




फ्रांस की राजधानी पेरिस सहित कई बड़े शहर इन दिनों विरोध प्रदर्शनों की गिरफ्त में हैं। नेपाल में जारी ‘Gen Z’ प्रदर्शनों के साथ-साथ फ्रांस में भी सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लगातार बढ़ते ये विरोध अब केवल फ्रांस की आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इससे यूरोप और वैश्विक स्तर पर भी तनाव गहराने लगा है।
पेरिस, जिसे दुनिया सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में जानती है, अब बड़े पैमाने पर विरोध और आक्रोश का केंद्र बन गया है। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार की नीतियाँ आम जनता के खिलाफ हैं और उनके भविष्य को अंधकारमय बना रही हैं। कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुईं, जिनमें संपत्तियों को नुकसान पहुंचा और कई लोग घायल हुए।
फ्रांस में जारी इन प्रदर्शनों के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं—
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आर्थिक असमानता और बेरोजगारी – युवाओं का मानना है कि सरकार की नीतियों ने रोजगार के अवसर कम कर दिए हैं।
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शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर असंतोष – छात्र वर्ग का आरोप है कि शिक्षा प्रणाली में लगातार बदलाव उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
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सरकारी नीतियों का विरोध – विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार जनता की आवाज़ दबा रही है और लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी कर रही है।
फ्रांस में प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार हालात ज्यादा गंभीर माने जा रहे हैं। क्योंकि नेपाल में जारी प्रदर्शनों के साथ-साथ फ्रांस के कई शहरों में भी अस्थिरता देखने को मिल रही है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह चिंता बढ़ गई है कि कहीं यूरोप के अन्य देशों में भी ऐसे विरोध की चिंगारी न फैल जाए।
यूरोपीय संघ (EU) के अधिकारियों ने फ्रांस की स्थिति पर नज़र रखते हुए शांति और संवाद की अपील की है।
पेरिस और अन्य शहरों में पुलिस ने हालात संभालने के लिए सख्ती दिखाई है। कई जगहों पर आंसू गैस, वॉटर कैनन और बल प्रयोग किया गया। इसके बावजूद प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं।
सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो और तस्वीरों में साफ दिखाई दे रहा है कि लोग सड़कों पर भारी संख्या में इकट्ठा होकर सरकार विरोधी नारे लगा रहे हैं।
फ्रांस में जारी इस संकट का असर केवल उसकी आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देश स्थिति को लेकर चिंतित हैं।
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आर्थिक असर – यूरोप के शेयर बाज़ारों में अस्थिरता दर्ज की गई है।
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पर्यटन पर असर – पेरिस जैसे पर्यटन स्थलों पर विदेशी यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी है।
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कूटनीतिक चिंता – अमेरिका और भारत सहित कई देशों ने अपने नागरिकों को फ्रांस यात्रा के दौरान सतर्क रहने की सलाह दी है।
नेपाल और फ्रांस में हो रहे प्रदर्शनों में कुछ समानताएँ देखी जा रही हैं। दोनों ही जगह युवा वर्ग बड़े पैमाने पर सड़कों पर है और दोनों ही जगहों पर सरकार की नीतियों के खिलाफ गुस्सा और असंतोष खुलकर सामने आया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विरोध नई पीढ़ी की उस सोच को दर्शाता है जो लोकतंत्र, पारदर्शिता और समान अवसरों की मांग कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फ्रांस के विरोध प्रदर्शनों को केवल स्थानीय असंतोष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह यूरोप के बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल का संकेत भी है। यदि हालात जल्द नहीं सुधरे, तो यह विरोध पूरे यूरोपीय महाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।
फ्रांस सरकार के लिए यह स्थिति किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। एक तरफ जनता का बढ़ता दबाव है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें भी उसी पर टिकी हुई हैं। सरकार को अब यह तय करना होगा कि वह इन विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए सख्ती अपनाती है या जनता के साथ संवाद का रास्ता तलाशती है।
नेपाल में भड़की ‘Gen Z’ आंदोलन की लपटें अब फ्रांस तक पहुंच चुकी हैं। पेरिस सहित कई शहरों में जारी प्रदर्शन केवल स्थानीय मुद्दों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि यह एक वैश्विक चेतावनी है कि दुनिया की नई पीढ़ी अपने अधिकारों और भविष्य के लिए संघर्ष करने को तैयार है।
फ्रांस में उठी यह लहर आने वाले समय में यूरोप और अंतरराष्ट्रीय राजनीति को किस दिशा में ले जाएगी, यह देखने वाली बात होगी।