




बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसके तहत फेल छात्रों को प्रमोट करने की अनुमति दी जाती है। कोर्ट ने इस ‘कैरी ऑन’ पॉलिसी को शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के भविष्य के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि यह व्यवस्था न केवल शिक्षा प्रणाली को कमजोर करती है बल्कि छात्रों को मेहनत करने से भी रोकती है। इस मामले में अदालत ने सभी गैर-कृषि विश्वविद्यालयों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
क्या है ‘कैरी ऑन’ पॉलिसी?
‘कैरी ऑन’ पॉलिसी का मतलब है कि यदि कोई छात्र किसी सेमेस्टर में फेल हो जाता है तो भी उसे अगले सेमेस्टर की कक्षाओं में बैठने की अनुमति मिलती है। बाद में छात्र बैकलॉग परीक्षा देकर उस विषय को पास कर सकता है। राज्य सरकार ने यह नीति इसलिए बनाई थी ताकि छात्र शिक्षा बीच में छोड़ने पर मजबूर न हों। लेकिन हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या यह नीति शिक्षा के स्तर को गिरा नहीं रही?
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:
“शिक्षा प्रणाली का मूल उद्देश्य छात्रों को ज्ञान और अनुशासन देना है। यदि फेल होने के बावजूद छात्रों को प्रमोट किया जाएगा तो उनकी गंभीरता खत्म हो जाएगी। शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस नीति का दुरुपयोग हो रहा है। कई कॉलेज और विश्वविद्यालय इसे छात्रों को आकर्षित करने और दाखिले बढ़ाने के लिए एक आसान विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
शिक्षा की गुणवत्ता पर असर
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि शिक्षा सिर्फ डिग्री हासिल करने का साधन नहीं है बल्कि यह योग्यता और क्षमता को विकसित करने का माध्यम है। यदि छात्र फेल होते हैं, तो उन्हें दोबारा मेहनत करने का मौका मिलना चाहिए। लगातार प्रमोशन देने से छात्र न तो पढ़ाई पर ध्यान देंगे और न ही मेहनत करेंगे। इससे समाज और उद्योगों को योग्य मानव संसाधन नहीं मिल पाएगा।
नोटिस जारी
कोर्ट ने राज्य के सभी गैर-कृषि विश्वविद्यालयों को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि वे इस नीति को लागू करने के पीछे क्या कारण बताते हैं। विश्वविद्यालयों से यह भी पूछा गया है कि क्या इस नीति से शिक्षा के स्तर में गिरावट दर्ज की गई है? कोर्ट ने साफ किया कि यदि यह नीति शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करती पाई गई तो इसे समाप्त करने पर विचार किया जाएगा।
छात्रों और अभिभावकों की राय
कुछ छात्रों का मानना है कि कैरी ऑन पॉलिसी उनके लिए सहारा है। यदि किसी कारणवश वे एक-दो विषयों में फेल हो जाते हैं, तो इस नीति से उन्हें पढ़ाई जारी रखने का मौका मिलता है। वहीं अभिभावकों और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह नीति बच्चों में आलस्य और लापरवाही बढ़ाती है। इससे उन्हें यह संदेश जाता है कि मेहनत किए बिना भी प्रमोशन मिल जाएगा।
शिक्षा विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
शिक्षा जगत से जुड़े विशेषज्ञों ने हाईकोर्ट के रुख का स्वागत किया है। उनका कहना है कि फेल छात्रों को आगे बढ़ाने की यह नीति लंबे समय में शिक्षा के लिए हानिकारक है। डॉ. संजय पाटिल, शिक्षा विश्लेषक, कहते हैं: “यह नीति छात्रों को असफलता से सीखने का मौका नहीं देती। असफलता जीवन का हिस्सा है और यह मेहनत और सुधार का सबक सिखाती है।”
सरकार की ओर से प्रतिक्रिया
राज्य सरकार का कहना है कि इस नीति का मकसद छात्रों को पढ़ाई से दूर होने से बचाना था। कई बार पारिवारिक, आर्थिक या स्वास्थ्य कारणों से छात्र एक-दो विषयों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। ऐसे में उन्हें पढ़ाई जारी रखने से रोकना उचित नहीं है। हालांकि सरकार ने कोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हुए कहा है कि वह इस पर पुनर्विचार करेगी।
न्यायिक दखल क्यों ज़रूरी?
भारत में उच्च शिक्षा पहले ही कई चुनौतियों का सामना कर रही है। छात्रों की रोजगार योग्यता (employability) कम है। कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की गुणवत्ता सवालों के घेरे में है। यदि ‘कैरी ऑन’ जैसी नीतियां जारी रहीं तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप इसलिए अहम है ताकि शिक्षा प्रणाली को सिर्फ डिग्री बांटने की फैक्ट्री बनने से रोका जा सके।
आगे क्या?
कोर्ट के आदेश के बाद अब सभी गैर-कृषि विश्वविद्यालयों को अपना पक्ष रखना होगा। यदि यह साबित हो गया कि इस नीति का छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, तो सरकार को इसे वापस लेना पड़ सकता है। साथ ही शिक्षा विभाग को वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करनी होगी जिससे छात्रों को सहारा भी मिले और शिक्षा की गुणवत्ता भी बरकरार रहे।
बॉम्बे हाईकोर्ट की यह सख्ती शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक अहम कदम है। ‘कैरी ऑन’ पॉलिसी ने भले ही कुछ छात्रों को राहत दी हो, लेकिन लंबे समय में यह शिक्षा की गुणवत्ता पर भारी पड़ सकती है। कोर्ट का यह कदम न केवल छात्रों को मेहनत के लिए प्रेरित करेगा बल्कि पूरे समाज में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देगा।