




नेपाल की राजनीति में उभरते हुए युवा आंदोलन ने नया मोड़ ले लिया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुषिला कार्की को प्रधानमंत्री पद के संभावित चेहरे के रूप में देख रही जनरेशन Z (Gen Z) अब दो गुटों में बंटती नजर आ रही है। कार्की के नाम के बाद अब देश के चर्चित ऊर्जा विशेषज्ञ और नेपाल विद्युत प्राधिकरण के प्रमुख कुलमान घिसिंग का नाम भी प्रधानमंत्री पद की रेस में सामने आया है।
🔹 जनरेशन Z का बंटवारा
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सुषिला कार्की को लेकर एक वर्ग का मानना है कि उनकी निष्पक्ष न्यायिक छवि और ईमानदारी उन्हें राजनीति में बदलाव का प्रतीक बना सकती है।
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दूसरी ओर, कुलमान घिसिंग के समर्थक तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने नेपाल की ऊर्जा संकट को दूर कर लोडशेडिंग खत्म करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है और देश को आधुनिक विकास की राह पर ला सकते हैं।
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नतीजा यह हुआ है कि आंदोलन के युवा चेहरे अब दो अलग धाराओं में बंट गए हैं।
🔹 कुलमान घिसिंग क्यों चर्चा में?
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कुलमान घिसिंग, नेपाल विद्युत प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक रहे हैं।
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उन्होंने देश की लगातार 18 घंटे तक होने वाली बिजली कटौती (लोडशेडिंग) को खत्म कर अपनी लोकप्रियता बनाई।
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युवाओं का मानना है कि वे देश की अर्थव्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशासन में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
🔹 सुषिला कार्की बनाम कुलमान घिसिंग
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कार्की: ईमानदार और कड़े फैसलों के लिए जानी जाती हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया।
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घिसिंग: टेक्नोक्रेट छवि वाले नेता, विकास और संसाधन प्रबंधन में सफलता का उदाहरण।
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दोनों नाम मिलकर नेपाल की राजनीति में “गैर-पारंपरिक नेतृत्व” की मांग को मजबूत कर रहे हैं।
🔹 राजनीतिक माहौल
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नेपाल की मौजूदा सरकार को लेकर असंतोष लगातार बढ़ रहा है।
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युवा आंदोलन और सोशल मीडिया कैंपेन से यह साफ हो गया है कि देश में पारंपरिक दलों से हटकर नई पीढ़ी वैकल्पिक नेतृत्व चाहती है।
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लेकिन सवाल यह है कि क्या कार्की और घिसिंग जैसे गैर-पार्टी चेहरे वास्तविक राजनीति में अपनी पकड़ बना पाएंगे?
नेपाल की राजनीति में Gen Z अब केवल आंदोलन की ताकत नहीं, बल्कि नेतृत्व की दिशा तय करने वाली शक्ति भी बन चुकी है। सुषिला कार्की और कुलमान घिसिंग जैसे नाम यह संकेत देते हैं कि नेपाल में अगली राजनीतिक लड़ाई केवल पारंपरिक दलों और गैर-पारंपरिक चेहरों के बीच होगी।