




संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान और चीन को बड़ा झटका लगा है। अमेरिका ने उस प्रस्ताव को ब्लॉक कर दिया, जिसमें बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। यह कदम ऐसे समय आया है जब कुछ हफ्ते पहले ही अमेरिका ने खुद BLA को आतंकवादी संगठन घोषित किया था।
पाकिस्तान लंबे समय से बलूच लिबरेशन आर्मी पर वैश्विक कार्रवाई की मांग कर रहा है। इस सिलसिले में हाल ही में चीन के सहयोग से UNSC की 1267 अल-कायदा सैंक्शन कमेटी में एक प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि BLA को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैन कर उसकी फंडिंग और संसाधनों को रोकना जरूरी है, क्योंकि यह संगठन पाकिस्तान में कई बड़े आतंकी हमलों में शामिल रहा है।
चीन ने इस मामले में पाकिस्तान का साथ देते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बताया और BLA को तुरंत प्रतिबंधित सूची में डालने की वकालत की।
हालांकि, अमेरिका ने इस प्रस्ताव को रोक दिया। अमेरिकी प्रतिनिधियों का तर्क था कि किसी भी संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने के लिए ठोस और निष्पक्ष सबूतों की जरूरत होती है। अमेरिका का कहना है कि पाकिस्तान ने जो डोजियर और रिपोर्ट प्रस्तुत किए हैं, उनमें कई खामियां हैं और यह पूरी तरह पारदर्शी नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका ने यह कदम न केवल तकनीकी आधार पर उठाया है, बल्कि यह भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है। दरअसल, अमेरिका पाकिस्तान और चीन की बढ़ती नजदीकियों को लेकर पहले से ही सतर्क है।
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) की स्थापना 2000 के दशक की शुरुआत में हुई थी। यह संगठन बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग करता है और पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चला रहा है। BLA पर पाकिस्तान सरकार और सेना पर कई हमले करने के आरोप हैं। हाल के वर्षों में इस संगठन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से जुड़े प्रोजेक्ट्स को भी निशाना बनाया है, जिससे चीन की चिंता बढ़ी हुई है।
अमेरिका का यह कदम स्पष्ट रूप से चीन और पाकिस्तान के हितों के खिलाफ माना जा रहा है। चीन CPEC के जरिए बलूचिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश कर चुका है और चाहता है कि वहां सक्रिय आतंकी संगठनों को खत्म किया जाए। दूसरी ओर, पाकिस्तान इसे अपने आंतरिक संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिलाने के रूप में देखता है।
लेकिन अमेरिका के इस रुख से संकेत मिलता है कि वह पाकिस्तान और चीन के दबाव में आने को तैयार नहीं है। अमेरिका पहले ही पाकिस्तान की डबल गेम – यानी आतंकी संगठनों को लेकर दोहरे रवैये – की आलोचना करता रहा है।
अमेरिका के इस कदम से पाकिस्तान में नाराजगी बढ़ गई है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय आतंकी संगठनों के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गलत संदेश देता है। वहीं, पाकिस्तान ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मुद्दे को दोबारा UNSC और अन्य मंचों पर उठाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका का यह कदम दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बनाए रखने की कोशिश है। अमेरिका नहीं चाहता कि चीन-पाकिस्तान की साझेदारी और मजबूत हो, इसलिए वह उनके प्रस्तावों पर सतर्क रुख अपनाता है।
इसके अलावा, यह फैसला भारत के लिए भी सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। भारत पहले से ही पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों को संरक्षण देने का आरोप लगाता रहा है। ऐसे में अमेरिका का यह कदम अप्रत्यक्ष रूप से भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
UN में पाकिस्तान और चीन को अमेरिका ने बड़ा झटका देकर यह साफ कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी आतंकी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केवल राजनीतिक मंशा काफी नहीं है, बल्कि पारदर्शी सबूत और वैश्विक सहमति जरूरी है। आने वाले समय में यह मामला पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के बीच एक और कूटनीतिक टकराव को जन्म दे सकता है।