




उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026 (UP Panchayat Election 2026) की तैयारियों के बीच महोबा जिले से लोकतंत्र को हिला देने वाली खबर सामने आई है। यहां मतदाता सूची पुनरीक्षण (Voter List Revision) के दौरान बीएलओ (BLO) ने जब फाइनल लिस्ट तैयार की, तो उसमें गजब का खुलासा हुआ। महज एक ही मकान में 243 वोटर दर्ज पाए गए, जबकि बगल के मकान में 185 मतदाताओं के नाम दर्ज मिले। यह मामला पनवाड़ी कस्बे के वार्ड नंबर-3 का है।
यूपी पंचायत चुनाव 2026 की संभावित तारीखें अप्रैल-मई महीने में मानी जा रही हैं। इसी कड़ी में पूरे प्रदेश में मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है। इसी क्रम में बीएलओ जब पनवाड़ी कस्बे में घर-घर सर्वे करने पहुंचे तो उन्होंने मतदाता सूची समाजसेवी चौधरी रविन्द्र कुमार अहिरवार को दिखाई।
लिस्ट देखते ही रविन्द्र अहिरवार हैरान रह गए। मकान नंबर 996 में 243 वोटरों के नाम दर्ज थे। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “अगर घर के पूर्वजों को भी जोड़ लिया जाए, तब भी इतनी संख्या पूरी नहीं हो सकती।” इसके बाद जब बगल के मकान नंबर 997 का रिकॉर्ड देखा गया, तो वहां भी 185 मतदाता सूचीबद्ध थे।
इस खुलासे के बाद प्रशासन और चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मतदाता सूची में गड़बड़ियों के कारण न केवल लोकतंत्र की साख पर बट्टा लगता है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता भी प्रभावित होती है।
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर एक ही घर में सैकड़ों मतदाता दर्ज हो जाते हैं तो इसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है। ऐसे में मतदाता सूची का सही समय पर और निष्पक्ष पुनरीक्षण बेहद जरूरी है।
इस मामले के उजागर होने के बाद क्षेत्र के लोग भी हैरान हैं। कस्बे के कई लोगों ने कहा कि इस तरह की गड़बड़ियां वर्षों से होती आई हैं लेकिन इस बार संख्या इतनी ज्यादा है कि मामला चर्चा का विषय बन गया है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि अगर इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हो, तो कई और ऐसे ‘काल्पनिक वोटर घर’ सामने आ सकते हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि पंचायत चुनाव लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का सबसे अहम हिस्सा होते हैं। अगर मतदाता सूची ही गलत होगी तो लोकतंत्र की नींव हिल जाएगी। ऐसे में चुनाव आयोग को तुरंत संज्ञान लेकर फर्जी वोटरों को सूची से हटाना चाहिए और जिम्मेदार बीएलओ पर कार्रवाई करनी चाहिए।
महोबा जिले का यह मामला केवल एक वार्ड का नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली पर सवाल उठाता है। अब देखना होगा कि प्रशासन और चुनाव आयोग इस गंभीर मामले पर क्या कार्रवाई करते हैं। लेकिन इतना तो साफ है कि यूपी पंचायत चुनाव 2026 से पहले मतदाता सूची में पारदर्शिता और शुद्धता सुनिश्चित करना अब सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।