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    उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में बदलाव: विनियामक आयोग ने जारी किए नए टैरिफ, ट्रांसमिशन चार्ज में भी बढ़ोतरी

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         उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी खबर आई है। उत्तर प्रदेश विद्युत विनियामक आयोग (UPERC) ने हाल ही में नए बिजली दरें (Electricity Tariff) और ट्रांसमिशन चार्ज (Transmission Tariff) जारी किए हैं। इस बदलाव का सीधा असर राज्य के करोड़ों उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

    UPERC के आदेश के मुताबिक घरेलू उपभोक्ताओं, किसानों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और औद्योगिक इकाइयों – सभी के बिजली बिल पर असर होगा। आयोग ने ट्रांसमिशन टैरिफ में भी बदलाव किया है, जिससे बिजली वितरण कंपनियों (Discoms) की लागत बढ़ेगी और अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं को अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है। आयोग का कहना है कि यह निर्णय बढ़ती उत्पादन लागत और ट्रांसमिशन में निवेश को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

    छोटे घरेलू उपभोक्ताओं (0–100 यूनिट तक) के लिए बिजली दरों में मामूली बढ़ोतरी की गई है। मध्यम और उच्च खपत वाले उपभोक्ताओं (300 यूनिट से ज्यादा) के लिए बिल में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। आयोग का कहना है कि यह कदम क्रॉस सब्सिडी कम करने की दिशा में है, ताकि सभी वर्गों पर दरें संतुलित रह सकें।

    किसानों के लिए बिजली दरें हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रही हैं। नए आदेश में ट्यूबवेल कनेक्शन पर दी जाने वाली सब्सिडी को बरकरार रखा गया है। हालांकि, ट्रांसमिशन टैरिफ बढ़ने से किसानों को भी अप्रत्यक्ष रूप से कुछ असर झेलना पड़ सकता है। सरकार ने संकेत दिया है कि किसानों के अतिरिक्त बोझ को कम करने के लिए सब्सिडी जारी रहेगी।

    औद्योगिक उपभोक्ता लंबे समय से मांग कर रहे थे कि बिजली दरें स्थिर रखी जाएं। नए आदेश के अनुसार, औद्योगिक वर्ग की दरों में थोड़ी बढ़ोतरी की गई है। ट्रांसमिशन चार्ज में बढ़ोतरी के कारण बड़े उद्योगों के लिए उत्पादन लागत और बढ़ जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे औद्योगिक प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो सकती है, खासकर मैन्युफैक्चरिंग और टेक्सटाइल सेक्टर में।

    दुकानों, कार्यालयों और छोटे व्यापारियों के लिए दरों में हल्की बढ़ोतरी की गई है। इसका असर सीधे छोटे कारोबारियों की जेब पर पड़ेगा।

    UPERC ने अपने आदेश में ट्रांसमिशन चार्ज में भी बदलाव किया है। यह शुल्क बिजली वितरण कंपनियों द्वारा ट्रांसमिशन कंपनियों को दिया जाता है। नए आदेश के बाद यह शुल्क बढ़ा है, जिससे डिस्कॉम्स की लागत और बढ़ जाएगी। अंततः इसका भार आम उपभोक्ताओं तक पहुंच सकता है।

    UPERC का कहना है कि राज्य में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। नई ट्रांसमिशन लाइनों और ग्रिड के आधुनिकीकरण पर भारी खर्च हो रहा है। पुराने टैरिफ से लागत की भरपाई संभव नहीं थी। नई दरें वित्तीय स्थिरता और बेहतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करेंगी।

    आम जनता का कहना है कि पहले से ही महंगाई बढ़ी हुई है, ऐसे में बिजली दरें बढ़ना जेब पर अतिरिक्त बोझ है। विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह फैसला जनविरोधी है और गरीब वर्ग पर सीधा असर डालेगा।सोशल मीडिया पर भी लोग इस फैसले के खिलाफ अपनी नाराज़गी जता रहे हैं।

    ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सब्सिडी तंत्र को सही तरीके से लागू किया गया तो गरीब और किसान वर्ग पर ज्यादा असर नहीं होगा। उद्योगों को वैकल्पिक ऊर्जा (सौर और पवन) की ओर बढ़ने के लिए यह कदम प्रेरित कर सकता है। लेकिन, अल्पकालिक तौर पर बिजली बिल में बढ़ोतरी आम जनता के लिए परेशानी का कारण बनेगी।

    सरकार और आयोग दोनों का मानना है कि बिजली क्षेत्र में सुधार और निवेश के लिए यह कदम जरूरी था। राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि ग्रामीण और किसान उपभोक्ताओं के लिए राहत योजनाएँ चलाई जाएंगी। आने वाले समय में स्मार्ट मीटर और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर बिजली लागत कम करने की योजना भी है।

    उत्तर प्रदेश में बिजली दरों और ट्रांसमिशन टैरिफ में हुआ यह बदलाव उपभोक्ताओं की जेब पर असर डालने वाला है। जहां घरेलू और छोटे उपभोक्ताओं को सीमित बढ़ोतरी झेलनी होगी, वहीं औद्योगिक और वाणिज्यिक वर्ग पर इसका अधिक बोझ पड़ेगा। आयोग का दावा है कि यह कदम दीर्घकालिक रूप से बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बढ़ाएगा।

    फिलहाल उपभोक्ता वर्ग को इस बढ़ोतरी से राहत नहीं मिली है, और अब सबकी निगाहें सरकार पर हैं कि वह आम जनता को कितनी सब्सिडी और सहूलियत देकर इस बोझ को कम करती है।

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