




सातारा (महाराष्ट्र)- कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हों और सोच अलग हो, तो मुश्किलें भी रास्ता बना देती हैं। महाराष्ट्र के सातारा जिले के रहने वाले ऋषिकेश जयसिंह धाने ने यह साबित कर दिखाया। कभी असफलताओं से जूझते हुए उन्होंने अपने जीवन में नई राह खोजी और आज वे ₹3.5 करोड़ सालाना कारोबार करने वाले सफल किसान-उद्यमी बन गए हैं। उनकी कामयाबी की कहानी एलोवेरा की खेती और उससे जुड़े उत्पादों पर आधारित है।
ऋषिकेश का सफर आसान नहीं था। पारिवारिक हालात सामान्य थे और पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश भी उतनी सफल नहीं रही। कई बार असफल होने के बाद उन्होंने ठान लिया कि खुद का व्यवसाय करेंगे। शुरुआत में उन्होंने पारंपरिक खेती की, लेकिन ज्यादा मुनाफा नहीं हुआ। इसी दौरान उन्होंने देखा कि एलोवेरा (घृतकुमारी) की मांग देश-विदेश में तेजी से बढ़ रही है। यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई।
ऋषिकेश ने सतारा जिले की अपनी जमीन पर एलोवेरा की खेती शुरू की। शुरुआत में लोगों ने मज़ाक उड़ाया, क्योंकि तब तक स्थानीय स्तर पर इस फसल को बहुत कम लोग उगाते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके एलोवेरा की खेती में महारत हासिल की।
उन्होंने जल्द ही यह समझ लिया कि केवल कच्चा एलोवेरा बेचकर बड़ा मुनाफा संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने एलोवेरा से वैल्यू एडेड प्रोडक्ट्स बनाने का निर्णय लिया।
ऋषिकेश ने अपनी यूनिट में एलोवेरा से साबुन, शैंपू, फेसवॉश, क्रीम और हेल्थ जूस जैसे उत्पाद बनाना शुरू किया। इन प्रोडक्ट्स को उन्होंने स्थानीय बाजार से लेकर बड़े शहरों तक सप्लाई किया। धीरे-धीरे उनका ब्रांड लोकप्रिय होता गया और आज उनके उत्पाद महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी बिक रहे हैं।
कुछ ही वर्षों में ऋषिकेश के प्रयासों ने रंग दिखाया। उनके कारोबार का सालाना टर्नओवर अब ₹3.5 करोड़ तक पहुँच चुका है। यह कहानी न केवल उनकी मेहनत का परिणाम है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि कृषि में आधुनिक सोच और उद्यमिता से भी करोड़ों कमाए जा सकते हैं।
ऋषिकेश की सफलता ने आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा का काम किया है। उनके उद्योग में दर्जनों स्थानीय लोग काम कर रहे हैं। कई किसानों ने भी उनकी राह पर चलकर एलोवेरा की खेती शुरू की है। इससे न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा हुए हैं।
आज ऋषिकेश अपने प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया के जरिए भी बेच रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में एक्सपोर्ट मार्केट में भी अपनी पहचान बनाएं। वे खासतौर पर ऑर्गेनिक और हर्बल प्रोडक्ट्स को लेकर काम कर रहे हैं, जिनकी मांग विदेशों में लगातार बढ़ रही है।
ऋषिकेश जयसिंह धाने की कहानी उन युवाओं के लिए बड़ी प्रेरणा है, जो नौकरी न मिलने पर हार मान लेते हैं। उन्होंने यह दिखा दिया कि कृषि केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि करोड़ों की कमाई का अवसर भी हो सकती है—अगर उसमें इनोवेशन और मेहनत जोड़ी जाए।