




सुप्रीम कोर्ट ने Waqf (Amendment) Act, 2025 की कुछ विवादित धाराओं पर बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने अधिनियम के कई प्रावधानों पर रोक लगाई, जबकि कुछ हिस्से अब भी प्रभावी रहेंगे। इस फैसले को लेकर मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता और याचिकाकर्ता मुहम्मद जमीअल मर्चेंट ने कहा कि यह कोई पूर्ण जीत नहीं है बल्कि “सीमा तक सत्यापन” है।
क्या है Waqf (Amendment) Act, 2025?
भारत में वक्फ अधिनियम धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए बनाई गई वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा हुआ है। 1995 में लागू मूल अधिनियम के बाद 2025 में इसमें संशोधन किया गया। नए अधिनियम में कई बदलाव किए गए जिन पर मुस्लिम संगठनों और समाज के एक वर्ग ने आपत्ति जताई।
विवादित बदलावों में शामिल हैं। वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या बढ़ाने का प्रावधान। वक्फ संपत्ति घोषित करने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम 5 साल से इस्लाम का अभ्यासकर्ता होने की शर्त। जिला कलेक्टर को कई विवादों का अंतिम निर्णयकर्ता बनाने की व्यवस्था।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह प्रावधान वक्फ की स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने अधिनियम की कुछ धाराओं को तुरंत प्रभाव से निरस्त या ठहराव (stay) दे दिया।
कोर्ट ने जिन प्रावधानों पर रोक लगाई उनमें प्रमुख हैं:
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जिला कलेक्टर को अंतिम निर्णयकर्ता बनाने का प्रावधान।
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वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए 5 साल तक इस्लाम अभ्यासकर्ता होने की शर्त।
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वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने का कुछ हिस्सा सीमित किया गया।
अदालत ने कहा कि इन प्रावधानों से नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं और यह संविधान की भावना के अनुरूप नहीं हैं।
मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता की प्रतिक्रिया
मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता मुहम्मद जमीअल मर्चेंट, जिन्होंने अधिनियम को चुनौती दी थी, ने फैसले को स्वागत योग्य बताया, लेकिन इसे पूर्ण जीत मानने से इनकार किया। उन्होंने कहा:
“यह केवल आंशिक राहत है। अदालत ने हमारी कुछ चिंताओं को स्वीकार किया, लेकिन कानून के कई हिस्से अभी भी बरकरार हैं। आने वाली सुनवाई में हमें उम्मीद है कि बाकी विवादित धाराओं की भी समीक्षा होगी।”
मुस्लिम संगठनों और AIMPLB की प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अधूरा और असंतोषजनक बताया। उनका कहना है कि अदालत ने सिर्फ कुछ हिस्सों को रोका है, लेकिन कानून का बड़ा भाग अब भी प्रभावी है। संगठन का कहना है कि इससे वक्फ की पारंपरिक स्वायत्तता पर असर पड़ेगा।
सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने अदालत के आदेश का स्वागत किया और कहा कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के लिए यह अधिनियम आवश्यक है। सरकार का दावा है कि वक्फ संपत्तियों पर लगातार हो रहे विवाद और अतिक्रमण को रोकने के लिए नए प्रावधान जरूरी थे।
राजनीतिक और सामाजिक असर
विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार की “अत्यधिक शक्ति” सीमित करने वाला कदम बताया है। उनका कहना है कि इससे वक्फ संस्थाओं को आंशिक राहत मिली है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाली सुनवाई इस मुद्दे की दिशा तय करेगी।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की कुछ धाराओं पर रोक लगाई है। बाकी प्रावधानों की वैधता पर अभी फैसला आना बाकी है। अदालत की अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि अधिनियम का भविष्य क्या होगा और किस हद तक यह संविधान के अनुरूप माना जाएगा।