




भारत में साड़ी केवल एक परिधान नहीं है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का प्रतीक है। हर राज्य, हर समुदाय और हर अवसर के अनुसार साड़ी बांधने की शैली अलग-अलग होती है। कुछ स्टाइल्स इतनी लोकप्रिय हुईं कि वे भारतीय फैशन का हिस्सा बन गईं। इनमें सबसे अधिक चर्चित हैं “आतपूर स्टाइल” और “नवी स्टाइल”।
यह लेख आपको भारत में मशहूर साड़ी ड्रेपिंग शैलियों, उनके इतिहास, महत्व और आधुनिक फैशन में उनकी लोकप्रियता के बारे में विस्तार से जानकारी देगा।
आतपूर (Aatpoure) शैली का उद्गम पश्चिम बंगाल में हुआ है। यह शैली खासतौर पर बंगाल की शादी और त्योहारों में पहनी जाती है। इस स्टाइल में साड़ी को बिना प्लीट्स बनाए सीधे तरीके से बांधा जाता है। साड़ी का पल्लू दोनों कंधों पर डाला जाता है। अक्सर इस स्टाइल को लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी (लाल-साड़ा) के साथ जोड़ा जाता है। दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक आयोजनों में महिलाएँ इसे विशेष रूप से पहनती हैं।
महत्व: आतपूर स्टाइल बंगाल की सांस्कृतिक पहचान है और यह पारंपरिक भारतीय स्त्रियों की गरिमा व शालीनता का प्रतीक मानी जाती है।
नवी (Nivi) स्टाइल की शुरुआत आंध्र प्रदेश से हुई थी, लेकिन आज यह पूरे भारत में सबसे अधिक अपनाई जाने वाली साड़ी बांधने की शैली है। इस स्टाइल में साड़ी को पेटीकोट में टक कर प्लीट्स बनाई जाती हैं। पल्लू को कंधे पर लपेटा जाता है और यह खुला छोड़ा जा सकता है या पिन से लगाया जा सकता है। यह स्टाइल आरामदायक, आकर्षक और सभी प्रकार के अवसरों पर उपयुक्त होती है।
महत्व: नवी स्टाइल को आधुनिक भारतीय फैशन उद्योग ने अपनाया और इसे सबसे सुविधाजनक व स्टाइलिश माना जाता है। यह ऑफिस, शादी, पार्टियों और रोज़मर्रा के उपयोग के लिए सबसे कॉमन साड़ी स्टाइल है।
भारत की अन्य लोकप्रिय साड़ी ड्रेपिंग शैलियाँ
भारत में केवल आतपूर और नवी ही नहीं, बल्कि कई और साड़ी बांधने के तरीके मशहूर हैं:
- मराठी नौवारी स्टाइल (Maharashtrian Nauvari):
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महाराष्ट्र की खास शैली जिसमें साड़ी को धोती की तरह पहना जाता है।
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खासकर गणेशोत्सव और नृत्य प्रस्तुतियों में इसका महत्व है।
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- गुजराती स्टाइल:
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इसमें पल्लू आगे की ओर लाकर दाएँ कंधे पर रखा जाता है।
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यह शैली शादी और पारंपरिक अवसरों पर लोकप्रिय है।
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- कोर्गी स्टाइल (Coorgi):
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कर्नाटक के कोर्ग क्षेत्र की खास शैली।
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इसमें पल्लू पीछे की बजाय आगे की ओर बांधा जाता है और पिन से सुरक्षित किया जाता है।
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- मुमताज स्टाइल (Bollywood Inspired):
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70 के दशक में अभिनेत्री मुमताज द्वारा लोकप्रिय की गई स्टाइल।
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इसमें साड़ी को टाइट फिटिंग के साथ शरीर के चारों ओर कई बार लपेटा जाता है।
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- धोटी स्टाइल (Dhoti Saree):
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यह एक फ्यूजन स्टाइल है जिसमें साड़ी को धोती जैसे बांधा जाता है।
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यह युवा पीढ़ी में पार्टी और फैशन शो के लिए लोकप्रिय है।
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साड़ी की खासियत यह है कि यह हर शरीर के अनुसार ढल जाती है। चाहे महिला किसी भी उम्र की हो या किसी भी अवसर पर हो, साड़ी को सही तरह से बांधा जाए तो यह सबसे खूबसूरत और शालीन परिधान बन जाती है।
- सांस्कृतिक महत्व: हर राज्य में साड़ी बांधने की अपनी परंपरा है, जो उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और सामाजिक संरचना को दर्शाती है।
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फैशन महत्व: आधुनिक समय में डिज़ाइनर विभिन्न साड़ी ड्रेपिंग शैलियों को नए अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। रेड कार्पेट से लेकर अंतरराष्ट्रीय फैशन शो तक, भारतीय साड़ी अपनी पहचान बना रही है।
जहाँ पहले महिलाएँ पारंपरिक शैलियों तक सीमित थीं, वहीं आज सोशल मीडिया और फैशन ट्रेंड्स ने नई-नई ड्रेपिंग स्टाइल्स को लोकप्रिय बना दिया है। कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ “धोती साड़ी” या “बेल्टेड साड़ी” पसंद करती हैं। कॉर्पोरेट दुनिया में महिलाएँ नवी स्टाइल को ही प्राथमिकता देती हैं। त्योहारों में अब भी आतपूर और नौवारी स्टाइल की धूम रहती है।
भारत की विविधता उसकी परिधानों में भी झलकती है और साड़ी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। चाहे वह बंगाल की आतपूर शैली हो या आंध्र प्रदेश की नवी स्टाइल, हर ड्रेपिंग एक कहानी कहती है।
आज साड़ी केवल परंपरा नहीं, बल्कि फैशन और पहचान का प्रतीक बन चुकी है।