




अयोध्या में राम मंदिर का अंतिम और भव्य उद्घाटन होने वाला है। यह सिर्फ धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खासकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में इस उद्घाटन को भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी बड़ी चुनावी पूंजी के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी में है।
🔹 राम मंदिर और बीजेपी की सियासी रणनीति
राम मंदिर का मुद्दा लंबे समय से भारतीय राजनीति के केंद्र में रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद अब इसका उद्घाटन बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। बीजेपी इस आयोजन को राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू एकता के प्रतीक के रूप में पेश कर रही है और बिहार में जातीय समीकरण से परे “राम” के नाम पर वोटों को साधने का प्रयास कर रही है।
🔹 बिहार में जातीय राजनीति की अहमियत
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। यहां यादव, कुर्मी, भूमिहार, दलित और मुसलमान वोट बैंक का अलग-अलग असर दिखता है। आरजेडी और कांग्रेस जैसी पार्टियां जातीय समीकरण को मजबूती से पकड़कर राजनीति करती रही हैं। लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दे से जातीय सीमाओं को तोड़कर एक बड़ा हिंदू वोट बैंक तैयार किया जाए।
🔹 विपक्ष का रुख
विपक्षी दल, खासकर आरजेडी (RJD) और कांग्रेस, बीजेपी पर लगातार आरोप लगा रहे हैं कि वह धार्मिक मुद्दों का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा—
“राम आस्था के प्रतीक हैं, लेकिन बीजेपी उन्हें चुनावी हथियार बनाना चाहती है। बिहार की जनता जातीय और सामाजिक न्याय के मुद्दों को ज्यादा महत्व देगी।”
वहीं कांग्रेस नेताओं का कहना है कि बीजेपी असली मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।
🔹 चुनावी समीकरण पर असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राम मंदिर का उद्घाटन बीजेपी के लिए भावनात्मक लहर पैदा कर सकता है, लेकिन बिहार जैसे राज्य में जातीय समीकरण को पूरी तरह नजरअंदाज करना संभव नहीं।
बीजेपी ने रणनीति के तहत भूमिहार और ब्राह्मण समुदाय के साथ-साथ दलित और ओबीसी वर्ग में भी अपने समर्थन आधार को बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है। साथ ही, पार्टी “राम मंदिर उद्घाटन” को बिहार की हर सभा और रैली में प्रमुख मुद्दा बनाने की योजना पर काम कर रही है।
🔹 जनता का मूड
अयोध्या में भव्य राम मंदिर उद्घाटन की खबर ने बिहार की आम जनता में भी उत्साह पैदा किया है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी जातीय निष्ठा काफी गहरी है। कई मतदाता मानते हैं कि धार्मिक आस्था का महत्व है, लेकिन चुनावी फैसले जातीय पहचान और स्थानीय उम्मीदवार की क्षमता पर भी निर्भर करेंगे।
राम मंदिर उद्घाटन और बिहार चुनाव 2025 का संगम भारतीय राजनीति का एक अनोखा अध्याय साबित हो सकता है। बीजेपी इस आयोजन को “धर्म और राजनीति” का ऐसा मेल बना रही है, जिससे उसे जातीय राजनीति के गढ़ बिहार में बढ़त मिले। दूसरी ओर विपक्ष इसे “ध्रुवीकरण की राजनीति” बताकर जनता को सचेत करने की कोशिश में है।
अंततः, यह देखना दिलचस्प होगा कि राम मंदिर का उद्घाटन बीजेपी के लिए वोट बैंक का सेतु बनेगा या बिहार की जटिल जातीय राजनीति इस धार्मिक लहर पर भारी पड़ जाएगी।