभाग मिलकर काम करें, तो निश्चित ही ऐसे हादसों को पूरी तरह रोका जा सकता है।

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