




रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बिल्डर को खरीदार का प्लॉट उसकी खरीदी गई मूल कीमत से दो गुना दाम पर वापस खरीदने का आदेश दिया है। यह फैसला उन हजारों उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आया है जो रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी और देरी से परेशान रहते हैं।
यह मामला राजधानी रायपुर से जुड़ा है। उपभोक्ता ने कई साल पहले एक बिल्डर से आवासीय प्लॉट खरीदा था। बिल्डर ने वादा किया था कि तय समय पर सभी बुनियादी सुविधाएं—सड़क, पानी, बिजली और सीवरेज की व्यवस्था—पूरी कर दी जाएगी। लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं।
परेशान उपभोक्ता ने कई बार बिल्डर से शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। आखिरकार मामला छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग में पहुंचा।
सुनवाई के दौरान आयोग ने पाया कि बिल्डर ने उपभोक्ता के साथ अनुबंध का गंभीर उल्लंघन किया है और वादाखिलाफी की है। आयोग ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि रियल एस्टेट कंपनियां उपभोक्ताओं से पैसा लेकर उन्हें वर्षों तक परेशान नहीं कर सकतीं। उपभोक्ता का विश्वास तोड़ना एक गंभीर अपराध है। बिल्डर को खरीदार के साथ न्याय करना होगा।
आयोग ने आदेश दिया कि बिल्डर खरीदे गए प्लॉट को मूल कीमत से दोगुनी कीमत पर वापस खरीदे। साथ ही मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी खर्च के लिए अतिरिक्त मुआवजा भी देने को कहा गया।
फैसले से खुश उपभोक्ता ने कहा कि यह केवल उनकी ही नहीं, बल्कि उन सभी उपभोक्ताओं की जीत है जो लंबे समय से बिल्डरों की मनमानी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “आयोग ने यह साबित किया है कि कानून का सहारा लेने पर न्याय जरूर मिलता है।”
बिल्डर की ओर से कहा गया कि देरी कुछ तकनीकी कारणों और सरकारी मंजूरियों के चलते हुई। लेकिन आयोग ने इस दलील को खारिज कर दिया और साफ कहा कि उपभोक्ताओं को वर्षों तक अंधेरे में नहीं रखा जा सकता।
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला देशभर के उपभोक्ता आयोगों के लिए नजीर (precedent) बनेगा। इससे बिल्डरों पर जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ काम करने का दबाव बढ़ेगा। उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। न्यायपालिका ने यह संदेश दिया है कि उपभोक्ता हमेशा सबसे ऊपर है।
यह फैसला उन सभी लोगों के लिए सबक है जो जमीन या मकान खरीदते समय केवल वादों पर भरोसा कर लेते हैं। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं:
-
हमेशा रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कराएं।
-
बिल्डर की परियोजना की RERA पंजीकरण स्थिति अवश्य जांचें।
-
समय-समय पर प्रगति की निगरानी करें।
-
शिकायत पर कार्रवाई न होने पर उपभोक्ता आयोग या RERA में शिकायत दर्ज करें।
छत्तीसगढ़ उपभोक्ता आयोग के इस सख्त फैसले से बिल्डरों को साफ संदेश गया है कि उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी महंगी पड़ सकती है। अब रियल एस्टेट कंपनियों को अपने वादों और अनुबंधों को लेकर और सतर्क रहना होगा।
छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग का यह फैसला केवल एक उपभोक्ता की राहत नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए उपभोक्ता अधिकारों की ताकत का उदाहरण है। इससे स्पष्ट हो गया है कि यदि उपभोक्ता अपनी आवाज उठाए और धैर्यपूर्वक न्याय की राह पर चले तो कानून उनके पक्ष में खड़ा होता है।