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    नाशिक के विख्यात साहित्यकार डॉ. नितीन भरत वाघ का आकस्मिक निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर

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    सोमवार शाम (25 अगस्त 2025) को गोवा की राजधानी पणजी में, नाशिक के प्रसिद्ध साहित्यकार, समीक्षक और गाढे (बौद्ध और आंबेडकरी) चिंतन के विशेषज्ञ, डॉ. नितीन भरत वाघ (उम्र—48 वर्ष) का अचानक हृदयाघात (heart attack) से निधन हो गया। यह घटना साहित्य व विचार-वृत्तियों में शोक की व्यापक हलचल पैदा कर रही है।

    1. घटना का विवरण

    डॉ. वाघ सावंतवाड़ी गए थे, जहाँ वे अपने नए पुस्तक प्रकाशन की चर्चा के लिए वरिष्ठ लेखक रजन गवस से मिलने वाले थे। इसी दौरान उन्होंने होटल में अचानक दिल का दौरा पड़ा। स्थानांतरित किए जाने के उपरांत उन्हें सिंधुदुर्ग के ओरोस में भर्ती कराया गया और अगले दिन (रविवार) अँजिओप्लास्टी की गई। फिर पणजी में स्थित अस्पताल ले जाते समय—सोमवार शाम को—उनकी प्राणज्योति समाप्त हो गई।

    इस आकस्मिक निधन ने यह सवाल पैदा कर दिया कि एक संतुलित एवं स्वस्थ जीवन जीने वाले महान लेखक को अचानक कैसे हृदयाघात घेर लेता है—यह स्थिति दर्शकों में गहरा दुःख और आघात पैदा कर रही है।

    2. साहित्य, समाज और चिंतन का त्रिसंधी व्यक्तित्व

    डॉ. वाघ ने कुछ वर्ष पहले सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर पूर्णकालिक लेखन को अपना करियर बनाया। उनके लेखन का केंद्र बुद्ध, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, और नामदेव ढसाळ जैसे महान विचारों और व्यक्तियों का चिंतन रहा।

    इनके प्रमुख साहित्यिक कृतियों में उल्लेखनीय हैं:

    • ‘झेन’ – एक अनूठी कादंबरी

    • ‘निळावंती’ – जिसे पाठकों और आलोचकों द्वारा खूब सराहा गया

    • चित्रपट कथाएँ – जिन्होंने फिल्मी दुनिया में उनकी लेखन शैली को प्रतिबिंबित किया

    • ‘हिंदू-मुगल सांस्कृतिक समन्वय, औरंगजेब, सन 1857 के बाद भारत का मुसलमान’ – यह उनका महत्त्वाकांक्षी और गहन शोधात्मक पुस्तक प्रकाशन की औपचारिक मंज़िल पर थी, लेकिन दुर्भाग्यवश, वह प्रकाशन तक नहीं पहुंच पाई। इसके प्रकाशन का सौभाग्य वे स्वयं देख नहीं सके।

    उनकी लेखन शैली और विषयवस्तु ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह केवल रचनाकार ही नहीं बल्कि एक गहन चिंतक और समाजशास्त्री भी थे।

    3. सामाजिक और साहित्यिक शोक

    उनके अचानकच चले जाने से साहित्य जगत में गहरा शोक व्याप्त है। सोशल मीडिया से लेकर साहित्यिक मंडलों तक, हर तरफ उनकी मृत्यु के प्रति संवेदना व्यक्त की जा रही है। समाज की गम्भीर और न्यायप्रिय आवाज़—डॉ. वाघ—के बिना अधूरी लगती है।

    उनकी पश्चात्, परिवार में माँ, पिता, पत्नी, एक पुत्र, और दो भाई हैं—जो अब एक विलक्षण व्यक्तित्व और अभिभावक को खोकर गहरे दुःख से जूझ रहे हैं।

    4. अंत्यक्रिया – अंतिम विदाई

    उनका पार्थिव शरीर नाशिक लाया जा चुका है। उन्हें मंगलवार (26 अगस्त 2025) दोपहर में पंचवटी स्थित अमरधाम में अंतिम विदाई दी जाएगी। साहित्य और आत्मह्रदय के प्रति जुनून रखने वाले डॉ. वाघ को इस अंतिम रस्म में कवि, लेखक एवं छात्र-समूह भावपूर्ण श्रद्धांजलि देंगे।

    5. साहित्यिक विरासत और भावी चिन्तन

    डॉ. वाघ की साहित्यिक यात्रा बताती है कि ज्ञान और लेखन का शक्ति स्रोत न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम हो सकता है। उन्होंने बौद्ध और आंबेडकरी विचारों का विवेचन बुद्धिमत्ता से किया, जो आज भी विचारक वर्ग के लिए प्रेरणादायक है। उनकी कृतियाँ और लेखन, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक धारा में मर्मस्पर्शी बदलाव लाने की क्षमता लिए हुए हैं।

    उनकी अधूरी रह गई पुस्तकें—खासकर ‘हिंदू-मुगल सांस्कृतिक समन्वय’, उनके विद्यमान विचारों और खोजों का मील का पत्थर हो सकती थीं। लेकिन प्रकाशन चक्र पूरा होने से पहले उनका जाना एक साहित्यिक कमी ही नहीं, अपितु चिंतन में एक अपूरणीय अभाव है।

    निष्कर्ष

    डॉ. नितीन भरत वाघ का आकस्मिक निधन—उनकी साहित्यिक उपलब्धियों, विषयों की गहराई और सामाजिक चिंतन ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाया। उनके लेखन का प्रभाव आने वाले दशकों तक साहित्य, समाज और रचनात्मक चिंतन को प्रेरित करता रहेगा। एक ऐसे युगलोक (बुद्ध + आंबेडकर) चिंतक का चले जाना—सिर्फ एक लेखक का नहीं बल्कि समाज के एक संरक्षक की क्षति है। उनकी यादें, उनकी लेखनी, और उनका चिंतन हमेशा जिन्दा रहेगा।

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