




महाराष्ट्र के कल्याण शहर में स्थित एक निजी स्कूल पर छात्रों के धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों जैसे तिलक, टिकली (बिंदी), राखी, धार्मिक धागे और चूड़ियाँ पहनने पर कथित प्रतिबंध लगाने का आरोप लगा है। इस विवाद के बीच, कल्याण-डोंबिवली महानगरपालिका (KDMC) ने इस स्कूल को नोटिस जारी करते हुए इस निर्णय की स्पष्टीकरण मांगा है।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब कई अभिभावकों ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रबंधन ने छात्रों को धार्मिक प्रतीक पहनने से रोका, और जिन्होंने पहना था, उनका तिलक जबरन मिटाया गया। यहां तक कि कुछ छात्रों को शारीरिक दंड देने की भी शिकायत सामने आई है।
कुछ अभिभावकों के अनुसार:
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स्कूल में उनके बच्चों को तिलक लगाने या राखी पहनने से रोक दिया गया।
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एक छात्र के माथे से तिलक को जबरन साफ किया गया।
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कुछ छात्रों को धमकी दी गई कि अगर वे धार्मिक प्रतीक पहनकर आए, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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यहां तक कि शारीरिक दंड दिए जाने के आरोप भी लगाए गए हैं।
यह मामला उस वक्त और गर्म हो गया जब स्थानीय राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को उठाते हुए KDMC से हस्तक्षेप की मांग की।
30 सितंबर 2025 को KDMC के शिक्षा विभाग ने संबंधित स्कूल को एक आधिकारिक नोटिस जारी करते हुए 7 दिनों के भीतर इस मामले में स्पष्टीकरण देने को कहा है।
KDMC के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया को बताया:
“हमें कई अभिभावकों की शिकायतें प्राप्त हुईं कि उनके बच्चों को धार्मिक प्रतीकों के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है। तुरंत संज्ञान लेते हुए हमने स्कूल को नोटिस भेजा है। हमारी कोशिश है कि यह मामला बिना विवाद के सुलझ जाए।”
उन्होंने आगे कहा कि प्रशासन इस मामले को संवेदनशीलता के साथ देख रहा है और बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
विवाद बढ़ने के बाद, स्कूल प्रबंधन ने एक आधिकारिक बयान जारी किया जिसमें कहा गया:
“स्कूल ने कोई ‘फतवा’ या औपचारिक आदेश जारी नहीं किया है। हम छात्रों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। हमारा उद्देश्य केवल एक समानता और अनुशासन बनाए रखना है, न कि किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना।”
स्कूल ने दावा किया कि वह हमेशा छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और प्रबंधन के बीच सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश करता है।
हालांकि, अभिभावकों का कहना है कि वास्तविकता स्कूल के दावे से अलग है। कई माता-पिता इस घटना से आहत हैं और उन्होंने इस फैसले को धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात बताया।
यह घटना सामने आने के बाद स्थानीय समाज में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। एक ओर कुछ लोग स्कूल की धर्म-निरपेक्ष नीति का समर्थन कर रहे हैं, तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग इसे बच्चों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन बता रहे हैं।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, कविता देशमुख ने कहा:
“यदि कोई छात्र तिलक लगाता है या राखी पहनता है, तो इसमें अनुशासन बाधित कैसे हो सकता है? यह उनकी पहचान और संस्कृति से जुड़ा विषय है।”
भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। लेकिन स्कूलों को अनुशासन बनाए रखने के लिए कुछ सीमित अधिकार भी हैं। अब सवाल यह है कि क्या स्कूल इन अधिकारों के तहत छात्रों को धार्मिक प्रतीक पहनने से रोक सकते हैं?
शिक्षाविद डॉ. प्रवीण शर्मा का कहना है:
“स्कूलों को यह अधिकार नहीं कि वे छात्रों की धार्मिक अभिव्यक्ति पर रोक लगाएं, जब तक वह पढ़ाई में बाधा न बने। स्कूल को नीति बनानी है तो उसे पहले अभिभावकों और छात्रों को स्पष्ट रूप से जानकारी देनी होगी।”
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KDMC इस मामले की जांच कर रहा है और स्कूल के जवाब के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
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अभिभावकों की एक समिति ने चेतावनी दी है कि अगर स्कूल माफी नहीं मांगता और अपनी नीति में बदलाव नहीं करता, तो वे कानूनी कदम उठाएंगे।
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कुछ सामाजिक संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की योजना बनाई है।
यह मामला एक बार फिर इस बात को उजागर करता है कि शिक्षा संस्थानों को केवल किताबें पढ़ाने की नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और सांस्कृतिक समझ भी विकसित करने की ज़िम्मेदारी है। बच्चों पर सांस्कृतिक या धार्मिक प्रतीकों को लेकर पाबंदी न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि इससे मनःस्थिति और आत्मसम्मान पर भी असर पड़ सकता है।