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    स्वच्छता संकट से जूझती आदिवासी महिलाएं: एनएसयूआई ने की मुफ्त सैनेटरी पैड उपलब्ध कराने की मांग

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         गौरेला-पेंड्रा- मरवाही का आदिवासी अंचल आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। यहां की महिलाएं मासिक धर्म के दौरान बेहद कठिन परिस्थितियों से गुजरती हैं। सैनेटरी पैड जैसी आवश्यक वस्तु की अनुपलब्धता के कारण ग्रामीण महिलाएं अस्वच्छ और असुरक्षित विकल्प अपनाने को मजबूर हैं।

    गांवों और पहाड़ी क्षेत्रों में महिलाएं न तो आसानी से बाजार पहुंच पाती हैं और न ही स्थानीय स्तर पर उन्हें सैनेटरी पैड उपलब्ध होते हैं। मजबूरीवश महिलाएं फटे कपड़े, पुराने वस्त्र या अन्य अस्वच्छ सामग्री का उपयोग करती हैं। यह तरीका उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डालता है और कई बार संक्रमण तथा बीमारियों का कारण भी बनता है।

    इस गंभीर समस्या को लेकर एनएसयूआई के पदाधिकारी प्रशासन तक पहुंचे। गौरेला-पेंड्रा- मरवाही में एनएसयूआई कार्यकर्ताओं ने एसडीएम कार्यालय में ज्ञापन सौंपा और महिलाओं की सेहत को लेकर चिंता जताई।

    ज्ञापन सौंपने वालों में प्रदेश उपाध्यक्ष शुभम पेद्रो, जिला महामंत्री अरुण चौधरी, नवीन पुरी, प्रीति उईके, सत्यम, सूरज, आरती, प्रीति एवं अन्य कार्यकर्ता मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में प्रशासन से मांग की कि आदिवासी महिलाओं को तुरंत सैनेटरी पैड उपलब्ध कराए जाएं।

    प्रदेश उपाध्यक्ष शुभम पेद्रो ने कहा,
    “हमने कई गांवों में जाकर देखा कि बहनों को सैनेटरी पैड नहीं मिलते। मजबूरी में वे अस्वच्छ तरीके अपनाती हैं। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है। हमारी मांग है कि आदिवासी अंचल में तुरंत मुफ्त या सस्ती दर पर पैड उपलब्ध कराए जाएं।”

    ज्ञापन में यह भी कहा गया कि स्वास्थ्य विभाग गांव-गांव जाकर महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूक करे। साथ ही, स्कूल और कॉलेज स्तर पर सैनेटरी पैड की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए ताकि किशोरियों और छात्राओं को सुरक्षित विकल्प मिल सके।

    यह समस्या केवल महिलाओं की सेहत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी गरिमा और बुनियादी अधिकारों से भी जुड़ी हुई है। स्वच्छता की कमी के कारण महिलाएं कई बार समाज में उपेक्षित महसूस करती हैं। मासिक धर्म जैसे प्राकृतिक प्रक्रिया को लेकर पहले से ही कई तरह की सामाजिक बाधाएं हैं, और उस पर स्वच्छता की कमी ने उनके जीवन को और कठिन बना दिया है।

    गौरेला-पेंड्रा- मरवाही के कई गांवों में स्थिति बेहद गंभीर है। यहां बाजार की दूरी अधिक है और परिवहन सुविधाएं भी सीमित हैं। महिलाएं कई बार चाहकर भी बाजार जाकर सैनेटरी पैड नहीं खरीद पातीं। कुछ स्थानों पर तो यह वस्तु उपलब्ध ही नहीं होती।

    ऐसे हालात में महिलाएं न केवल शारीरिक कष्ट सहती हैं, बल्कि मानसिक दबाव का भी सामना करती हैं। संक्रमण की वजह से कई बार वे डॉक्टर तक भी नहीं पहुंच पातीं क्योंकि स्वास्थ्य केंद्र दूर-दराज स्थित हैं।

    ज्ञापन में स्पष्ट मांग की गई है कि प्रशासन और सरकार तुरंत ठोस कदम उठाए। आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं को मुफ्त या न्यूनतम दर पर सैनेटरी पैड उपलब्ध कराना जरूरी है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य विभाग को व्यापक जागरूकता अभियान चलाना होगा ताकि महिलाएं सुरक्षित विकल्प अपनाएं और संक्रमण से बच सकें।

    आदिवासी अंचल की महिलाओं की यह समस्या लंबे समय से उपेक्षित रही है। न तो स्थानीय स्तर पर समाधान हुआ और न ही उच्च प्रशासन ने गंभीरता दिखाई। अब एनएसयूआई ने इस मुद्दे को मजबूती से उठाया है। सवाल यह है कि सरकार और प्रशासन कब तक महिलाओं की पीड़ा को अनदेखा करेंगे।

    यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है। महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके सम्मान की रक्षा के लिए तत्काल और स्थायी समाधान बेहद जरूरी है।

    गौरेला-पेंड्रा- मरवाही की आदिवासी महिलाओं की समस्या केवल सैनेटरी पैड की अनुपलब्धता तक सीमित नहीं है। यह उनकी सेहत, गरिमा और बुनियादी अधिकारों का भी सवाल है। एनएसयूआई ने ज्ञापन सौंपकर इस मुद्दे को प्रशासन के सामने रखा है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मांग को कितनी गंभीरता से लेती है और कब तक इन मासूम बहनों को उनका अधिकार दिला पाती है।

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