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    सुप्रीम कोर्ट ने महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH एक्ट के तहत शामिल करने की याचिका खारिज की

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    भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (POSH) एक्ट, 2013 के तहत संरक्षण देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का दायरा बढ़ाने या उसमें संशोधन करने का अधिकार केवल विधायिका (संसद) के पास है, न कि न्यायपालिका के पास।

    🔹 याचिका में क्या मांग थी?

    यह याचिका कुछ महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि:

    • राजनीति में सक्रिय महिलाएं भी कार्यस्थल पर काम करती हैं।

    • उन्हें भी अन्य सेक्टर की महिलाओं की तरह POSH एक्ट के तहत संरक्षण मिलना चाहिए।

    • राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अक्सर चुनावी अभियानों, पार्टी दफ्तरों और बैठकों में यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनके लिए कोई कानूनी सुरक्षा ढांचा मौजूद नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि राजनीति को कार्यस्थल की श्रेणी में माना जाए और POSH एक्ट को इसमें लागू किया जाए।

    🔹 सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा:

    “POSH एक्ट एक विशेष विधि है, जिसका उद्देश्य संगठित और औपचारिक कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। राजनीतिक गतिविधियाँ, चुनाव प्रचार या पार्टी मीटिंग्स को कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।”

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि संसद चाहे तो कानून में संशोधन कर महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH एक्ट के दायरे में ला सकती है। लेकिन अदालत इस दिशा में कोई आदेश पारित नहीं कर सकती।

    🔹 POSH एक्ट क्या है?

    POSH (Prevention of Sexual Harassment at Workplace) Act, 2013 कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था।

    • इसमें हर सरकारी और निजी संस्था को Internal Complaints Committee (ICC) बनाने का प्रावधान है।

    • एक्ट का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित, सम्मानजनक और गरिमापूर्ण कार्य वातावरण उपलब्ध कराना है।

    • हालांकि, राजनीति और चुनावी गतिविधियों को अभी तक इसके तहत शामिल नहीं किया गया है।

    🔹 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की स्थिति

    भारत में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। पंचायत स्तर से लेकर संसद तक महिलाएं सक्रिय हैं।

    • लेकिन, उन्हें अक्सर यौन उत्पीड़न, अभद्र टिप्पणी और धमकियों का सामना करना पड़ता है।

    • वर्तमान में उनके लिए कोई समर्पित कानून मौजूद नहीं है।

    • इस फैसले से महिलाओं को राहत तो नहीं मिली, लेकिन मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है।

    🔹 विशेषज्ञों की राय

    कानून विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संवैधानिक दृष्टि से सही है, क्योंकि अदालत कानून बना या उसमें संशोधन नहीं कर सकती।

    • महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि अब जिम्मेदारी संसद और सरकार की है कि वे इस दिशा में कदम उठाएँ।

    • यदि राजनीति को कार्यस्थल की परिभाषा में लाया जाए, तो महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक मजबूत कानूनी सुरक्षा मिलेगी।

    🔹 आगे का रास्ता

    फैसले के बाद महिला संगठनों ने कहा है कि वे अब सरकार और सांसदों से संपर्क करेंगे और कानून में संशोधन की मांग करेंगे।
    यह मुद्दा आने वाले समय में संसद में बहस का विषय बन सकता है।

    🔹 निष्कर्ष

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बताता है कि न्यायपालिका और विधायिका की सीमाएँ अलग-अलग हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा राजनीति में भी उतनी ही ज़रूरी है, लेकिन उसके लिए कानून में बदलाव करना होगा। अब सबकी निगाहें सरकार और संसद पर होंगी कि क्या वे महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH एक्ट के तहत सुरक्षा प्रदान करने का कदम उठाएंगे।

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