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भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक ऐसा खुलासा किया जिसने न्यायपालिका और समाज दोनों में गहरी चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने बताया कि एक समय पर एक हाईकोर्ट के जज ने मुस्लिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कहकर संबोधित किया था। इस घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह बात उन्हें गहराई से आहत कर गई थी।
एक इंटरव्यू/सार्वजनिक संबोधन के दौरान चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह समाज को एकजुट रखने और सबको समान न्याय दिलाने का काम करे।
उन्होंने कहा –
“मुझे याद है जब एक हाईकोर्ट के जज ने अपने ऑर्डर में मुस्लिम इलाक़े को पाकिस्तान कहकर संबोधित किया। मैंने यह पढ़ा तो मुझे बहुत दुख हुआ। न्यायाधीशों की भाषा और शब्द पूरे समाज के लिए उदाहरण होती है। जब जज ही भेदभाव करेंगे तो न्याय की उम्मीद कौन करेगा?”
चंद्रचूड़ ने साफ कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता उसकी निष्पक्षता और भाषा पर टिकी होती है। यदि जज किसी समुदाय या धर्म विशेष को लेकर पक्षपातपूर्ण टिप्पणी करते हैं तो यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देता है और अदालत का काम इन अधिकारों की रक्षा करना है, न कि किसी वर्ग के खिलाफ पूर्वाग्रह फैलाना।
इस खुलासे के बाद सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छिड़ गई।
कई लोगों ने कहा कि चंद्रचूड़ की साफगोई से यह पता चलता है कि न्यायपालिका के भीतर भी समय-समय पर पूर्वाग्रह की चुनौती सामने आती है।
वहीं कुछ यूज़र्स ने लिखा कि ऐसे बयान ही समाज में विभाजन की दीवार खड़ी करते हैं, इसलिए न्यायाधीशों को अपनी भाषा और दृष्टिकोण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
इस बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी आना शुरू हो गई हैं।
कांग्रेस और विपक्षी दलों ने इसे लेकर कहा कि अगर पूर्व CJI को भी ऐसी बातों से पीड़ा हुई, तो यह साफ है कि न्यायपालिका में सुधार की ज़रूरत है।
वहीं, सत्ता पक्ष से जुड़े कुछ नेताओं ने कहा कि व्यक्तिगत बयान को पूरे न्यायपालिका पर थोपना गलत है।
पूर्व CJI ने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर जोर दिया है।
उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई बार कहा कि –
“न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत सोच को कभी भी अदालत के फैसलों और आदेशों पर हावी नहीं होने देना चाहिए।”
उनका यह खुलासा बताता है कि वे खुद इस बात को लेकर कितने सजग और संवेदनशील रहे।
पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ का यह बयान भारतीय न्यायपालिका और समाज दोनों के लिए आत्ममंथन का अवसर है।
यह साफ है कि अदालतों की भाषा और दृष्टिकोण जनता के विश्वास को गढ़ने या तोड़ने में बड़ी भूमिका निभाती है।
इसलिए, ऐसे मामलों को केवल व्यक्तिगत अनुभव मानकर छोड़ने के बजाय, न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय हमेशा निष्पक्ष और भेदभाव-रहित दिखे।






