




उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में बीते सप्ताह शुक्रवार की नमाज़ के बाद भड़की हिंसा ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना तौकीर रज़ा के समर्थकों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन ने जब हिंसक रूप लिया, तो हालात बेकाबू हो गए।
इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन ने सख्त रवैया अपनाते हुए न केवल उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई की, बल्कि मौलाना तौकीर रज़ा को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके साथ ही कई अवैध निर्माणों को चिन्हित कर बुलडोजर से ध्वस्त करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।
बरेली में ‘I Love Muhammad’ नामक धार्मिक अभियान के तहत पोस्टर लगाए गए, जिससे हिंदू संगठनों ने आपत्ति जताई। प्रशासन द्वारा पोस्टर हटाने के निर्देश के बाद तौकीर रज़ा ने प्रदर्शन का आह्वान किया। हालांकि बाद में उन्होंने प्रदर्शन स्थगित कर दिया, लेकिन समर्थकों ने इसके बावजूद सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया।
शुक्रवार की नमाज़ के बाद सैकड़ों की संख्या में भीड़ जमा हो गई। पुलिस की रोकने की कोशिशों के बावजूद भीड़ उग्र हो गई और पथराव, आगजनी व तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं।
हिंसा के बाद पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए अब तक 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में 10 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें 2000 से अधिक अज्ञात व्यक्तियों को नामजद किया गया है।
कुछ उपद्रवियों के साथ मुठभेड़ (Encounter) भी हुआ, जिनमें इदरीस और इक़बाल नामक दो मुख्य आरोपी घायल अवस्था में गिरफ्तार किए गए। इनके पास से एक चोरी की गई पुलिस राइफल और दो पिस्तौल भी बरामद हुई हैं।
राज्य सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए उपद्रव में शामिल व्यक्तियों की संपत्तियों की जांच शुरू की। बरेली विकास प्राधिकरण (BDA) ने तौकीर रज़ा के करीबी रिश्तेदारों की संपत्तियों को अवैध घोषित करते हुए बुलडोजर चलाया।
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एक ई-रिक्शा चार्जिंग पॉइंट को गिराया गया।
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तौकीर रज़ा द्वारा संचालित एक निजी भवन को सील किया गया।
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उनके परिजनों द्वारा अवैध तरीके से बनाए गए वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स की कमाई लगभग 10 लाख रुपये प्रति माह बताई गई, जिसे ध्वस्त करने की योजना पर काम हो रहा है।
यह कार्रवाई सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार की ‘Zero Tolerance’ नीति का हिस्सा मानी जा रही है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बरेली में 48 घंटे तक इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। साथ ही, धारा 144 लागू करते हुए 5 से अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है।
प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें और किसी भी भ्रामक सोशल मीडिया पोस्ट को आगे न बढ़ाएं। पुलिस की साइबर सेल सोशल मीडिया पर भी निगरानी बनाए हुए है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की निंदा करते हुए स्पष्ट किया कि “दंगाइयों को बख्शा नहीं जाएगा।” उन्होंने अधिकारियों को सख्त कार्रवाई करने और कानून-व्यवस्था को पूरी तरह से बहाल करने के निर्देश दिए।
बरेली डीएम और एसएसपी ने संयुक्त बयान में कहा कि स्थिति नियंत्रण में है और दोषियों को कानून के तहत कड़ी सजा दिलाई जाएगी।
घटना के बाद राजनीतिक और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रियाएं भी आईं:
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कुछ मुस्लिम संगठनों ने तौकीर रज़ा की गिरफ्तारी को “राजनीतिक बदले” की संज्ञा दी।
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वहीं, हिंदू संगठनों ने योगी सरकार की कार्रवाई का स्वागत करते हुए और कड़े कदमों की मांग की।
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आम जनता में इस बात को लेकर बहस है कि धार्मिक अभियानों को सार्वजनिक स्थानों पर क्यों अनुमति दी जाती है।
यह घटना कई सवाल खड़े करती है:
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क्या धार्मिक अभिव्यक्ति की सीमा तय होनी चाहिए?
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क्या ऐसे संवेदनशील मामलों को प्रशासन पहले से नियंत्रित नहीं कर सकता था?
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क्या बुलडोजर कार्रवाई कानूनन न्यायोचित है या यह राजनैतिक संदेश देने का तरीका बन चुकी है?
इन सवालों के उत्तर आने वाले समय में स्पष्ट होंगे, लेकिन बरेली की घटना ने प्रशासन, न्यायपालिका और समाज के लिए चेतावनी का काम जरूर किया है।
बरेली में हुई हिंसा और उसके बाद की पुलिस व प्रशासनिक कार्रवाई ने यह संदेश दे दिया है कि कानून-व्यवस्था के खिलाफ कोई भी गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी। तौकीर रज़ा समर्थकों की हिंसा ने समाज में वैमनस्य को बढ़ावा दिया, वहीं बुलडोजर और एनकाउंटर से सरकार ने अपनी ‘कड़क छवि’ फिर से स्थापित की।