




इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुज़फ्फरनगर जिले के वसीक त्यागी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले व्यक्ति के लिए कोई सहानुभूति नहीं हो सकती। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने 8 सितंबर को यह निर्णय दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि ऐसे कृत्य साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने और सार्वजनिक शांति को भंग करने की क्षमता रखते हैं।
वसीक त्यागी पर आरोप है कि उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करते हुए एक कुत्ते को उस पर बैठा हुआ दिखाने वाली एक फोटो पोस्ट की थी, साथ ही पाकिस्तान के समर्थन में पोस्ट भी की थी। इस संबंध में 16 मई 2025 को मुज़फ्फरनगर के चरथावल पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
पुलिस जांच में पाया गया कि उक्त फेसबुक पोस्ट वसीक त्यागी के मोबाइल नंबर से जुड़े आईपी पते से की गई थीं। मेटा (पूर्व में फेसबुक) की साइबर रिपोर्ट ने भी इस लिंक को पुष्टि की। इसके अतिरिक्त, स्वतंत्र गवाहों ने भी यह बयान दिया कि वसीक की पोस्ट साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की क्षमता रखती थीं।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज गर्व और देशभक्ति का प्रतीक है, और इसका अपमान करना कानूनन अपराध है। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले व्यक्ति के लिए कोई सहानुभूति नहीं हो सकती।”
वसीक त्यागी की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोपी के कृत्य से देश की गरिमा को ठेस पहुंची है और यह कृत्य राष्ट्रविरोधी विचारधारा को बढ़ावा देने वाला प्रतीत होता है।
यह निर्णय न्यायपालिका की ओर से राष्ट्रीय ध्वज और देश की गरिमा के प्रति सम्मान की महत्वपूर्ण मिसाल प्रस्तुत करता है, और यह संदेश देता है कि ऐसे कृत्य किसी भी परिस्थिति में सहन नहीं किए जाएंगे।
वसीक त्यागी की गिरफ्तारी 7 जून 2025 को हुई थी, और उनकी मोबाइल फोन को फोरेंसिक जांच के लिए जब्त किया गया था। न्यायालय ने कहा कि आरोपी के कृत्य से साम्प्रदायिक सौहार्द को खतरा था, और इसलिए जमानत की कोई संभावना नहीं बनती।
इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाता है, जहां राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया जाता है, और ऐसे कृत्य करने वालों के लिए कोई सहानुभूति नहीं हो सकती।