




महाराष्ट्र में लंबे समय से टल रहे स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग जनवरी 2026 तक हर हाल में चुनाव संपन्न कराएं। अदालत ने देरी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को बिना चुनाव के चलाना संविधान के खिलाफ है।
महाराष्ट्र में करीब 14 नगर निगम और 25 से ज्यादा जिलों की नगर परिषदें और पंचायतें चुनाव का इंतजार कर रही हैं। इन निकायों का कार्यकाल पिछले साल ही समाप्त हो गया था, लेकिन विभिन्न कारणों से चुनाव लगातार टलते रहे।
राज्य सरकार ने जनगणना, ओबीसी आरक्षण और प्रशासनिक तैयारियों का हवाला देकर चुनाव में देरी की। इस पर कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा:
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“स्थानीय निकाय लोकतंत्र की जड़ हैं। इन्हें समय पर चुनाव न कराना जनता के अधिकारों का हनन है।”
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“राज्य सरकार और चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।”
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“जनवरी 2026 तक हर हाल में चुनाव कराए जाएं, वरना यह अदालत कड़ा रुख अपनाएगी।”
अदालत ने यह भी कहा कि सरकार ओबीसी आरक्षण की प्रक्रिया पूरी करे, लेकिन चुनाव में और देरी न की जाए।
फैसले के बाद महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई है। भाजपा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनता की जीत है। विपक्ष के नेता ने कहा, “सरकार चुनाव से डर रही थी, लेकिन अब कोर्ट ने उनकी पोल खोल दी।” शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) ने कहा कि सरकार चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है और कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा। कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) ने आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझकर चुनाव टाले ताकि विपक्षी दलों को नुकसान पहुंचाया जा सके।
स्थानीय निकाय चुनाव सीधे तौर पर जनता से जुड़े होते हैं। नगर निगम और पंचायतों के जरिए ही सड़क, पानी, बिजली, स्वच्छता और स्थानीय विकास से जुड़े फैसले लिए जाते हैं।
मुंबई, पुणे, नागपुर और ठाणे जैसे बड़े शहरों में मेयर और पार्षदों का चुनाव लंबे समय से टलने से जनता में नाराजगी थी। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही चुनी हुई स्थानीय सरकारें काम करना शुरू करेंगी।
राज्य चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बयान जारी कर कहा कि वह पूरी तरह तैयार है। आयोग ने बताया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण अंतिम चरण में है। ओबीसी आरक्षण का मुद्दा राज्य सरकार और आयोग के बीच तालमेल से हल किया जाएगा। जनवरी तक चुनाव संपन्न कराने के लिए आवश्यक अधिसूचना जल्द जारी की जाएगी।
स्थानीय निकाय चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में बेहद अहम माने जाते हैं। मुंबई महानगरपालिका (BMC) देश की सबसे अमीर नगर निगम है। यहां का चुनाव सीधे शिवसेना, भाजपा और कांग्रेस के भविष्य से जुड़ा है। पुणे और नागपुर जैसे शहरों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होता है। ग्रामीण इलाकों में एनसीपी और कांग्रेस की पकड़ मजबूत है।
इसलिए स्थानीय चुनाव राज्य की सत्ता समीकरणों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश लोकतंत्र को मजबूती देने वाला कदम है। इससे सरकारों को यह संदेश गया है कि वे चुनावों में देरी कर अपनी सुविधा नहीं देख सकतीं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अन्य राज्यों के लिए भी नजीर (precedent) बनेगा, जहां स्थानीय चुनावों में अक्सर टालमटोल की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल मचा दी है। जहां जनता को समय पर चुनाव का भरोसा मिला है, वहीं राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति तेज कर दी है।