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    CAFE 3: ज्यादा माइलेज, कम प्रदूषण! 2027 से और सख़्त होंगे कैफ़े नॉर्म्स, छोटी कारों को बड़ी राहत

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    भारत सरकार ने वाहनों की फ्यूल एफिशियेंसी और पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए CAFE 3 (कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफिशियेंसी) नियमों का नया ड्राफ्ट पेश किया है। ये नियम अप्रैल 2027 से लागू होंगे और इनका मकसद है वाहनों के औसत कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जन को कम करना, साथ ही देश में ग्रीन और क्लीन मोबिलिटी को बढ़ावा देना।

    नए ड्राफ्ट में प्रस्ताव है कि सभी वाहन निर्माता कंपनियों के बेड़े (fleet) में शामिल कारों का औसत CO₂ उत्सर्जन स्तर कम किया जाएगा। मौजूदा कैफ़े‑2 नियमों के अंतर्गत यह सीमा 113 ग्राम प्रति किलोमीटर है, जबकि कैफ़े‑3 में इसे लगभग 92 ग्राम प्रति किलोमीटर तक लाने का प्रस्ताव है। यह लक्ष्य भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं और ग्रीन मोबिलिटी को लेकर उसकी नीति को मजबूत करता है।

    हालांकि, सरकार ने इस बार छोटे कार निर्माताओं को एक अहम राहत दी है। नए नियमों में कहा गया है कि वे छोटी पेट्रोल कारें, जिनका वजन 909 किलोग्राम से कम है, जिनकी इंजन क्षमता 1,200 सीसी या उससे कम है और जिनकी लंबाई 4 मीटर से कम है, उन्हें अधिकतम 9 ग्राम प्रति किलोमीटर तक अतिरिक्त छूट मिल सकती है। यह छूट तीन हिस्सों में दी जाएगी – वजन, इंजन क्षमता और लंबाई के आधार पर प्रत्येक में 3 ग्राम की कटौती का विकल्प है।

    यह राहत खासतौर पर भारत में पॉपुलर छोटे कार सेगमेंट जैसे कि हैचबैक और कॉम्पैक्ट सेडान को ध्यान में रखते हुए दी गई है, जो मध्यम वर्ग के लिए सुलभ विकल्प हैं और जो अब इलेक्ट्रिक वर्जन में भी आने लगे हैं।

    नए नियमों में स्वच्छ ऊर्जा वाहनों को बढ़ावा देने के लिए ‘सुपर क्रेडिट’ प्रणाली भी लागू की जाएगी। इस प्रणाली के अंतर्गत इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), हाइब्रिड और फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को वाहन बेड़े के औसत उत्सर्जन में अतिरिक्त वज़न दिया जाएगा। उदाहरण के तौर पर, एक बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन को तीन गाड़ियों के बराबर गिना जाएगा, जिससे कंपनी का औसत उत्सर्जन स्तर सुधरेगा। इसी तरह, प्लग-इन हाइब्रिड को 2.5, स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड को 2 और फ्लेक्स-फ्यूल इंजन वाहनों को 1.5 गाड़ियों के बराबर माना जाएगा।

    इसके अलावा, नया ड्राफ्ट यह भी अनुमति देता है कि तीन वाहन निर्माता कंपनियाँ मिलकर ‘पूलिंग’ कर सकती हैं, यानी अपने-अपने बेड़े को जोड़कर औसत उत्सर्जन लक्ष्य पूरा कर सकती हैं। यह विकल्प खासकर उन कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकता है जिनके पास सीमित संख्या में मॉडल या टेक्नोलॉजी हैं।

    सरकार ने उन कंपनियों को भी छूट दी है जो साल में 1,000 यूनिट से कम वाहन बेचती हैं। ये कंपनियाँ CAFE नियमों के अनुपालन से बाहर रहेंगी ताकि वे तकनीकी अपग्रेड में निवेश करते समय प्रतिस्पर्धा से बाहर न हो जाएं।

    एक और बड़ा परिवर्तन जो इस ड्राफ्ट में प्रस्तावित है, वह है कार्बन न्यूट्रलिटी फैक्टर (CNF) का उपयोग। इसके अंतर्गत ऐसे वाहन जो E20–E30 जैसे इथेनॉल मिश्रित ईंधन, CNG, या फ्लेक्स-फ्यूल पर चलते हैं, उन्हें उत्सर्जन में विशेष छूट दी जाएगी। उदाहरण के लिए, पेट्रोल वाहन जो E20–E30 ईंधन उपयोग करते हैं, उन्हें 8% तक की छूट मिलेगी, जबकि फ्लेक्स-फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड वाहनों को लगभग 22.3% तक की छूट मिल सकती है।

    हालांकि, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में इस ड्राफ्ट को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने छोटे वाहनों को दी जा रही राहत का समर्थन किया है। उनका मानना है कि ये छूट देश के उन ग्राहकों के हित में हैं जो अब भी किफायती, ईंधन-कुशल गाड़ियों को प्राथमिकता देते हैं।

    वहीं दूसरी ओर, टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसे बड़े निर्माता इन रियायतों का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यदि छोटी कारों को CO₂ उत्सर्जन में अतिरिक्त छूट दी जाती है, तो यह ग्रीन टेक्नोलॉजी के विकास को हतोत्साहित करेगा और बड़े वाहनों को अनुपालन में लाने के लिए अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।

    SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) के भीतर भी इस विषय पर मतभेद हैं। संगठन के कुछ सदस्यों का मानना है कि इस तरह की श्रेणी आधारित छूट से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तकनीकी विकास की समान गति बाधित हो सकती है।

    सरकार के लिए भी यह एक कठिन चुनौती है कि वह उपभोक्ता हितों, उद्योग की व्यावसायिक आवश्यकताओं और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन कैसे बनाए। वहीं, यदि कोई निर्माता नए नियमों का पालन नहीं करता है, तो उसे प्रति वाहन ₹10 लाख तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। यह आंकड़ा नियमों के उल्लंघन की मात्रा पर निर्भर करेगा।

    नए नियमों का उद्देश्य स्पष्ट है — भारत में पर्यावरणीय जिम्मेदारी और तकनीकी विकास को बढ़ावा देना। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है। कंपनियों को इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड टेक्नोलॉजी में निवेश बढ़ाना होगा, साथ ही उपभोक्ताओं को जागरूक करना होगा कि अगली पीढ़ी की कारें केवल स्टाइल और पावर नहीं, बल्कि सस्टेनेबिलिटी का भी प्रतीक बनें।

    अब देखना यह होगा कि CAFE 3 ड्राफ्ट पर उद्योग की राय और सुधारात्मक सुझावों को कैसे शामिल किया जाता है और अंतिम नियम क्या रूप लेते हैं। लेकिन इतना तय है कि अप्रैल 2027 के बाद भारत की सड़कों पर दौड़ने वाली गाड़ियाँ सिर्फ माइलेज ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी की नई पहचान भी बनेंगी।

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