




दुनियाभर में प्रसिद्ध मैसूर दशहरा उत्सव का आगाज़ भले ही आधिकारिक रूप से कुछ दिनों बाद होना है, लेकिन तैयारियों ने पूरे शहर को पहले से ही उत्सवमय बना दिया है। परंपरा और शाही वैभव से जुड़ा यह उत्सव अपने भव्य जुलूस और अद्वितीय रस्मों के लिए जाना जाता है। इसी कड़ी में हाथियों और घोड़ों ने तोप दागने की पहली रिहर्सल में हिस्सा लेकर इस वर्ष के दशहरा पर्व की भव्य झलक दिखाई।
सोमवार को मैसूर किले के परेड मैदान में दशहरा जुलूस के लिए इस्तेमाल होने वाले हाथियों और घोड़ों को तोप की आवाज़ का अभ्यस्त बनाने के लिए पहली रिहर्सल कराई गई।
जैसे ही तोप दागी गई, चारों ओर गूंजते धमाके ने वातावरण को रोमांचित कर दिया। आशंका थी कि जानवर घबरा सकते हैं, लेकिन दशहरा हाथियों ने अपने अनुशासन और प्रशिक्षण का शानदार प्रदर्शन करते हुए धैर्य और साहस दिखाया।
दशहरा के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा होती है “अंबारी हाथी” की, जो विजयदशमी के दिन स्वर्ण मंडप में विराजमान देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा को लेकर चलता है।
इस वर्ष भी ‘अर्जुन’ हाथी को मुख्य अंबारी हाथी के रूप में चुना गया है। पहली रिहर्सल में अर्जुन के साथ अन्य हाथियों—अभिमन्यु, धीर, हरिहर और लक्ष्मी ने भी भाग लिया। हाथियों की चाल-ढाल और स्थिरता देखकर मौजूद अधिकारी और दर्शक प्रभावित हुए।
दशहरा जुलूस केवल हाथियों का ही नहीं, बल्कि घोड़ों का भी प्रदर्शन है। घुड़सवार गार्ड्स ने रिहर्सल के दौरान बेहतरीन तालमेल और परंपरागत अंदाज़ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
तोप की गड़गड़ाहट के बीच भी घोड़ों ने अद्भुत अनुशासन का परिचय दिया। यह दृश्य दर्शाता है कि वर्षों की ट्रेनिंग और देखभाल ने इन जानवरों को दशहरा जैसे भव्य उत्सव का अभिन्न हिस्सा बना दिया है।
दशहरा जुलूस में लाखों की भीड़ उमड़ती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी होता है कि हाथी और घोड़े तोप की आवाज़, भीड़ और संगीत से विचलित न हों। यही वजह है कि हर साल दशहरा से पहले कई बार ऐसी रिहर्सल आयोजित की जाती है।
पुलिस और प्रशासन ने इस बार भी सुरक्षा इंतज़ामों की गहन समीक्षा की। अधिकारियों ने बताया कि जानवरों के स्वास्थ्य और आराम का विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
मैसूर दशहरा केवल धार्मिक आस्था का उत्सव नहीं बल्कि यह कर्नाटक की सांस्कृतिक धरोहर और शाही इतिहास का प्रतीक भी है।
वाडियार राजवंश की परंपराओं को जीवित रखने वाला यह उत्सव हर साल न केवल स्थानीय लोगों बल्कि देश-विदेश से आए पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
रिहर्सल के दौरान जब तोप दागी गई, तो उपस्थित दर्शकों को लगा मानो दशहरा की भव्यता का आधिकारिक आरंभ हो गया हो।
दशहरा उत्सव के कारण मैसूर की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा बल मिलता है। होटल, रेस्टोरेंट, परिवहन और स्थानीय कारीगरों को इस दौरान भारी लाभ होता है।
इस बार भी प्रशासन को उम्मीद है कि लाखों पर्यटक मैसूर दशहरा का आनंद लेने आएंगे। रिहर्सल के वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी हैं, जिससे उत्सव का आकर्षण और बढ़ गया है।
स्थानीय नागरिकों ने भी पहली रिहर्सल को लेकर जबरदस्त उत्साह दिखाया। कई परिवार अपने बच्चों के साथ इसे देखने पहुंचे। बच्चों के लिए यह केवल मनोरंजन नहीं बल्कि अपने सांस्कृतिक इतिहास को जानने का अवसर भी था।
वरिष्ठ नागरिकों ने दशहरा से जुड़ी पुरानी यादें ताजा कीं और बताया कि यह उत्सव केवल एक परंपरा नहीं बल्कि कर्नाटक की आत्मा है।
पहली तोप रिहर्सल ने इस बात का साफ संकेत दे दिया है कि मैसूर दशहरा उत्सव एक बार फिर अपने पूरे शाही वैभव और परंपरागत गरिमा के साथ आयोजित होने जा रहा है।
हाथियों की शांति, घोड़ों की गरिमा और तोप की गूंज ने यह साबित कर दिया कि दशहरा केवल एक त्योहार नहीं बल्कि कर्नाटक की शान और गौरव का प्रतीक है।