




लद्दाख के लेह क्षेत्र में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बीच प्रसिद्ध पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यह गिरफ्तारी उस समय की गई है, जब लद्दाख में राज्य का दर्जा (Statehood) और छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल किए जाने की मांगों के चलते प्रदर्शन तेज हो गए थे। वांगचुक को आरोप है कि उनके भाषणों और आंदोलन के दौरान दिए गए बयानों ने भीड़ को उकसाया।
वांगचुक की गिरफ्तारी को लेकर दोनों पक्षों में विवाद फैला हुआ है। समर्थकों का कहना है कि यह लोकतांत्रिक आवाज को दबाने की कोशिश है, जबकि प्रशासन का यह तर्क है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्रवाई अनिवार्य थी।
स्थानीय मीडिया एवं सूत्रों के अनुसार, लेह पुलिस ने वांगचुक को सोमवार को हिरासत में लिया। गिरफ्तारी से पहले लद्दाख में हिंसा भड़क गई थी — कुछ प्रदर्शनकारियों ने सरकारी कार्यालयों और वाहनों को अग्नि के हवाले किया और पुलिस-CRPF के साथ भिड़ंत भी हुई। इससे पहले प्रशासन ने कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया था।
सरकार ने आरोप लगाया कि वांगचुक ने प्रदर्शनों के दौरान “उत्तेजक भाषण” दिए, जिनके चलते आंदोलन हिंसक रूप ले गया। गृह मंत्रालय ने इस संबंध में बयान जारी किया।
वांगचुक ने जवाब में कहा कि उन पर लगाए गए आरोप “बाध्य जीव (scapegoat) की तरह टांके गए” हैं और उनकी गिरफ्तारी सरकार के लिए समस्याएं खड़ी कर सकती है। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें जेल भेजा गया, तो यह सरकार के लिए ज्यादा चुनौती बन सकता है।
इस गिरफ्तारी की खबर फैलते ही सामाजिक, राजनीतिक और छात्र संगठनों में हलचल मची। Himalaya Niti Abhiyan ने वांगचुक के समर्थन में बयान जारी किया और प्रशासन की कार्रवाई की निंदा की।
वांगचुक के समर्थक और अन्य कार्यकर्ता कहते हैं कि यह कदम आवाज दबाने की कोशिश है — वह लद्दाख के युवाओं और पर्यावरण की मांगों को सामने लाते रहे हैं। उनके परिवर्तनों और आंदोलन को दबाने की कोशिश का आरोप लगाया जा रहा है।
पिछले कुछ दिनों से लद्दाख में प्रदर्शन जारी थे। प्रदर्शनकारियों की मांग थी:
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लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
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संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना
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स्थानीय नौकरियों, शिक्षा और संसाधनों की सुरक्षा
इन मांगों को लेकर प्रदर्शन शांतिपूर्ण रूप से शुरू हुआ था, लेकिन हिंसा के बीच स्थिति बिगड़ गई — चार लोगों की मौत हुई और दर्जनों घायल हुए।
वांगचुक इस आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे हैं। उन्होंने कई विरोध प्रदर्शन, अनशन और जनसभाएं की हैं।
गिरफ्तारी के बाद यह सवाल उठा है कि लोकतंत्र में विरोध की आवाज़ पर कितना दबाव बढ़ाया जाए। कार्यकर्ता इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंगुली उठाने वाला कदम मान रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गिरफ्तारी कानून-व्यवस्था की दृष्टि से उचित न हो, तो अदालतों में चुनौती दी जा सकती है।
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वांगचुक की हिरासत की अवधि और न्यायालयीन सुनवाई पर निगाह होगी।
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विपक्षी दल और मानवाधिकार समूह इस मामले को लड़ सकते हैं।
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लद्दाख आंदोलन की दिशा इस गिरफ्तारी से और भी ज़्यादा ताजा हो सकती है।