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    सरकार शुरू करेगी कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण मिशन, उद्योगों को मिलेगी 50-100% मदद

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         भारत सरकार जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। जल्द ही केंद्र सरकार कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण मिशन (Carbon Capture, Utilisation and Storage – CCUS Mission) की शुरुआत करने वाली है। इस मिशन के तहत उद्योगों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को हवा में जाने से पहले ही रोका जाएगा, ताकि प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित किया जा सके।

    कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) तकनीक के जरिए फैक्ट्री और थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को उत्सर्जन से पहले ही पकड़ लिया जाता है। पकड़ी गई कार्बन का वैकल्पिक उपयोग किया जा सकता है, जैसे खाद्य एवं पेय पदार्थ उद्योग (कार्बोनेटेड ड्रिंक्स), रसायन और प्लास्टिक उत्पादन, ईंधन बनाने में। इसके अतिरिक्त, इस कार्बन को भूमिगत सुरक्षित स्थानों पर भंडारित (Storage) भी किया जा सकता है ताकि यह वातावरण को नुकसान न पहुँचा सके।

    सरकार ने साफ किया है कि इस मिशन के तहत 50% से लेकर 100% तक की सहायता राशि दी जाएगी। छोटे और मझोले उद्योगों को सब्सिडी और तकनीकी मदद दी जाएगी। बड़े कारखानों और पावर प्लांट्स को भी इस योजना में शामिल किया जाएगा। उद्देश्य है कि उद्योगों को ग्रीन ट्रांजिशन (Green Transition) के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

    भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रतिबद्धता जताई है। पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत भारत ने कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेट-जीरो 2070 लक्ष्य रखा है। CCUS मिशन इस लक्ष्य की दिशा में एक अहम कदम होगा।

    भारत दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में से एक है। बिजली उत्पादन, सीमेंट, स्टील और तेल-गैस उद्योगों से सबसे ज्यादा CO₂ उत्सर्जन होता है। अगर उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य संबंधी संकट गहराते रहेंगे। CCUS तकनीक से न केवल वातावरण सुरक्षित रहेगा बल्कि उद्योगों के लिए नई हरित रोजगार संभावनाएँ (Green Jobs) भी बनेंगी।

    अमेरिका, यूरोप और चीन पहले से इस तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का मानना है कि यदि दुनिया को 2050 तक नेट-जीरो कार्बन लक्ष्य हासिल करना है तो CCUS तकनीक अहम भूमिका निभाएगी। भारत में यह मिशन हरित ऊर्जा की दिशा में गेम-चेंजर साबित हो सकता है।

    पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है—यह मिशन प्रदूषण कम करने के साथ-साथ उद्योगों के लिए नई बिज़नेस संभावनाएँ भी खोलेगा। यदि कार्बन का उपयोग रसायन, ईंधन और उत्पाद बनाने में किया जाता है तो यह राजस्व का नया स्रोत होगा।हालांकि, इस तकनीक के लिए उच्च लागत और विशेषज्ञता की जरूरत होगी।

    फैक्ट्री और बिजली संयंत्रों से निकलने वाला प्रदूषण घटेगा। भारत की छवि ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाने वाले देशों में और मजबूत होगी। रोजगार और निवेश के नए अवसर खुलेंगे। पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास में संतुलन स्थापित होगा।

    भारत सरकार का कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण मिशन जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इससे न केवल उद्योगों को आधुनिक तकनीक अपनाने में मदद मिलेगी, बल्कि देश के नेट-जीरो लक्ष्यों को हासिल करने की राह भी आसान होगी। आने वाले वर्षों में यह मिशन भारत को सतत विकास (Sustainable Development) की दिशा में मजबूती देगा।

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