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    तेज प्रताप यादव के नए पोस्टर से गायब लालू-राबड़ी की तस्वीरें, इन 5 चेहरों ने ली जगह — क्या परिवार से दूरी का इशारा है?

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    बिहार की राजनीति में इस समय जो सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है, वह है तेज प्रताप यादव की नई पार्टी और उसका नया पोस्टर। तेज प्रताप यादव, जो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे हैं, हाल ही में अपनी नई राजनीतिक पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) के गठन के साथ सुर्खियों में आए हैं। लेकिन इस नई पार्टी के पहले आधिकारिक पोस्टर ने सभी को चौंका दिया है।

    इस पोस्टर में ना तो उनके पिता और आरजेडी प्रमुख लालू यादव की तस्वीर है और ना ही पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी मां राबड़ी देवी की कोई झलक। यही नहीं, उनके छोटे भाई और वर्तमान में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव भी इस पोस्टर से नदारद हैं। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या तेज प्रताप अब पूरी तरह से राजनीतिक रूप से अपने परिवार से अलग राह पर चलने का फैसला कर चुके हैं?

    पोस्टर में जिन पांच चेहरों को जगह दी गई है, वे हैं – भीमराव आंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस, एपीजे अब्दुल कलाम, स्वामी विवेकानंद और भगवान श्रीकृष्ण। इन सभी चेहरों को तेज प्रताप ने अपनी राजनीतिक विचारधारा के प्रतीक के तौर पर दिखाया है। हर एक चेहरे के पीछे एक खास संदेश छिपा है, जिसे तेज प्रताप अब अपनी पार्टी के मूलमंत्र के रूप में जनता तक पहुंचाना चाहते हैं।

    डॉ. भीमराव आंबेडकर का चेहरा सामाजिक न्याय और संविधान की रक्षा की भावना को दर्शाता है। तेज प्रताप ने कई बार यह कहा है कि वे समाज के वंचित वर्गों के लिए आवाज उठाना चाहते हैं। सुभाष चंद्र बोस आज़ादी के संघर्ष की क्रांति का प्रतीक हैं और युवाओं के लिए प्रेरणा। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का चेहरा विज्ञान, शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के आदर्श को लेकर चुना गया प्रतीत होता है। स्वामी विवेकानंद का ज़िक्र आध्यात्मिकता और युवा ऊर्जा से जुड़ा है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण को तेज प्रताप अपने आराध्य के रूप में हमेशा से सामने लाते रहे हैं।

    इस पोस्टर से तेज प्रताप ने एक और संदेश भी देने की कोशिश की है — वे अब व्यक्तिगत छवि और विचारधारा के आधार पर अपनी राजनीतिक यात्रा तय करना चाहते हैं, न कि अपने पिता या परिवार के राजनीतिक कद के आधार पर। वे पहले भी कई बार यह संकेत दे चुके हैं कि पार्टी में उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा और उनके विचारों की अनदेखी हो रही है।

    पोस्टर में लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव का न होना इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि तेज प्रताप यादव ने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत अपने पिता की पार्टी से ही की थी और लालू प्रसाद ने उन्हें हमेशा एक “प्रभावशाली नेता” के रूप में आगे बढ़ाया। लेकिन बीते कुछ वर्षों में तेज प्रताप और तेजस्वी यादव के बीच खटास सार्वजनिक रूप से सामने आ चुकी है।

    तेज प्रताप का यह नया पोस्टर न सिर्फ एक राजनीतिक स्टेटमेंट है, बल्कि यह RJD के भीतर गहराते मतभेदों का भी प्रतीक बन गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि तेज प्रताप अब न केवल अलग पार्टी बनाकर बल्कि अपने राजनीतिक विचार और आदर्श भी तय कर चुके हैं, जो अपने पारिवारिक विरासत से हटकर हैं।

    राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम तेज प्रताप के राजनीतिक आत्मनिर्भरता की शुरुआत है। साथ ही, यह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले उनके समर्थन आधार को तैयार करने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। तेज प्रताप का यह प्रयोग उन्हें कितनी राजनीतिक सफलता दिलाता है, यह तो समय बताएगा, लेकिन एक बात तो तय है कि बिहार की राजनीति में इस समय उनकी चर्चा सबसे अधिक है।

    इस पोस्टर के जारी होने के बाद RJD खेमे से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि परिवार में यह नई कड़ी तनाव की वजह जरूर बनी है। खासकर तेजस्वी यादव के लिए यह एक राजनीतिक चुनौती हो सकती है, क्योंकि पार्टी के पारंपरिक यादव वोट बैंक में बंटवारा संभव है।

    तेज प्रताप यादव ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह किसी भी दल से गठबंधन के लिए अभी पूरी तरह खुले हैं, लेकिन वे अपनी पार्टी की विचारधारा से कोई समझौता नहीं करेंगे। इस तरह उनके राजनीतिक सफर की यह नई शुरुआत अपने आप में अनोखी और अप्रत्याशित है।

    बिहार के मतदाताओं के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या तेज प्रताप अपने विचारों, व्यक्तित्व और नए गठजोड़ों के बल पर अपनी पार्टी को विधानसभा में स्थान दिला पाते हैं या नहीं। पर इतना तय है कि तेज प्रताप अब “परिवार के साये” से बाहर निकलकर अपनी राजनीतिक पहचान गढ़ने की कोशिश में हैं।


    ‘जनशक्ति जनता दल’ का यह पहला पोस्टर तेज प्रताप यादव की नई राजनीतिक पहचान की पहली झलक है। इसमें परिवार से दूरी, वैचारिक स्पष्टता और सामाजिक बदलाव की दिशा में नई शुरुआत की छवि साफ झलकती है। अब देखना यह होगा कि बिहार की जनता इस नए प्रयास को कितनी गंभीरता से लेती है।

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