• Create News
  • Nominate Now

    अटल बिहारी वाजपेयी के ‘हनुमान’ जसवंत सिंह: राजनीति के विद्रोही चाणक्य की अनकही दास्तां

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं।

    भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे नेता हुए हैं जिनकी पहचान केवल उनके पद और जिम्मेदारियों से नहीं, बल्कि उनकी निष्ठा, विद्रोही तेवर और राष्ट्रहित के लिए लिए गए कठिन फैसलों से भी होती है। जसवंत सिंह उन्हीं में से एक नाम है। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संस्थापक नेताओं में से एक थे और अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी माने जाते थे। यही कारण था कि वाजपेयी उन्हें प्यार से अपना ‘हनुमान’ कहते थे।

    मगर जसवंत सिंह की राजनीति केवल वफादारी की दास्तां नहीं है। इसमें उतार-चढ़ाव, विवाद और विद्रोह के पन्ने भी शामिल हैं।

    सेना से राजनीति तक का सफर

    राजस्थान के जसोल गाँव में 3 जनवरी 1938 को जन्मे जसवंत सिंह ने अपना करियर भारतीय सेना से शुरू किया। वे सेना में मेजर के पद तक पहुंचे। हालांकि, सैन्य जीवन के दौरान ही उन्होंने राजनीति में कदम रखने का मन बनाया।

    1970 के दशक में उन्होंने राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की और जल्दी ही भाजपा की विचारधारा से जुड़ गए। उनकी गहरी समझ, अनुशासन और स्पष्टवादिता ने उन्हें पार्टी के भीतर अलग पहचान दिलाई।

    अटल बिहारी वाजपेयी के भरोसेमंद ‘हनुमान’

    अटल बिहारी वाजपेयी और जसवंत सिंह का रिश्ता गुरु-शिष्य और साथी दोनों जैसा था। वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि जसवंत सिंह पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है। यही वजह रही कि उन्हें विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय जैसे अहम पदों की जिम्मेदारी मिली।

    • विदेश मंत्री के तौर पर वे भारत की कूटनीति को नई ऊंचाइयों पर ले गए।

    • रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने कारगिल युद्ध के बाद सेना को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू की।

    • वित्त मंत्री के पद पर वे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में अहम रहे।

    आतंकियों को छोड़ने का ‘दाग’

    जसवंत सिंह का राजनीतिक करियर जितना गौरवशाली रहा, उतना ही विवादों से भी घिरा रहा।

    1999 में जब इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट IC-814 को आतंकियों ने हाईजैक कर लिया, तब भारत सरकार को बंधकों की सुरक्षा के लिए आतंकियों की मांग माननी पड़ी। कंधार (अफगानिस्तान) जाकर तीन खतरनाक आतंकियों—मसूद अजहर, उमर शेख और मुस्ताक जर्गर—को रिहा करने का जिम्मा जसवंत सिंह को ही दिया गया।

    हालांकि उन्होंने यह कदम मजबूरी में उठाया, लेकिन यही घटना उनके राजनीतिक जीवन पर हमेशा एक दाग की तरह चिपकी रही।

    पार्टी से विद्रोह और निष्कासन

    जसवंत सिंह की साफगोई और बेबाकी कई बार भाजपा के लिए असहज रही।

    2009 में उन्होंने ‘जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस’ नामक किताब लिखी, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना को भारत विभाजन का अकेला जिम्मेदार न ठहराकर एक संतुलित दृष्टिकोण पेश किया। भाजपा को यह बात नागवार गुज़री और उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

    हालांकि बाद में उनकी वापसी हुई, लेकिन पार्टी के भीतर उनका प्रभाव पहले जैसा कभी नहीं रहा।

    विद्रोही छवि और स्वाभिमान

    जसवंत सिंह को भारतीय राजनीति का ‘विद्रोही चाणक्य’ कहा जा सकता है। वे कभी भी अपने विचार व्यक्त करने से पीछे नहीं हटे, चाहे वह पार्टी लाइन से अलग ही क्यों न हो। यही कारण था कि वे कई बार भाजपा नेतृत्व के साथ टकराव में आए।

    उनकी विद्रोही छवि ने उन्हें लोकप्रिय भी बनाया और आलोचनाओं का शिकार भी।

    सम्मान और योगदान

    भले ही विवादों ने उनके करियर को प्रभावित किया हो, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जसवंत सिंह भारतीय राजनीति के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली नेताओं में से एक थे।

    • उन्होंने भारतीय विदेश नीति को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई।

    • कारगिल युद्ध के बाद सैन्य ढांचे को मजबूत करने में उनकी भूमिका अहम रही।

    • आर्थिक सुधारों के दौर में उनकी नीतियां उल्लेखनीय रहीं।

    अंत और विरासत

    25 सितंबर 2020 को जसवंत सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनका जाना भारतीय राजनीति के एक ऐसे अध्याय का अंत था जिसमें वफादारी, विद्रोह, त्याग और विवाद सब कुछ समाहित था।

    आज भी वे उन नेताओं में गिने जाते हैं जिनकी राजनीति राष्ट्रहित और आत्मसम्मान पर आधारित थी। वे अटल बिहारी वाजपेयी के ‘हनुमान’ जरूर थे, लेकिन उनके भीतर एक ऐसा विद्रोही भी छिपा था जो अपनी अलग पहचान छोड़कर गया।

    जसवंत सिंह का राजनीतिक जीवन यह दर्शाता है कि भारतीय राजनीति केवल सत्ता पाने का खेल नहीं है, बल्कि यह आदर्शों और समझौतों की यात्रा भी है। उन्होंने वफादारी, साहस और स्वाभिमान के अनूठे उदाहरण पेश किए।

    हालांकि आतंकियों को छोड़ने का विवाद और जिन्ना पर लिखी किताब उनके करियर पर सवाल बनकर रहे, लेकिन उनकी देशभक्ति, स्पष्टवादिता और योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

    न्यूज़ शेयर करने के लिए क्लिक करें .
  • Advertisement Space

    Related Posts

    Cramps और Dew की चुनौती: भारत- पाकिस्तान फाइनल में कारगर रणनीति बना सकती है जीत का अंतर

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। Asia Cup 2025 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ दो लगातार मैचों में शानदार प्रदर्शन किया है। घरेलू और विदेशी…

    Continue reading
    UNGA में जयशंकर का बड़ा बयान: ‘टैरिफ अस्थिरता के दौर में BRICS को बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की रक्षा करनी चाहिए’

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के इतर आयोजित BRICS मंत्रिस्तरीय बैठक में टैरिफ…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *