




अमेरिका में H-1B वीज़ा धारकों के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया है। ट्रंप प्रशासन ने वीज़ा नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए घोषणा की है कि रविवार से कोई भी विदेशी नागरिक, विशेषकर भारतीय प्रोफेशनल्स, तब तक अमेरिका में प्रवेश नहीं कर पाएंगे जब तक वे 88 लाख रुपये (1,05,000 अमेरिकी डॉलर) का शुल्क अदा नहीं करते। इस फैसले ने भारतीय आईटी सेक्टर और उन लाखों परिवारों को चिंता में डाल दिया है, जिनका भविष्य अमेरिका के इस वीज़ा प्रोग्राम पर टिका है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रविवार से लागू होने वाले इस नियम के तहत H-1B वीज़ा के लिए सिर्फ आवेदन शुल्क ही नहीं, बल्कि अतिरिक्त 88 लाख रुपये का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उद्देश्य ट्रंप प्रशासन के अनुसार “अमेरिका में नौकरियों को सुरक्षित करना और विदेशी वर्कफोर्स पर निर्भरता घटाना” है।
भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और टेक महिंद्रा सबसे अधिक प्रभावित होंगी। इनमें हजारों भारतीय इंजीनियर और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स अमेरिका में काम कर रहे हैं। नई शर्त के बाद कंपनियों को हर कर्मचारी के लिए करोड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा, जो उनकी लागत और लाभप्रदता पर सीधा असर डालेगा।
H-1B वीज़ा धारकों में 70% से ज्यादा भारतीय नागरिक हैं। यह वीज़ा भारतीय आईटी और टेक सेक्टर के लिए अमेरिका में रोजगार और अवसरों का सबसे बड़ा जरिया रहा है। नए नियम के कारण भारतीय युवाओं और पेशेवरों को अब अमेरिका में नौकरी पाना न केवल कठिन होगा, बल्कि बेहद महंगा सौदा साबित होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारतीय छात्रों और नए प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिकी सपना और भी दूर हो जाएगा। अमेरिका की यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई पूरी करने के बाद वहां काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीय छात्रों को अब दोगुना संकट झेलना पड़ेगा।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए आवश्यक है। उनका मानना है कि H-1B वीज़ा प्रोग्राम का दुरुपयोग करके विदेशी कंपनियां अमेरिकी नौकरियों पर कब्जा कर रही हैं और स्थानीय युवाओं को रोजगार से वंचित कर रही हैं।
ट्रंप ने इसे “America First” नीति का हिस्सा बताते हुए कहा कि विदेशी कामगारों की लागत बढ़ाने से अमेरिकी कंपनियां स्थानीय प्रतिभाओं को प्राथमिकता देने पर मजबूर होंगी।
भारत सरकार ने इस फैसले पर चिंता जताई है और कहा है कि यह निर्णय न केवल भारतीय पेशेवरों के लिए, बल्कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास के लिए भी नकारात्मक असर डाल सकता है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार और प्रतिभा का आदान-प्रदान लंबे समय से मजबूत रहा है और इस तरह का कदम उस रिश्ते को कमजोर कर सकता है।
भारत की आईटी इंडस्ट्री बॉडी नासकॉम (NASSCOM) ने भी कहा कि यह निर्णय “अनुचित और भेदभावपूर्ण” है। नासकॉम का मानना है कि भारतीय कंपनियां अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री और नवाचार में बड़ा योगदान देती हैं, और ऐसे फैसले से अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान होगा।
नया नियम सिर्फ कंपनियों और प्रोफेशनल्स को नहीं, बल्कि उन भारतीय परिवारों को भी प्रभावित करेगा जो H-1B वीज़ा पर अमेरिका में रह रहे हैं। फीस के इस बड़े बोझ से कई परिवारों के लिए अपने बच्चों की पढ़ाई और अमेरिका में स्थायित्व बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
इसके अलावा, वीज़ा आवेदन प्रक्रिया महंगी और जटिल हो जाने से कई लोग अब अमेरिका के बजाय कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस कदम से अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री पर भी असर पड़ेगा। भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स लंबे समय से अमेरिकी कंपनियों की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। उनकी कमी से अमेरिकी कंपनियों की उत्पादकता और नवाचार की रफ्तार घट सकती है।
भारत के लिए यह कदम दोहरी चुनौती पेश करता है। एक ओर लाखों भारतीय युवाओं के लिए अमेरिका में रोजगार के अवसर सीमित होंगे, वहीं दूसरी ओर भारतीय आईटी कंपनियों की कमाई और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले हफ्तों में भारत और अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर कूटनीतिक बातचीत हो सकती है। भारत इस फैसले में राहत या संशोधन की मांग कर सकता है। इसके अलावा, प्रभावित कंपनियां भी अमेरिकी अदालतों में इस फैसले को चुनौती देने पर विचार कर सकती हैं।
ट्रंप प्रशासन का यह कदम फिलहाल भारतीय पेशेवरों और आईटी कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। रविवार से लागू होने वाला नया नियम न केवल आर्थिक दबाव बढ़ाएगा, बल्कि हजारों भारतीय परिवारों के सपनों को भी प्रभावित करेगा।
अब देखने वाली बात होगी कि भारत सरकार और उद्योग जगत इस संकट का समाधान कैसे निकालते हैं और क्या अमेरिका इस फैसले में नरमी दिखाता है या नहीं।