




कोलकाता, जिसे कभी ‘सिटी ऑफ जॉय’ कहा गया, एक बार फिर अपने नाम को साकार कर रहा है। शहर ने हाल ही में अपने ऐतिहासिक धरोहरों, गलियों और सांस्कृतिक धड़कनों को रोशनी से जगमगा दिया। यह नज़ारा केवल एक आयोजन नहीं बल्कि एक भावनात्मक सफर था, जिसने शहरवासियों को अपनी जड़ों से फिर से जोड़ दिया।
कोलकाता का इतिहास ब्रिटिश उपनिवेश काल से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक फैला हुआ है। विक्टोरिया मेमोरियल से लेकर हावड़ा ब्रिज तक, शहर के हर कोने में अतीत की गूंज सुनाई देती है। इस बार रोशनी की साज-सज्जा में इन्हीं धरोहरों को फिर से जीवंत कर दिया गया।
रात होते ही विक्टोरिया मेमोरियल सुनहरी रोशनी में नहाया, हावड़ा ब्रिज जगमगाती लाइट्स से चमका और इंडियन म्यूजियम के परिसर में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
कोलकाता की पहचान केवल उसकी बड़ी इमारतों तक सीमित नहीं है। शहर की तंग गलियां, पुराने मोहल्ले और सड़क किनारे की दुकाने भी इसकी आत्मा का हिस्सा हैं। जब ये गलियां रंगीन लाइटों से रोशन हुईं तो मानो शहर की धड़कन और तेज़ हो गई।
दक्षिणेश्वर मंदिर, कालीघाट और कुम्हारटोली की बस्तियां भी इस उत्सव का अहम हिस्सा बनीं। यहां मिट्टी के कलाकारों ने अपनी मूर्तियों को भी लाइटिंग से सजाकर जीवंतता का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि यह केवल प्रशासन का नहीं बल्कि आम लोगों का उत्सव बन गया। परिवारों ने अपनी बालकनियों और छतों को सजाया, बच्चों ने हाथों में रंगीन लालटेन लेकर गलियों में जुलूस निकाला और बुजुर्गों ने अपने समय की कहानियां सुनाकर इस पल को और खास बना दिया।
शहर की सड़कों पर घूमते लोग सिर्फ पर्यटक नहीं बल्कि अपनी धरोहर से दोबारा जुड़ते हुए दिखाई दिए।
कोलकाता में त्योहारों का जिक्र हो और दुर्गा पूजा की चर्चा न हो, यह असंभव है। हालांकि इस बार का आयोजन दुर्गा पूजा जैसा धार्मिक न होकर सांस्कृतिक था, लेकिन उसमें वही ऊर्जा और उत्साह महसूस हुआ।
पंडालों की तर्ज पर कई जगह लाइट इंस्टॉलेशन लगाए गए, जिनमें शहर के इतिहास और लोककला को दर्शाया गया।
रोशनी और आयोजनों का यह उत्सव केवल सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा। पर्यटकों की भारी भीड़ के कारण होटल, रेस्टोरेंट और स्थानीय बाजारों की रौनक बढ़ गई। कारीगरों, बिजलीकर्मियों और छोटे व्यापारियों के लिए यह आयोजन किसी अवसर से कम नहीं रहा।
इस आयोजन को खास बनाने में युवाओं का योगदान सबसे अहम रहा। कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्रों ने लाइट शो, वॉल पेंटिंग्स और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से शहर के हर कोने को जीवन्त कर दिया। सोशल मीडिया पर भी #LightUpKolkata ट्रेंड करता रहा, जिससे यह संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचा।
कोलकाता हमेशा से ही साहित्य, कला और संगीत का गढ़ रहा है। लेकिन आधुनिकता और व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग अपनी परंपरा से दूर होते जा रहे थे। इस आयोजन ने उस सांस्कृतिक पहचान को फिर से जीवित कर दिया।
न केवल स्थानीय निवासी बल्कि प्रवासी बंगालियों ने भी इस पहल का स्वागत किया और इसे अपनी जड़ों से जुड़ने का माध्यम माना।
कोलकाता की रोशन शामें केवल एक नाइट शो नहीं बल्कि इतिहास, संस्कृति और आधुनिकता का ऐसा संगम थीं, जिसने हर दिल को छू लिया। यह आयोजन इस बात का प्रतीक है कि जब एक शहर अपनी धरोहर को संजोकर आगे बढ़ता है, तो उसकी आत्मा कभी मुरझाती नहीं।
कोलकाता ने यह साबित कर दिया कि यह सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि धड़कनों में बसने वाली एक जीवंत आत्मा है—जो हर रोशनी के साथ और प्रखर हो उठती है।