




अमेरिका और ईरान के बीच जारी तनाव ने एक बार फिर भारत के लिए कूटनीतिक और आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है। हाल ही में अमेरिका ने चाबहार पोर्ट से जुड़े एक कदम उठाए हैं, जिसे सीधे तौर पर ईरान को निशाना बनाने के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा, क्योंकि यह बंदरगाह भारत की रणनीतिक परियोजनाओं और मध्य एशिया के साथ व्यापारिक संबंधों का अहम हिस्सा है।
ईरान का चाबहार पोर्ट भारत के लिए सिर्फ एक व्यापारिक केंद्र नहीं है, बल्कि यह कई मायनों में रणनीतिक रूप से अहम है।
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इस पोर्ट के माध्यम से भारत सीधे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच सकता है।
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यह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट (जहां चीन का बड़ा निवेश है) का विकल्प भी है।
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भारत ने इस पोर्ट के विकास में बड़ा निवेश किया है और इसे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा माना जाता है।
विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका ने यह कदम ईरान पर दबाव बढ़ाने और उसके साथ हो रहे किसी भी तीसरे देश के सहयोग को कमजोर करने के लिए उठाया है।
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वॉशिंगटन लंबे समय से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए है।
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चाबहार पोर्ट, भारत-ईरान के सहयोग का बड़ा प्रतीक रहा है और अमेरिका इसे अप्रत्यक्ष रूप से ईरान को मिलने वाले आर्थिक सहारे के रूप में देखता है।
भारत के लिए यह कदम कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ा कर सकता है:
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व्यापारिक नुकसान – अफगानिस्तान और मध्य एशिया में भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है।
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रणनीतिक दिक्कत – पाकिस्तान और चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने की भारत की रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
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ऊर्जा सुरक्षा – ईरान से तेल और गैस आयात पर पहले ही अमेरिका के प्रतिबंधों का असर पड़ा है, अब चाबहार पर रुकावट भारत के लिए और कठिनाई पैदा करेगी।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार मानते हैं कि अमेरिका का यह कदम भारत के लिए ‘डिप्लोमैटिक टेस्ट’ है।
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एक ओर भारत अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत कर रहा है।
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दूसरी ओर, ईरान भारत की ऊर्जा और क्षेत्रीय रणनीति का अभिन्न हिस्सा है।
ऐसे में भारत को बेहद संतुलित कूटनीति अपनानी होगी।
विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत के पास अभी कुछ विकल्प मौजूद हैं:
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अमेरिका के साथ बातचीत कर चाबहार को प्रतिबंधों से छूट दिलवाने की कोशिश करना।
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INSTC और रूस-ईरान सहयोग को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक साझेदारियों को बढ़ाना।
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अफगानिस्तान और मध्य एशिया से अन्य मार्गों के जरिए संपर्क बढ़ाना।
अमेरिका का चाबहार पोर्ट पर यह कदम सिर्फ ईरान के खिलाफ नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भारत के हितों पर भी चोट है। भारत ने जिस रणनीति के तहत चाबहार पोर्ट में निवेश किया था, उस पर अब अनिश्चितता का साया मंडरा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस कूटनीतिक पेच को कैसे सुलझाता है।