




महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर आरक्षण विवाद को लेकर उथल-पुथल में है। मराठा और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच लंबे समय से मतभेद बने हुए हैं, लेकिन हाल ही में यह विवाद और गहरा गया है। मंत्री छगन भुजबल की नाराज़गी और उस पर संजय राउत के तीखे बयान ने न केवल राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है, बल्कि महायुति सरकार के भीतर भी खटास पैदा कर दी है।
महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। मराठा समाज लंबे समय से आरक्षण की मांग करता रहा है, वहीं ओबीसी वर्ग को यह आशंका है कि मराठा समाज को आरक्षण देने से उनकी हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
छगन भुजबल, जो खुद ओबीसी समाज से आते हैं, लगातार यह आवाज़ उठाते रहे हैं कि ओबीसी कोटे में किसी भी तरह की सेंध स्वीकार नहीं की जाएगी। उनका मानना है कि मराठा समाज के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में हुई बैठकों में छगन भुजबल ने सरकार की आरक्षण नीति पर असहमति जताई। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती, तो ओबीसी वर्ग में असंतोष और बढ़ेगा।
उनकी नाराज़गी की खबरें बाहर आते ही यह मुद्दा और गरमाने लगा।
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने भुजबल की नाराज़गी पर तंज कसते हुए कहा—
“अगर भुजबल नाराज़ हैं तो मंत्री पद छोड़ दें। सरकार में रहकर बार-बार नाराज़गी जताना केवल दिखावा है।”
राउत का यह बयान सीधे-सीधे भुजबल पर व्यक्तिगत और राजनीतिक हमला माना जा रहा है। इससे महायुति के अंदरूनी समीकरणों पर भी असर पड़ता दिख रहा है।
भुजबल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं और अजित पवार गुट के वरिष्ठ नेता माने जाते हैं। वहीं, संजय राउत लगातार सरकार की नीतियों और उसके नेताओं पर निशाना साधते रहते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद महायुति सरकार के लिए परेशानी का कारण बन सकता है क्योंकि ओबीसी वर्ग में भुजबल का प्रभाव काफी बड़ा है। संजय राउत का बयान विपक्ष के लिए मुद्दा बन सकता है। सरकार पर यह आरोप और मजबूत होगा कि वह आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे को सही ढंग से सुलझाने में नाकाम रही है।
विपक्षी दलों ने इस विवाद को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेताओं ने कहा कि सरकार के भीतर ही मतभेद हैं, तो जनता का भरोसा कैसे कायम रह सकता है?
उन्होंने कहा कि “यह सरकार जनता की समस्याओं से ज्यादा सत्ता की राजनीति में उलझी हुई है।”
सोशल मीडिया पर यह विवाद जमकर चर्चा में है। ट्विटर (X) और फेसबुक पर लोग अपनी राय रख रहे हैं, कुछ लोग भुजबल का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि ओबीसी समाज के अधिकारों की रक्षा जरूरी है। वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि मराठा समाज को भी न्याय मिलना चाहिए और सरकार को संतुलित समाधान निकालना चाहिए। कई लोग संजय राउत के बयान को गैर-जरूरी और उकसाने वाला बता रहे हैं।
महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद अब 2025 के उपचुनावों और स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी चल रही है। ऐसे में आरक्षण का यह विवाद राजनीतिक दलों के लिए बड़ा मुद्दा बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर महायुति सरकार इस विवाद को सुलझाने में विफल रहती है, तो इसका सीधा असर उसके चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता है।
फिलहाल, सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वह ओबीसी और मराठा समाज दोनों की मांगों को संतुलित ढंग से पूरा करे। अगर मराठा समाज को आरक्षण दिया जाता है, तो ओबीसी वर्ग नाराज़ हो सकता है। अगर ओबीसी वर्ग की मांग मानी जाती है, तो मराठा समाज का गुस्सा बढ़ेगा।
इसलिए सरकार को न्यायिक दायरे में रहकर एक ठोस और संतुलित समाधान तलाशना होगा।
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा और ओबीसी आरक्षण का विवाद लगातार उबाल पर है। छगन भुजबल की नाराज़गी और संजय राउत के तीखे बयान ने इस विवाद को और गहरा दिया है। महायुति सरकार के लिए यह एक कठिन परीक्षा है कि वह कैसे इस संवेदनशील मुद्दे को संभालती है।
अगर सरकार ने जल्द समाधान नहीं निकाला, तो आने वाले समय में यह विवाद उसके लिए राजनीतिक संकट का कारण बन सकता है।