




भारत का सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इस साल अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। 1925 में नागपुर से शुरू हुई पहली शाखा से लेकर आज लाखों स्वयंसेवकों तक की यात्रा बेहद रोचक रही है। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने जिस सपने और विचार के साथ इसकी नींव रखी थी, वह अब भारतीय समाज और राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
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27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में पहली शाखा का आयोजन किया गया।
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इस शाखा में कुछ ही स्वयंसेवक शामिल हुए थे, लेकिन हेडगेवार का सपना बहुत बड़ा था।
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शाखा की गतिविधियों में व्यायाम, देशभक्ति गीत, अनुशासन और राष्ट्र सेवा की शपथ शामिल थी।
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धीरे-धीरे यह शाखा एक आंदोलन में बदल गई और देशभर में फैलने लगी।
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था।
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वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़े रहे, लेकिन जल्द ही उन्हें लगा कि केवल राजनीतिक आजादी से देश मजबूत नहीं होगा।
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उनका मानना था कि भारत को सशक्त बनाने के लिए सामाजिक एकता और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण जरूरी है।
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इसी विचार से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
संघ की सबसे बड़ी खासियत रही है उसकी शाखा व्यवस्था।
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हर दिन की शाखा में शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण होता है।
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इसमें अनुशासन, एकजुटता और सेवा की भावना विकसित की जाती है।
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शाखा में जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्रीय भेदभाव की कोई जगह नहीं होती।
संघ के अनुसार, शाखा केवल व्यायाम का मैदान नहीं है, बल्कि यह चरित्र निर्माण की पाठशाला है।
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जब संघ की स्थापना हुई, तब देश अंग्रेजों की गुलामी में था।
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उस समय कई संगठनों को संदेह था कि संघ का उद्देश्य क्या है।
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डॉ. हेडगेवार ने स्पष्ट किया कि संघ का लक्ष्य किसी पार्टी की राजनीति करना नहीं, बल्कि समाज को संगठित करना है।
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स्वतंत्रता आंदोलन में भी संघ के कई स्वयंसेवकों ने अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया।
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हेडगेवार का व्यक्तित्व बेहद अनुशासित और दूरदर्शी था।
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उन्होंने स्वयंसेवकों को सिर्फ संगठन के सदस्य नहीं, बल्कि देश का प्रहरी बनने की शिक्षा दी।
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वे कहते थे—
“संगठित राष्ट्र ही स्वतंत्र और समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।” -
1930 के दशक तक संघ की शाखाएँ मध्य भारत और महाराष्ट्र के बाहर भी फैलने लगीं।
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डॉ. हेडगेवार ने युवाओं को संगठन से जोड़ने पर खास ध्यान दिया।
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उनका मानना था कि अगर युवाओं में देशभक्ति और सेवा की भावना जाग्रत होगी तो समाज मजबूत होगा।
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आज RSS केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में शाखाएँ चला रहा है।
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शिक्षा, सेवा, ग्राम विकास, पर्यावरण और सामाजिक सद्भाव जैसे क्षेत्रों में संघ की हजारों परियोजनाएँ सक्रिय हैं।
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संगठन का सीधा राजनीतिक कामकाज नहीं है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कई अन्य संगठनों में संघ की विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
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अपने सौ सालों की यात्रा में संघ को आलोचनाओं और विवादों का भी सामना करना पड़ा है।
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कई बार संघ पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाया गया, लेकिन समर्थकों का कहना है कि संघ केवल राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा के लिए कार्यरत है।
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डॉ. हेडगेवार हमेशा कहते थे कि संघ का काम है समाज को संगठित करना, राजनीति करना नहीं।
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जब संघ की स्थापना हुई थी, तब भारत गुलाम था और समाज विभाजित।
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आज भारत स्वतंत्र है, लेकिन सामाजिक एकता और राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं।
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ऐसे में संघ मानता है कि उसका काम खत्म नहीं हुआ है, बल्कि जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली शाखा नागपुर से शुरू होकर आज विश्वव्यापी संगठन बन चुकी है।
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डॉ. हेडगेवार की सोच ने एक ऐसी परंपरा को जन्म दिया जिसने अनुशासन, सेवा और राष्ट्रवाद को आधार बनाया।
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100 वर्षों की इस यात्रा में संघ ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन यह तथ्य निर्विवाद है कि RSS ने भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा असर छोड़ा है।
आज जब संघ 100 वर्ष पूरे कर रहा है, तब यह सवाल महत्वपूर्ण है कि आने वाले समय में यह संगठन कैसे अपनी भूमिका निभाएगा और देश की नई पीढ़ी को किस दिशा में ले जाएगा।