




भारत लंबे समय से “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” के नाम से पहचाना जाता है। कोविड महामारी के दौरान भारत ने दुनिया को सस्ती और प्रभावी वैक्सीन व दवाइयाँ देकर अपनी क्षमता साबित की। पर अब भारत केवल दवाइयों का सबसे बड़ा सप्लायर बनकर नहीं रहना चाहता। सरकार और उद्योग जगत मिलकर भारत को ग्लोबल वैल्यू चेन में ऊँचा स्थान दिलाने की रणनीति बना रहे हैं।
जीसीसी – भारत के लिए नया इंजन
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) भारत की अर्थव्यवस्था के लिए नया इंजन बन रहे हैं। भारत में 55 से अधिक जीसीसी फार्मा और हेल्थकेयर सेक्टर में काम कर रहे हैं। इनका काम केवल सपोर्ट सर्विस तक सीमित नहीं है, बल्कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट, डेटा एनालिटिक्स, ड्रग डिजाइनिंग और एआई आधारित हेल्थकेयर समाधान भी शामिल हैं।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में जीसीसी के विस्तार से देश में 3 लाख से अधिक नई नौकरियाँ पैदा होंगी।
रोजगार के नए अवसर
भारत में फार्मा उद्योग पहले से ही लाखों लोगों को रोजगार दे रहा है। लेकिन अब वैल्यू चेन में ऊपर जाने के साथ उच्च कौशल वाले युवाओं की मांग बढ़ेगी। क्लिनिकल रिसर्च, मेडिकल डेटा साइंस, एआई-ड्रिवन हेल्थकेयर सॉल्यूशंस, बायोटेक इनोवेशन
इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विशेषज्ञों की ज़रूरत होगी। आईटी और फार्मा का यह मेल युवाओं के लिए सुनहरा अवसर है।
सरकार की पहल
केंद्र सरकार ने “मेक इन इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” जैसी पहलों के साथ फार्मा और बायोटेक्नोलॉजी को विशेष बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही फार्मा पार्क, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना और रिसर्च ग्रांट्स जैसे कदम उठाए गए हैं। इन नीतियों का सीधा असर यह हुआ है कि वैश्विक कंपनियाँ भारत में अपने जीसीसी और आरएंडडी हब स्थापित कर रही हैं।
वैश्विक कंपनियों का रुझान
फार्मा जगत की बड़ी कंपनियाँ जैसे फाइजर, नोवार्टिस, एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन भारत में अपने जीसीसी विस्तार कर चुकी हैं। इन कंपनियों का मानना है कि भारत में टैलेंट पूल, किफायती लागत और मजबूत डिजिटल इकोसिस्टम
मौजूद है, जो उन्हें प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाता है।
तकनीक और इनोवेशन का मेल
आज की दुनिया में दवा उद्योग केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, जीन एडिटिंग और बायोफार्मा जैसी तकनीकें भविष्य तय कर रही हैं। भारत इन क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता बढ़ा रहा है। जीसीसी इसी दिशा में भारत को ग्लोबल हब बना रहे हैं।
कौशल विकास की चुनौती
हालाँकि, भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती कौशल विकास की है। यदि तीन लाख से अधिक नई नौकरियाँ बनती हैं, तो उसके लिए उच्च प्रशिक्षित युवा चाहिए। सरकार और उद्योग को मिलकर मेडिकल एजुकेशन सुधार, रिसर्च सुविधाओं का विस्तार और स्किल डेवेलपमेंट प्रोग्राम
चलाने होंगे। तभी भारत वैल्यू चेन में मजबूती से ऊपर जा पाएगा।
भारत की रणनीतिक बढ़त
भारत को फार्मा और जीसीसी हब बनाने के पीछे कई कारण हैं।
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जनसंख्या से मिलने वाला विशाल टैलेंट पूल।
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दुनिया की तुलना में कम लागत पर उत्पादन क्षमता।
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मजबूत आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन।
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सरकार का स्पष्ट नीति समर्थन।
ये सभी तत्व मिलकर भारत को केवल “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” से आगे बढ़ाकर “इनnovation और रिसर्च हब” में बदल सकते हैं।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
फार्मा और बायोटेक्नोलॉजी में भारत का मुकाबला चीन, अमेरिका और यूरोप से है। चीन लागत के आधार पर चुनौती देता है, जबकि अमेरिका और यूरोप इनोवेशन के क्षेत्र में आगे हैं। भारत के पास यह अनोखा मौका है कि वह लागत और इनोवेशन दोनों में संतुलन साधकर ग्लोबल लीडरशिप हासिल करे।
भारत अब केवल जेनेरिक दवाइयों का केंद्र नहीं रहना चाहता। आने वाले समय में देश ग्लोबल हेल्थकेयर इनोवेशन और फार्मा वैल्यू चेन में अग्रणी भूमिका निभाने की दिशा में बढ़ रहा है। 55 से अधिक जीसीसी और 3 लाख नई नौकरियों की संभावना इस बदलाव का सबूत हैं। यदि भारत कौशल विकास, रिसर्च और तकनीक को सही दिशा देता है, तो “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” की पहचान से आगे बढ़कर “हेल्थकेयर इनोवेशन हब” बनने में कोई संदेह नहीं रहेगा।