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    वक़्त पर खाली कुर्सियां” — J&K की चार रिक्त राज्यसभा सीटें और कानूनी गुत्थी

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    1. पृष्ठभूमि: सीटें रिक्त, प्रतिनिधित्व गुम

     J&K में चार राज्यसभा सीटें लंबी अवधि से खाली हैं — फरवरी 2021 से। उस समय UT पर राष्ट्रपति शासन लागू था, जिसके कारण चुनाव नहीं हो पाए थे। तब से अब तक यह सीटें भरने का काम टला रहा है, जबकि J&K में अब विधान सभा का अस्तित्व है और हाल ही में सरकार बनी है। इससे स्नातक और मंथनात्मक सांसदों का प्रतिनिधित्व अनुपस्थित है।

    2. EC की पहल और कानून मंत्रालय की प्रतिक्रिया

    इस मुद्दे को हल करने के लिए चुनाव आयोग (EC) ने इस वर्ष कानून मंत्रालय को प्रस्ताव भेजकर राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश देने का अनुरोध किया था। इसका उद्देश्य था कि J&K की चार सीटों का कार्यकाल दो-दो वर्ष बाद एक-एक सीट खाली करने वाला बनाया जाए — ताकि रोटेशन प्रणाली का पालन हो सके।

    हालांकि, कानून मंत्रालय ने 22 अगस्त को यह प्रस्ताव खारिज कर दिया, यह तर्क देते हुए कि कानून में ऐसे किसी आदेश की अनुमति नहीं है। उनका कहना था कि केवल दो मौकों (1952 और 1956 में) के लिए ही संविधान (Seventh Amendment Act, 1956) और Representation of the People Act, 1951 के तहत ऐसे आदेश लागू किए गए थे — और वर्तमान स्थिति उनमें शामिल नहीं है।

    3. संवैधानिक खिंचाव: Article 83 और रोटेशन प्रणाली

    संविधान के Article 83 के तहत राज्यसभा एक स्थायी संस्था है, जहाँ एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवा निवृत्त होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सदन निरंतर कार्य करता रहे। लेकिन J&K में राष्ट्रपति शासन और विधानसभा विघटन की वजह से ये सीटें एक साथ ख़ाली हो गईं — जिससे यह रोटेशन प्रणाली बिगड़ गई।

    पंजाब और दिल्ली में भी इसी तरह की स्थिति बनी — लेकिन चुनाव आयोग ने केवल J&K के लिए ही तत्काल प्रभारी विधि मंत्रालय को इस तरह का आदेश देने की माँग की थी।

    4. J&K के प्रतिनिधित्व का नुकसान और VP चुनाव

    इन रिक्त सीटों के कारण J&K का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व अभाव में चला गया है। यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में J&K के सांसद वोट डालने में असमर्थ रहेंगे। इससे क्षेत्र की आवाज़ संसद में गुम हो जाएगी।

    यह पहली बार नहीं है — 2022 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी J&K का राज्यसभा प्रतिनिधित्व नहीं हुआ था।

    5. राजनीतिक असंतोष: CM का सवाल

    J&K के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाया है — “ऐसे लिए गए निर्णय अजीब हैं। पिछले विधानसभा सत्रों में समय था, लेकिन चुनाव नहीं कराए गए।” उन्होंने यह भी कहा कि यह सिर्फ उच्च सदन में आवाज़ की कमी नहीं, लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।

    6. डोमिनो प्रभाव: विधायी और संवैधानिक अनिश्चितता

    इस अनिश्चितता के कारण राज्यसभा में J&K की अनुपस्थिति कई अन्य व्यवधान खड़े कर देती है:

    • संवैधानिक रोटेशन का टूटना: नियमों के विपरीत एक साथ सभी सीटें खाली होना अनुचित है

    • पूर्ण प्रतिनिधित्व का अभाव: उपराष्ट्रपति चुनाव जैसे संवैधानिक अवसर पर J&K केवल लोक सभा में प्रतिनिधित्व कर सकता है

    • न्यायिक सलाह संभवता: अब खबरें हैं कि इस मुद्दे पर राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से राय लेने (प्रीतिज़नल रेफरेंस के तहत) की तैयारी हो सकती है |

    7. विधायक पुनर्संयोजन के विकल्प और भविष्य की दिशा

    विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि J&K की रिक्त सीटों को भरने के लिए एक विधायी संसोधन जरूरी है — ताकि राज्यसभा में असममित व्यवस्थाएं सुधारी जा सकें और प्रतिनिधित्व बहाल हो। यह संसद और संक्रमणकालीन राजनीतिक व्यवस्थाओं पर भी सवाल उठाता है।

    सारांश तालिका

    विषय विवरण
    सीटें J&K की चार राज्यसभा सीटें फरवरी 2021 से खाली
    EC की मांग राष्ट्रपति आदेश से सीटों का रोटेशन सुनिश्चित करना
    मंत्रालय का जवाब कानून में अनुमति नहीं, इसलिए आदेश अवैध
    संवैधानिक समस्या Article 83 के अनुरूप रोटेशन टूटना
    VP चुनाव में प्रभाव J&K का वोट राज्यसभा में नहीं होगा
    राजनीतिक प्रतिक्रिया ओमर अब्दुल्ला ने चुनाव आयोग से जवाब मांग चाहते हैं
    संभावित समाधान संसद समीक्षा, विधेयक, या सर्वोच्च न्यायालय से राय संभव

    निष्कर्ष

    जम्मू और कश्मीर का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व विहीन रहना केवल एक प्रशासनिक मामला नहीं—यह संविधान की भावना, लोकतांत्रिक मानकों और समान नागरिकों के अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आइए देखें कि आगे क्या कार्रवाई होती है — क्या संसद इस समस्या का स्थायी समाधान खोजती है, या मामला कोर्ट तक जाता है।

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