




जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की नई व्यवस्था, जिसे GST 2.0 कहा जा रहा है, 22 सितंबर 2025 से लागू हो गई है। इस नई व्यवस्था में कई वस्तुओं पर कर दरों में बदलाव किया गया है, जिससे उपभोक्ताओं की जेब पर असर पड़ा है।
एसी, टीवी, फ्रिज सस्ते, लेकिन किताबें महंगी
जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक में लिए गए फैसले के अनुसार, एसी, टीवी, फ्रिज जैसे लग्जरी सामानों पर जीएसटी दरें घटा दी गई हैं। वहीं, कागज और कागज से बने बोर्ड पर जीएसटी बढ़ाकर 18% कर दिया गया है। इससे किताबें और कॉपियाँ महंगी हो गई हैं, जो छात्रों और अभिभावकों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
पेपर इंडस्ट्री की चिंता
इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IPMA) ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि कागज कोई लग्जरी आइटम नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, साक्षरता और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग के लिए आवश्यक है। पवन अग्रवाल, IPMA के अध्यक्ष, ने कहा कि कागज पर जीएसटी बढ़ाना गलत कदम है और इससे छोटे उद्योगों और आम लोगों पर बुरा असर पड़ेगा।
पैकेजिंग इंडस्ट्री पर भी असर
कागज का इस्तेमाल पैकेजिंग इंडस्ट्री में भी व्यापक रूप से होता है। खाद्य, दवाइयाँ और FMCG उत्पादों की पैकेजिंग में कागज या कागज से बने बोर्ड का उपयोग होता है। इन पर जीएसटी बढ़ने से इन उत्पादों की कीमतों में भी वृद्धि हो सकती है, जिससे उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
छोटे उद्योगों को होगा नुकसान
लगभग 90% क्राफ्ट और पैकेजिंग पेपर का इस्तेमाल डिब्बों में होता है। इस पर जीएसटी बढ़ने से छोटे उद्योगों को गंभीर नुकसान हो सकता है। IPMA का अनुमान है कि 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की वर्किंग कैपिटल इसमें फंस जाएगी, जिससे छोटे व्यवसायों को बार-बार रिफंड के लिए आवेदन करना पड़ेगा और उनका काम प्रभावित होगा।
सरकार से पुनर्विचार की अपील
पवन अग्रवाल ने सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि कागज उद्योग के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है, वह प्रधानमंत्री के उस विजन के खिलाफ है जिसमें उन्होंने कहा था कि केवल गैर-जरूरी वस्तुओं को ही 12% से 18% स्लैब में लाया जाएगा। उन्होंने ग्राहकों, MSMEs और भारतीय पेपर उद्योग के दीर्घकालिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तत्काल समीक्षा की अपील की है।
GST 2.0 में किए गए बदलावों से जहां एक ओर कुछ वस्तुएं सस्ती हुई हैं, वहीं दूसरी ओर शिक्षा से जुड़ी आवश्यक वस्तुएं महंगी हो गई हैं। इससे छात्रों और अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है। पेपर इंडस्ट्री और छोटे उद्योगों के लिए भी यह एक चुनौती बन गई है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि आम लोगों और उद्योगों पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।