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    उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस-वोटिंग का विवाद: टीएमसी का आरोप- सांसद खरीदे गए 15-20 करोड़ में, विपक्ष में सिर फुटव्वल

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         उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ब्लॉक में जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया है। क्रॉस-वोटिंग की खबरों ने न केवल विपक्ष की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि आरोप-प्रत्यारोप के नए दौर को भी जन्म दे दिया है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि विपक्षी सांसदों को 15 से 20 करोड़ रुपये तक देकर खरीद लिया गया। टीएमसी ने इशारा आम आदमी पार्टी (आप) की ओर किया है, जबकि आप ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।

    टीएमसी नेताओं का कहना है कि जिस तरह से उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग हुई, उससे साफ है कि विपक्षी खेमे में भारी पैमाने पर क्रॉस-वोटिंग हुई है। पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, सत्ता पक्ष ने विपक्षी सांसदों को खरीदने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए। टीएमसी प्रवक्ताओं का कहना है कि “यह लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है और सांसदों को खुलेआम बोली लगाकर खरीदा गया।”

    टीएमसी ने सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी पर उंगली उठाई है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि “आप” के सांसदों ने विपक्षी एकजुटता को तोड़ते हुए सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को वोट दिया। हालांकि, आम आदमी पार्टी ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि टीएमसी अपनी नाकामी को छिपाने के लिए झूठा प्रचार कर रही है। आप नेताओं का कहना है, “हम लोकतंत्र और पारदर्शिता में विश्वास करते हैं। टीएमसी अपने ही सांसदों पर नियंत्रण नहीं रख पा रही है और आरोप हम पर लगाया जा रहा है।”

    क्रॉस-वोटिंग के बाद इंडिया ब्लॉक में गहरी दरारें सामने आ गई हैं। पहले ही विभिन्न मुद्दों पर सहयोगी दलों के बीच मतभेद देखने को मिलते रहे हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद यह विवाद और खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी अंदरखाने क्रॉस-वोटिंग की बात स्वीकार की है, हालांकि उन्होंने इसे “कुछ नाराज सांसदों की व्यक्तिगत रणनीति” बताया है।

    सत्ता पक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और एनडीए गठबंधन की ओर से इस पूरे विवाद पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा इस विवाद का फायदा उठाकर विपक्ष को कमजोर दिखाना चाहती है। वहीं विपक्षी दल लगातार एक-दूसरे पर आरोप लगाकर खुद को ही कमजोर कर रहे हैं।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस विवाद ने विपक्षी एकता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। आगामी विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे INDIA ब्लॉक के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। विपक्ष की आपसी खींचतान से जनता में यह संदेश जा रहा है कि गठबंधन भरोसेमंद नहीं है। साथ ही, सांसदों की कथित खरीद-फरोख्त ने लोकतांत्रिक मूल्यों की साख पर भी धब्बा लगाया है।

    यदि टीएमसी के आरोपों में सच्चाई है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। करोड़ों रुपये देकर सांसदों की वफादारी बदलना न केवल संवैधानिक पदों के चुनाव को प्रभावित करता है, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है।

    वर्तमान हालात में विपक्षी दलों को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। यदि INDIA ब्लॉक को आगे भी मजबूत रहना है, तो आपसी अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से बचना होगा। साथ ही, क्रॉस-वोटिंग पर व्यापक स्तर पर आंतरिक जांच की मांग भी उठ रही है।

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